यह खामी प्राथमिक जांच में निकल कर सामने आई है लेकिन अधिकारियों ने इसकी पुष्टि नहीं की है। वहीं, इस हादसे ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। प्रशासनिक अधिकारियों ने मेले के आयोजन की मंजूरी देने के बाद यह देखना तक मुनासिब नहीं समझा कि सुरक्षा से संबंधित इंतजाम पूरे हैं या नहीं।
ड्रॉप टॉवर झूला दुनिया में खतरनाक माना जाता है। ऐसे में इस झूले का संचालन करने के लिए सख्त मानक है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार दशहरा मैदान में आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए कोई प्रबंध नहीं था। यही कारण है कि हादसे के बाद लोगों को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस तक की लोगों को सुविधा नहीं मिली। आपातकालीन नंबर भी डिसप्ले नहीं किए गए थे। प्राथमिक उपचार की भी सुविधा नहीं थी।
पार्किंग का नहीं था प्रबंधन, पुलिस की गाड़ी 15 मिनट में पहुंची
रविंद्र सिंह ने बताया कि वह परिवार के साथ मेले में आए थे। आयोजन स्थल पर पार्किंग का सही इंतजाम नहीं था। पुलिस की गाड़ी को ही मौके पर पहुंचने पर 15 मिनट लग गए। इससे लोगों का गुस्सा और भड़क गया। जब पुलिसकर्मी घटनास्थल पर पहुंचे तो लोग उलझ गए। लोगों का कहना था कि वह पुलिस कंट्रोल रूम में लगातार फोन कर रहे थे लेकिन आपने आने में देरी कर दी। पुलिस मुलाजिमों ने उन्हें बड़ी मुश्किल से शांत किया।
मैदान में एक भी फायर गाड़ी नहीं थी
दशहरा मैदान में आगजनी की घटना से निपटने के लिए एक भी दमकल विभाग की गाड़ी नहीं थी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या प्रशासन ने मेले की मंजूरी देने के बाद चेक भी किया था कि वहां पर इंतजाम पूरे हैं या नहीं। हालांकि जिला प्रशासन ने हादसे की जांच का आदेश दिया है।
टाइम लाइन
- 9:00 बजे झूला गिरा, भगदड़ मची
- 9:05 बजे पुलिस को सूचना मिली
- 9:15 बजे सिविल अस्पताल सूचना मिली
- 9:24 बजे पुलिस घटनास्थल पर पहुंची
- 9:45 बजे पुलिस ने मरीजों को अस्पताल पहुंचाया
- 10:00 बजे एसडीएम अस्पताल पहुंचीं
- 10:15 बजे अस्पताल में मरीजों के एक्स-रे हुए
- 10:30 बजे पुलिस ने मेले को बंद करवाया
- 10:30 बजे अस्पतालों में भर्ती मरीजों की पहचान हुई
- 12:30 बजे मरीजों के परिजनों को सूचित किया गया