क्या आपने कभी फर्ज़ी एनकाउंटर को सही ठहराया है? इसका जवाब ठीक से याद करने के बाद ही दीजिएगा. ऐसे लोगों की संख्या हज़ारों और लाखों में निकल आएगी, जिन्होंने हैदराबाद पुलिस के एनकाउंटर पर जश्न मनाया था और सही ठहराया था. उन सभी को पता है कि पुलिस के एनकाउंटर कई बार गलत निकल चुके हैं, और गलत होते हैं, तब भी लोगों ने हैदराबाद पुलिस पर फूल बरसाए थे.
चार आरोपियों का एनकाउंटर किया
6 दिसंबर 2019 को हैदराबाद पुलिस ने उसी जगह पर चार आरोपियों का एनकाउंटर किया, जहां प्रियंका रेड्डी की हत्या की गई थी. जिनके शरीर को बलात्कार के बाद जला दिया गया था. लोग पुलिस पर गुलाब बरसाने लगे और पुलिस कहानियां बनाने लगी कि कैसे ये आरोपी भाग रहे थे, पुलिस से हथियार छीनकर पुलिस पर गोली चला रहे थे. लोग पुलिस की हर बात पर यकीन कर रहे थे और तारीफों के पुल बांध रहे थे. केवल फूल बरसाने वालों को ही पुलिस पर भरोसा नहीं था, बल्कि देश के लाखों लोगों ने पुलिस की हर बात पर आंखें मूंदकर भरोसा किया और हैदराबाद पुलिस का जय जयकार किया. औरतों ने पुलिस को राखी बांधी थी.
यह एनकाउंटर फर्ज़ी निकला
6 दिसंबर 2019 के दिन किया गया यह एनकाउंटर फर्ज़ी निकला है. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 387 पन्नों के ऑर्डर में बताया है कि यह एनकाउंटर फर्ज़ी था. इस एनकाउंटर की जांच के लिए रिटायर्ड जस्टिस सिरपुरकर की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन किया गया था. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पुलिस की बनाई कहानियों पर भरोसा नहीं किया जा सकता और न ही कोई सबूत हैं. यह कहानी झूठी है कि चारों आरोपियों ने पुलिस से हथियार छीन लिए, पुलिस पर हमला किया, और अपने बचाव में पुलिस ने उनका एनकाउंटर कर दिया.
कई अखबारों में हैदराबाद पुलिस कमिश्नर वीसी सज्जनार हीरो की तरह छप गए. ‘जानिए कौन हैं, सज्जनार’ टाइप की हेडलाइन छपने लगी. बताया जाने लगा कि 2008 में भी इस तरह का एनकाउंटर कर चुके हैं. अमर उजाला की हेडलाइन तो और भी गजब की है. ‘हैदराबाद कांड; साइबराबाद के पुलिस कमिश्नर सज्जनार को क्यों कहा जाता है ‘एनकाउंटर मैन.” टाइम्स आफ इंडिया में छपता है कि ‘हैदराबाद एनकाउंटर में अहम भूमिका निभाने वाले आईपीएस अफसर वीसी सज्जनार से मिलिए.’
दस पुलिस वालों के खिलाफ़ हत्या मुकदमा दर्ज करने के लिए कहा
सुप्रीम कोर्ट ने इस एनकाउंटर को फर्ज़ी पाया है और दस पुलिस वालों के खिलाफ़ हत्या, झूठी सूचनाएं देने और सबूतों के मिटाने के धाराओं में मुकदमा दर्ज करने के लिए कहा है. इंडियन एक्सप्रेस ने छह दिसंबर 2019 के दिन सज्जनार की प्रोफाइल छापी. वीसी सज्जनार, हैदराबाद एनकाउंटर के पीछे का एक नरम दिल अफसर. इस तरह से तमाम मीडिया वेबसाइट, अख़बारों और चैनलों पर सज्जनार रातों रात हीरो बन गए. उस दिन सज्जनार ने हिन्दी में भी प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी.
