
किसान सिर्फ अन्नदाता नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा हैं। जब यही आत्मा पीड़ा में हो, तो यह सिर्फ एक वर्ग की समस्या नहीं, पूरे देश की चिंता बन जाती है। कुछ ऐसी ही तस्वीर सामने आई मंझगांव विधानसभा क्षेत्र के कुमारडूंगी प्रखंड के कुमिरता गांव में, जहां किसानों की समस्याओं से रूबरू होने पहुंचे पूर्व मंत्री एवं भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष बड़कुंवर गागराई। खेतों में चलकर उन्होंने न केवल सूखती फसलों को देखा, बल्कि किसानों के दिल का दर्द भी महसूस किया।
उपजाऊ ज़मीन पर भी सूख रही हैं फसलें, पानी बना सबसे बड़ी चुनौती
गांव के खेतों में जहां हरियाली लहरानी चाहिए थी, वहां अब सूखे के निशान हैं। जमीन उपजाऊ है, मेहनती किसान भी हैं, लेकिन सिंचाई की व्यवस्था ना होने के कारण उनकी मेहनत पर पानी नहीं, बल्कि दुखों की परतें चढ़ रही हैं। श्री गागराई ने खेतों का निरीक्षण करते हुए कहा, “यह देखकर बेहद दुःख होता है कि जहां खेती लहलहानी चाहिए, वहां आज किसान अपनी ही जमीन पर लाचार खड़ा है।”
राज्य सरकार की उपेक्षा से आहत हैं किसान
किसानों ने बताया कि उन्होंने कई बार अपने विधायक और संबंधित अधिकारियों को ज्ञापन सौंपकर सिंचाई और कृषि सहायता की मांग की, लेकिन बार-बार अनसुना किया गया। आज हालत यह है कि अधिकांश किसान कर्ज के बोझ में दबे हुए हैं, और रोज़गार की तलाश में गांव छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। उनके परिवार आर्थिक, सामाजिक और मानसिक संकट से जूझ रहे हैं।
“किसानों के साथ हर हाल में खड़ा रहूंगा” – बड़कुंवर गागराई
पूर्व मंत्री गागराई ने किसानों को आश्वस्त किया कि वह इस मुद्दे को न केवल संगठन स्तर पर, बल्कि सरकार के समक्ष भी मजबूती से उठाएंगे। उन्होंने कहा, “भारत कृषि प्रधान देश है, लेकिन आज किसान सबसे अधिक उपेक्षित है। यदि सरकार अब भी नहीं जागी तो आने वाला समय और भी भयावह होगा। मैं किसानों की इस लड़ाई में हर कदम पर साथ हूं और रहूंगा।”
भावुक हुए नेता, छलक पड़ी संवेदनाएं
खेतों में किसानों की हालत देखकर श्री गागराई भी भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक गांव की बात नहीं, बल्कि पूरे राज्य के किसानों की सच्चाई है। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक किसानों की आवाज़ को सुनकर उसे नीतियों में नहीं बदला जाएगा, तब तक असली विकास अधूरा है।
स्थानीय ग्रामीणों में जागी उम्मीद
श्री गागराई की पहल से स्थानीय किसानों में एक नई उम्मीद जगी है। उन्हें विश्वास है कि अब उनकी पीड़ा को राजनीतिक गलियारों तक पहुंचाने वाला कोई है। ग्रामीणों ने एक स्वर में कहा कि अगर सभी नेता इस तरह जमीन पर उतरकर किसानों की बात सुनें, तो शायद गांव की तस्वीर बदल सकती है।

शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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