रासायनिक खेती के दुष्परिणामों के किसान भी अवगत होने लगे हैं
समय के साथ कृषि के क्षेत्र में काफी बदलाव देखा जा रहा है, जिसकी आवश्यकता भी है. रासायनिक खेती के दुष्परिणामों के किसान भी अवगत होने लगे हैं, इसीलिए अब देश के विभिन्न इलाकों में जैविक कृषि को अपनाया जा रहा है. केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से लगातार जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं.
जैविक खाद स्वयं ही तैयार करते हैं किसान वर्दीचन्द पटेल
सरकार जैविक खेती करने के लिए लोगों को जागरूक भी कर रही है, लेकिन राजस्थान के उदयपुर में एक किसान ने जैविक खेती को 20 साल पहले ही अपना लिया था. वर्त्तमान समय में ये किसान जैविक कृषि से लाखों में कमाई भी कर रहे हैं. खास बात यह है कि ये किसान जैविक खाद स्वयं ही तैयार करते हैं.
जैविक खेती की ऐसे की शुरुआत
किसान वर्दीचन्द पटेल के अनुसार वर्ष 2000 से पहले तक वे परंपरागत कृषि ही करते थे. बाजार में उपलब्ध रासायनिक खाद का खेती में उपयोग करते थे. एक बार एक परिचित ने वर्मी कम्पोस्ट खाद उपलब्ध कराई. भिंडी की खेती करते हुए उसमें यह खाद डाली तो अच्छा उत्पादन हुआ और अगली फसल में भी इसका लाभ मिला. उसके बाद वर्ष 2002 में उन्होंने स्वयं ही खाद बनाना शुरू किया. पहले तो अपनी खेती के लिए बनाई, कुछ किसानों ने देखा तो उन्हें भी दी. फिर इसका बड़े स्तर पर उत्पादन कर इसका व्यापार प्रारम्भ किया.
वर्दीचन्द पटेल ऐसे बनाते हैं जैविक खाद
वर्दीचन्द पटेल ने बताया कि गोबर लाते हैं और उसे एक हफ्ते तक खुले में रखते है, ताकि उसमें से गैस निकल जाए. फिर 20 फिट लंबी क्यारी बनाकर उनमे ऑस्ट्रेलियन केंचुए डालते हैं. एक क्यारी में खाद बनने में 60 दिन लगते हैं. फिर यह प्रक्रिया जारी रहती है. घरों में भी लोग शौकिया तौर पर गार्डनिंग करते हैं, जिसमें सब्जियां भी होती हैं. ऐसे में अगर उनको जैविक सब्जियां चाहिए, तो घर से निकले बची-खुची सब्जियों के कचरे को एकत्र कर उनमें केंचुए डाल देने पर खाद तैयार हो जाती है.
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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