किसानों की दशा में आशानुरूप सुधार नहीं हो पाया है
भारत एक कृषि-प्रधान देश है. यहां की अधिकांश आबादी गांवों में बसती है और गांव के लोगों की आजीविका कृषि पर आधारित है. ये बातें हम बचपन से स्कूल की किताबों में पढ़ते आए हैं. यह बात सौ फीसदी सच भी है. सरकारें भी कृषि की उन्नति के लिए समय-समय पर विभिन्न योजनाएं लाती रही हैं. बावजूद इसके आज़ादी के इते वर्षों के बाद भी किसानों की दशा में आशानुरूप सुधार नहीं हो पाया है.
सरकार फिर अपना सुर बदल रही है
मौजूदा केन्द्र सरकार की नीतियों की वजह से देश का किसान नाराज़ है और इसी कारण लगातार कई महीनों तक किसान आन्दोलनरत रहे. सरकार ने 3 कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद किसानों ने आन्दोलन तत्काल वापस लिया, लेकिन सरकार फिर अपना सुर बदल रही है.
‘विश्वासघात दिवस’ मनाया गया
भारतीय किसान यूनियन (BKU) ने पिछले दिनों केंद्र सरकार पर किसानों से किए गए वादों को पूरा नहीं करने का आरोप लगाते हुए ‘विश्वासघात दिवस’ मनाया था. वहीं गुरुवार को दोपहर में दिल्ली में संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान योगेंद्र यादव ने कहा, “9 दिसंबर को केंद्र सरकार ने जो किसानों से वादा किया था, उसे पूरा नहीं किया गया है, इसलिए हमने 31 जनवरी को विश्वासघात दिवस मनाया.
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न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कमेटी नहीं बनाई गई
प्रेस कॉन्फ्रेंस में बात करते सवालों का जवाब देते हुए शिव कुमार शर्मा ने कहा, “न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कमेटी नहीं बनाई गई है. किसानों के ऊपर से केस भी वापस नहीं लिए गए हैं. उन्होंने कहा कि बिजली बिल के मुद्दे पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है. पराली के मुद्दे पर सरकार ने कुछ नहीं किया है. शिव कुमार ने कहा कि सरकार ने पांच बिंदुओं पर वादा खिलाफी की है. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस राकेश टिकैत, डॉ दर्शन पाल, हन्नान मौल्ला, जगजीत सिंह डल्लेवाल और जोगिंदर सिंह उगराहं ने भी हिस्सा लिया है.
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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