रिपोर्ट में कहा है कि झूठी कहानी बनाई
पूरी कहानी फर्ज़ी निकली है. सुप्रीम कोर्ट के द्वारा गठित जस्टिस सिरपुरकर आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि झूठी कहानी बनाई है. फर्ज़ी तरीके से एनकाउंटर कर दिया गया. पुलिस कमिश्नर वीसी सज्जनार को मीडिया हीरो बताने लगा. उनकी तारीफ और बड़ी हो सके इसलिए कई जगहों पर गर्व से बताया गया कि 2008 में वीसी सज्जनार ने एसपी रहते हुए वारंगल जिले में ऐसा ही एनकाउंटर हुआ था. सेम टू सेम कहानी, सच्ची.
वारंगल के एनकाउंटर में भी आरोपी पुलिस से हथियार छीन कर भागे, पुलिस पर हमला किया और अपने बचाव में पुलिस ने उनका एनकाउंटर कर दिया. उस एनकाउंटर का तो पता नहीं, हैदराबाद एनकाउंटर की कहानी ही झूठी निकली है. वैसे सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सिरपुरकर आयोग ने उस एनकाउंटर के बारे में भी सवाल किया था. आपने जॉली एलएलबी पार्ट- 2 फिल्म देखी है. देखी होगी तो आपको पता चलेगा कि एनकाउंटर के खेल के पीछे क्या होता है.
एनकाउंटर का मतलब ही पता नहीं है
सोचिए जिन्हें एनकाउंटर मैन कहा जा रहा था, हीरो बनाया जा रहा था वो जनाब कोर्ट के आयोग के सामने कहते हैं कि एनकाउंटर का मतलब ही पता नहीं है. एक और सॉलिड प्वाइंट है. सुप्रीम कोर्ट के बनाए पैनल ने दस पुलिस वालों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने की सिफ़ारिश की है. इसमें पुलिस कमिश्नर वीसी सज्जनार का नाम नहीं है, जिन्हें 6 दिसंबर 2019 के दिन हीरो बनाया जा रहा था. जिनके बारे में मीडिया लिख रहा था कि इस एनकाउंटर के पीछे उनका दिमाग है. उनकी मुख्य भूमिका है.
लोगों की समझदारी पर सवाल नहीं उठाएंगे
हमने तय किया है कि हम एक बार भी लोगों की समझदारी पर सवाल नहीं उठाएंगे क्योंकि उसकी ज़रूरत ही नहीं है. पुलिस की बनी बनाई कहानी पर आंखें मूंदकर यकीन करने वाले लोगों की जमात बहुत मुश्किल से धरती पर अवतरित होती है. जिन चार लोगों का एनकाउंटर हुआ उनमें से तीन नाबालिग थे.
उनके मां-बाप इंसाफ़ के लिए भावनाओं का ज्वार खड़ा होते देख रहे हैं. वह भीड़ कहां चली गई जो इंसाफ़ के नाम पर एनकाउंटर को सही ठहरा रही थी? क्या फर्जी एनकाउंटर से दिशा को इंसाफ मिल गया, जिसकी हत्या हुई थी, जिसके साथ बलात्कार हुआ था? क्या हम जानते भी हैं कि असली अपराधी कहां है?
सीसीटीवी फुटेज को लेकर भी कई तरह के दावे मिलते हैं. लॉरी के मालिक श्रीनिवास रेड्डी ने सीसीटीवी फुटेज देखने का जो समय बताया है, उसमें और पुलिस के बताए समय में काफी अंतर है. यही नहीं एक आरोपी शिवा की पहचान श्रीनिवास रेड्डी ने सीसीटीवी फुटेज से की. आयोग ने लिखा है कि पुलिस ने उस सीसीटीवी फुटेज को कई घंटे बाद बरामद किया था. मतलब जब वह फुटेज पुलिस के पास ही नहीं था तब श्रीनिवास रेड्डी ने कैसे देखकर बता दिया कि वह शिवा है.
