प्राचीन समय से ‘धर्म और राजनीति’ अथवा ‘राजनीति और धर्म’ में गहरा संबंध रहा है जब-जब धर्म व राजनीति का नकारात्मक मिलन हुआ है तब तक राजनीति ने धर्म का दुरुपयोग किया है। धर्म के नाम पर शुद्ध राजनीति करने से विश्व में हमेशा खून खराबा हुआ है जो आज भी जारी है। आज भी सभी धर्मों में धर्मांध कट्टरपंथी मरने मारने को तैयार है।
धर्म व राजनीति के संबंध
राम मनोहर लोहिया के अनुसार “धर्म और राजनीति के दायरे अलग-अलग हैं परंतु दोनों की जड़ें एक ही धर्म दीर्घकालीन राजनीति में जब की राजनीति अल्पकालीन धर्म है। धर्म का काम भलाई करना जबकि राजनीति का कार्य बुराई से लड़ना और बुराई की निंदा करना है। समस्या तब उत्पन्न होती है जब राजनीति बुराई से लड़ने के स्थान पर केवल निंदा करती है, तो वह कलही हो जाती है, इसलिए आवश्यक नहीं कि धर्म और राजनीति के मूल तत्व को समझा जाए।
राजनीति में धर्म की भूमिका क्या है
भारतीय राजनीति के निर्धारक तत्व में भी धर्म और सांप्रदायिकता को अत्यंत प्रभावशाली माना गया है जहां एक और धर्म का प्रयोग तनाव उत्पन्न करने के लिए किया जाता है वहीं दूसरी और धर्म का प्रभाव और शक्ति अर्जित करने का एक माध्यम भी मान लिया गया है।
भारतीय राजनीति में धर्म की निर्मल की भूमिका देखी जाती है-
1. धार्मिक व सांप्रदायिक राजनीतिक दल
स्वतंत्रता पूर्व ही भारत में धर्म के आधार पर राजनीतिक दलों का गठन होने लगा था जैसे मुस्लिम लीग,हिंदू महासभा आदि। धर्म के नाम पर भारत का विभाजन होने के बावजूद यह राजनैतिक दल न केवल अस्तित्व में रहे बल्कि धार्मिक सांप्रदायिकता को बढ़ावा देते रहे। यह सांप्रदायिक दल धर्म को राजनीति में प्रधानता देते हैं धर्म के आधार पर प्रत्याशियों को चुनाव करते हैं और संप्रदाय के नाम पर वोट मांगते हैं।
2. पृथक राज्यों की मांग
अनेक बार अप्रत्यक्ष रूप से धर्म के आधार पर पृथक राज्य की मांग भी की जाती है पंजाब में अकाली दल द्वारा अलग राज्य की मांग ऊपरी स्तर पर तो भाषा ही नजर आती है परंतु यथार्थ रूप से यह धर्म के आधार पर पृथक राज्य की मांग थी आगे कुछ ऐसा ही नागालैंड के ईसाई समुदाय ने भी पृथक राज्य की मांग का आधार तैयार किया है।
3.उम्मीदवारों का चुनाव
सभी राजनीतिक दल चुनाव से पहले अपने उम्मीदवारों का चयन करते हैं ऐसा करते समय लगभग सभी राजनीतिक दल उम्मीदवारों के धर्म तथा चुनाव क्षेत्र के लोगों के धर्म के प्रति विशेष ध्यान देते हैं इस प्रकार धर्म को समक्ष रखकर उम्मीदवारों का चयन भारतीय राजनीति पर सांप्रदायिक प्रभाव दर्शाता है।
4.मंत्रिमंडल का निर्माण
केंद्र एवं राज्य के मंत्रिमंडल के निर्माण में भी हमेशा इस बात को ध्यान में रखा जाता है कि प्रमुख धार्मिक संप्रदायों के लोगों को उसमें प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाए।
5.धर्म पर आधारित चुनाव विश्लेषण
भारतीय राजनीति में धर्म के प्रभाव को इस बात में भी अनुमानित किया जा सकता है कि जो चुनाव विश्लेषण पत्रिकाओं में छपते हैं वे भी मुख्यतः धर्म एवं जाति पर आधारित होते हैं विश्लेषणकर्ता चुनाव निष्कर्ष मतदाताओं के धर्म एवं उम्मीदवारों के धर्म के आधार पर ही निश्चित करता है।
भारत में अनेक धर्मों को मानने वाले लोग
भारत में अनेक धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं इसलिए संविधान निर्माताओं ने संपूर्ण भारत के लोगों को भ्रातृत्व के सूत्र में बांधने के ख्याल से ही संविधान में भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया इसका एकमात्र उद्देश्य था कि धर्म को राजनीति से हटा दिया जाए l
आज के राजनीतिक दल धर्म और संप्रदाय को राजनीतिक सफलता के रूप में मानते और अपनाते हैं। आम चुनाव के दिनों में धार्मिक आधार पर प्रतिनिधित्व की मांग की जाती है।
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