फरवरी के अंत में रूस यूक्रेन की जंग ने भारत के गेहूं की माँग दुनिया में थोड़ी और बढ़ा दी है. दुनिया में गेहूं का निर्यात करने वाले टॉप 5 देशों में रूस, अमेरिका, कनाडा, फ़्रांस और यूक्रेन हैं. इसमें से तीस फ़ीसदी एक्सपोर्ट रूस और यूक्रेन से होता है.रूस का आधा गेहूं मिस्र, तुर्की और बांग्लादेश ख़रीद लेते हैं. जबकि यूक्रेन के गेहूं के ख़रीदार हैं मिस्र, इंडोनेशिया, फिलीपींस, तुर्की और ट्यूनीशिया. इस तरह वैश्विक परिस्थितियों ने भी गेहूं की कीमतें बढ़ाने में योगदान दिया है .
सरकारी ख़रीद कम होने की पीछे केंद्रीय मंत्रियों का बड़बोलापन भी कहीं ना कहीं ज़िम्मेदार है.
जब दुनिया के दो बड़े गेहूं निर्यातक देश, आपस में जंग में उलझे हों, तो उनके ग्राहक देशों में गेहूं की सप्लाई बाधित होना लाज़िमी है.गेहूं का निर्यात भी इस बार रिकॉर्ड स्तर पर हुआ है. पिछले तीन सालों में गेहूं के निर्यात में रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है. रूस-यूक्रेन संकट का असर गेहूं की सरकारी ख़रीद पर भी दिखा.केंद्र सरकार ने खु़द स्वीकार किया है कि इस साल सरकारी ख़रीद कम हुई है क्योंकि प्राइवेट व्यापारियों ने एमएसपी से ज़्यादा दाम पर गेहूं खरीदा. सरकारी ख़रीद कम होने की पीछे केंद्रीय मंत्रियों का बड़बोलापन भी कहीं ना कहीं ज़िम्मेदार है. उन्हें अंदाज़ा ही नहीं था कि आने वाले दिनों में दाम इस क़दर बढ़ने वाले हैं.
अप्रैल के महीने में रिकॉर्ड निर्यात में सरकारी नीतियों का बहुत योगदान रहा.केंद्र और सरकार ने गेहूं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कई क़दम उठाए.
गेहूं से बनने वाली हर चीज़ के दाम बढ़ गए हैं. पिछले कुछ महीनों में ब्रेड और बेकरी आइटम्स के दाम में 8-10 फ़ीसदी दाम बढ़े हुए हैं. आटे के भाव में भी तेज़ी इसी वजह से देखी गई. निर्यात बढ़ोतरी के मद्देनज़र बाज़ार में घरेलू ख़रीद के लिए गेहूं कम मिला. कुछ व्यापारियों ने आगे दाम बढ़ने की आशंका के मद्देनज़र पूरे स्टॉक बाज़ार में नहीं निकाले.घरेलू बाज़ार में भी जब ख़रीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से ऊपर पर हुई तो अलग अलग शहरों में गेहूं के दाम बढ़े.बाज़ार में बढ़ी हुई कीमतों के मद्देनज़र एक संदेश ये गया कि अभी गेहूं के भाव में तेज़ी रहने वाली है.
सालों बाद ये नौबत आई है कि जितना गेहूं पिछली ख़रीद का बचा है, उतना ही नए साल में ख़रीदने का लक्ष्य है. फिलहाल सरकारी स्टॉक में जितना गेहूं पहले हुआ करता था, उस मुकाबले इस बार थोड़ा कम है. एक वजह तो पैदावार की कमी है, जिसके कारण सरकारी ख़रीद पर भी असर पड़ा है.दूसरी वजह है, प्रधानमंत्री ग़रीब अन्न कल्याण योजना को सितंबर 2022 तक बढ़ाया जाना. इस साल एक अप्रैल सेंट्रल पूल में गेहूं का ओपनिंग स्टॉक लगभग 190 लाख टन था.केंद्र सरकार ने लगभग इस साल 195-200 लाख टन ही गेहूं ख़रीदने का लक्ष्य रखा है.
पीडीएस और प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना में गेहूं वितरण की साल भर की ज़रूरत को देखते हुए सरकार को 480 लाख टन गेहूं की ज़रूरत होगी.
देश की दो-तिहाई आबादी दुकानों में जाकर अब आटा नहीं ख़रीददती, बल्कि खाद्य वितरण प्रणाली और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत उन्हें गेहूं मिलता है, जिसे पिसवा कर वो आटे का इस्तेमाल करती है. यानी आटे के दाम केवल उन लोगों के लिए बढ़ा है, जो आटा ख़रीद कर खाते हैं. पीडीएस और प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना में गेहूं वितरण की साल भर की ज़रूरत को देखते हुए सरकार को 480 लाख टन गेहूं की ज़रूरत होगी. लेकिन पिछले साल के गेहूं का सरकारी स्टॉक और इस साल का स्टॉक मिला कर देखें को 380 लाख टन गेहूं की ज़रूरत ही पूरा होने की उम्मीद है. यानी 100 लाख टन की कमी अभी के अनुमान के मुताबिक़ भविष्य में कर हो सकती है.कुल मिला कर किसानों को और केंद्र सरकार दोनों को गेहूं के निर्यात से फ़ायदा ही हो रहा है लेकिन आम जनता इससे परेशान हो रहे हैं .
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