यही नहीं पुलिस का कहना है कि तीन सीसीटीवी फुटेज दिखाए गए. श्रीनिवास रेड्डी का कहना है कि सात से आठ फुटेज दिखाए गए, इतना अंतर है. जब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सामने श्रीनिवास रेड्डी कहता है कि उसे कोई सीसीटीवी फुटेज नहीं दिखाया गया.
इनके आरोपी होने में भी गंभीर संदेह
तो इस तरह से चारों को गिरफ्तार किया गया. इससे तो इनके आरोपी होने में भी गंभीर संदेह है. आपने सुना कि किस तरह पुलिस कमिश्नर वीसी सज्जनार कह रहे थे कि इन सभी को वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर गिरफ्तार किया गया था. आयोग ने यह भी लिखा है कि ऐसा लगता है कि लॉरी के मालिक पी श्रीनिवास रेड्डी को सिखाया पढ़ाया गया था. क्या यह भयानक नहीं है कि किसी बेकसूर को इस तरह से उठाकर एनकाउंटर में मार दिया जाए.
फिर कहानी बनाकर मीडिया में एनकाउंटर मैन टाइप का हीरो बन जाएं और सांसद से लेकर अभिनेता जय-जय करने लगें. 6 दिसंबर 2019 के प्राइम टाइम में हमने इस एनकाउंटर पर सवाल उठाया था, आगाह किया था कि इस तरह पब्लिक ओपीनियन के नाम पर किसी को मार देना ठीक नहीं है.
क्या पब्लिक ओपीनियन अब अदालत में है?
यह वही पब्लिक ओपिनियन है जो अखलाक और इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह को सरेआम मारते समय एक तरह से सोचता है, भीड़ के साथ खड़ा हो जाता है और यह वही पब्लिक ओपिनियन है जो तेलंगाना पुलिस की एनकाउंटर को लेकर भीड़ बन जाता है. क्या पब्लिक ओपीनियन अब अदालत में है? तो फिर अदालतों को फैसले से पहले ट्विटर पर जाकर देखना चाहिए कि आज का ट्रेंड क्या है. सभी को पता है कि इस घटना को लेकर गुस्सा है. महिलाओं में गुस्सा है तो उस गुस्से में जगह बनाने के लिए महिला सांसद भी एनकाउंटर को सही बता रही हैं.
अब स्मृति ईरानी क्या कर लेंगी
प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में झारखंड में शशिभूषण मेहता के लिए वोट मांगा था जिन पर एक महिला टीचर की हत्या का आरोप है और इस मामले में शशिभूषण मेहता ज़मानत पर हैं. क्या स्मृति ईरानी का गुस्सा वैसा ही होगा जैसा तेलंगाना मामले में था? क्या वे संसद से यह जानकर इस्तीफा दे देंगी? यह जानकर उनके सहयोगी सांसद साक्षी महाराज बलात्कार और हत्या के आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को जन्मदिन पर शुभकामनाएं दे रहे हैं. बांगरमऊ से विधायक कुलदीप को बधाई देने के लिए मंत्रोच्चारण कर रहे हैं. तो तब और अब स्मृति ईरानी क्या कर लेंगी?
जिस तेलंगाना पुलिस को लेकर सवाल उठ रहा था कि जब पीड़िता के परिवार वाले पुलिस के पास गए तो दो घंटे तक कुछ नहीं किया. कहा कि किसी दोस्त से मिलने भाग गई होगी. इस मामले में तीन पुलिस वाले सस्पेंड भी हुए थे. जिस पुलिस ने उसके पहले एक और घटना होने पर इलाके में सुरक्षा तेज़ नहीं की, यह भी हो सकता है कि उसके पास जांच और सुरक्षा के पर्याप्त संसाधन ही न हों, अब इन सारे सवालों को धकेलते हुए इस मामले को एनकाउंटर के जश्न पर खत्म किया जा रहा है. पुलिस महान बना दी गई है.
तेलंगाना पुलिस पर जो फूल बरसाए जा रहे हैं. उसकी तस्वीर बता रही है कि आम जनता में न्याय व्यवस्था को लेकर समझ और भरोसा कितना कमज़ोर हो गया है. कानून का सिस्टम लंबा वक्त लेता है या काम नहीं करता है, इसके नाम पर एनकाउंटर की थ्योरी को बिना जांचे परखे स्वागत के कांड में बदल दिया गया है.
क्या वाकई इस कहानी पर कोई विश्वास कर रहा है?
क्या वाकई इस कहानी पर कोई विश्वास कर रहा है कि जब पुलिस इन अपराधियों को लेकर सबूत इकट्ठे करने लगी तब इन लोगों ने पुलिस पर पत्थरों से हमला कर दिया. हथियार छीन लिए और सरेंडर नहीं किया तो गोली मार दी. क्या वाकई लोगों ने सोचना बंद कर दिया है कि फर्जी से लगने वाली इस कहानी पर फूल बरसा रहे हैं?
जब सबूतों के आधार पर पुलिस ने उन्हें पकड़ा था तो उन पर आरोप साबित करने का प्रयास क्यों नहीं किया गया. क्या इसलिए एनकाउंटर किया गया कि पब्लिक ओपीनियन स्वागत करेगी. सांसद लोग भी स्वागत करेंगे.
एनकाउंटर पर सवाल उठा रहे
मुमकिन है कालोनी के व्हाट्सऐप ग्रुप वालों को बहुत गुस्सा आया होगा . उस वक्त जब गोदी मीडिया से भीड़ का माहौल बन रहा था, हम लोग एनकाउंटर पर सवाल उठा रहे थे. आज सही साबित हुए हैं. कहां गए वो लोग जो हैदराबाद एनकाउंटर की जय जयकार कर रहे थे, जो एक तरह से इस समाज में निर्दोष की हत्या का वातावरण बना रहे थे.
न जाने कितने बेकसूर लोग अपराधी बताकर जेल में डाले जा रहे हैं, उनका एनकाउंटर हो रहा है और उन्हें फांसी की सज़ा हो रही है. यह सिलसिला अभी भी जारी है. राजस्थान के झालावाड़ का एक मामला सामने आया है. मामला 2018 का है. सात साल की बच्ची की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी.
ट्रायल कोर्ट ने भी अनदेखा किया
हाईकोर्ट की टिप्पणी से पता चलता है कि ट्रायल कोर्ट ने भी अनदेखा किया है. कोर्ट ने कहा है कि ट्रायल कोर्ट ने कोमल के स्कूल के प्रिंसिपल की गवाही पर विचार नहीं किया कि कोमल नाबालिग है. ट्रायल कोर्ट ने एक डॉक्टर की X-Ray जांच पर भरोसा किया कि उसकी उम्र 19-21 साल के बीच की है. हाई कोर्ट ने पाया है कि वह डाक्टर रेडियोलॉजिस्ट भी नहीं था. इस रिपोर्ट के डिटेल भी भयानक हैं. जिस देश में जांच की ये हालत हो, उस देश में कैसे कोई पुलिस एनकाउंटर को इंसाफ़ समझ सकता है?
कोमल के परिवार वाले तबाह हो गए. लेकिन बाकी लोगों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. 11 साल पहले की बात है. छत्तीसगढ़ के बलरामपुर में पुलिस ने 16 साल की एक लड़की मीना खलको को नक्सली बताकर मार दिया. न्यायिक जांच में नक्सलियों से मुठभेड़ का दावा भी फर्ज़ी पाया गया था. मीना खलको को किसने मारा आज तक पता नहीं चला. जो पुलिस वाले गिरफ्तार हुए थे वे बरी हो गए.
नारी का इंसाफ़ कितना बड़ा मसला हो जाता
जब राजनीति करनी होती है तब नारी का इंसाफ़ कितना बड़ा मसला हो जाता है और जब राजनीति की चोरी पकड़ी जाती है तब मसला बनाने वाले लोग भाग जाते हैं. उनका मकसद इतना ही होता है कि समाज को भीड़ में बदला जाए, ऐसी भीड़ जो झूठे किस्सों और फर्ज़ी नायकों को महान के लिए तैयार हो जाए. हैदराबाद एनकाउंटर उसी भीड़ की कहानी है.
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