देश का आधुनिक शहर कहा जाने वाला शहर जमशेदपुर, प्रसिद्ध उद्योग समूह टाटा की कई कंपनियों के कारण विदेशों में इसकी अलग पहचान है। इन कंपनियों के कारण यहां विभिन्न राज्यों के लोग रहते हैं और उनका सशक्त संगठन भी यहां है। बावजूद इसके मिनी इंडिया कहे जाने वाले जमशेदपुर के लोगों को अब तक तीसरे मत का अधिकार नहीं मिल पाया है। यह झारखंड का अनोखा शहर है, जहां के लोग लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए मतदान करते हैं, स्थानीय निकाय के लिए प्रतिनिधि चुनने की उनकी तमन्ना अबतक पूरी नहीं हो पाई है।
शहर में तीन-तीन निकाय
ये अलग बात है कि इस शहर में तीन-तीन निकाय हैं। इनमें जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति (जमशेदपुर अक्षेस), मानगो नगर निगम और जुगसलाई नगर परिषद शामिल हैं। यह भी अनोखी बात है कि एक ही शहर में तीन-तीन निकाय हैं। पूरे देश में अब कहीं पर भी अधिसूचित क्षेत्र समिति (अक्षेस) नहीं है, लेकिन जमशेदपुर में है। अब तो नगर निगम, नगर पर्षद और नगर पंचायत ही होते हैं। जमशेदपुर में निर्वाचित निकाय नहीं होने के पीछे एक लंबी और पेचीदा कहानी है।
35 वर्ष से चल रही कानूनी लड़ाई
35 साल पहले जमशेदपुर के मानवाधिकार कार्यकर्ता जवाहरलाल शर्मा को यह बात अखरने लगी कि निर्वाचित नगर निकाय नहीं है। चूंकि यह मामला मौलिक अधिकार से जुड़ा था, इसलिए 1988 में उन्होंने सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसकी सुनवाई के बाद अगले साल 1989 में सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन बिहार सरकार को जमशेदपुर में नगरपालिका चुनाव कराने का आदेश दे दिया।
अदालतें दे चुकी हैं आदेश
बिहार सरकार ने चुनाव के लिए अधिसूचना भी जारी कर दी लेकिन टाटा स्टील इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई और चुनाव रुक गया। दोबारा शर्मा अदालत पहुंचे और कई वर्ष के बाद फिर पटना हाईकोर्ट ने इस मामले में चुनाव कराने का आदेश दिया, पर उसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया।
समझौते के आश्वासन पर बंद हुआ था 2016 में मामला
लंबी अदालती लड़ाई के बाद 15 जुलाई 2016 को सुप्रीम कोर्ट मदन बी लोकुर व आदर्श कुमार गोयल की खंडपीठ ने याचिका निष्पादित कर दी थी। ऐसा उसने झारखंड सरकार के उस शपथ पत्र पर किया था कि जिसमें उसने कहा था कि उसका टाटा स्टील के साथ समझौता हो गया है। इसके बाद 17 अगस्त 2017 को झारखंड सरकार ने मानगो नगर निगम और जुसगलाई नगर परिषद के गठन की अधिसूचना जारी कर दी, लेकिन चुनाव आजतक नहीं हो सका। दूसरी ओर, जमशेदपुर अक्षेस क्षेत्र, जो वास्तव में कंपनी कमांड एरिया है, के चुनाव पर सरकार निर्णय नहीं ले सकी।
कई बैठकों के बाद भी नहीं हो पाया निर्णय
टाटा स्टील अपने लीज क्षेत्र में ऐसा औद्योगिक शहर चाहती है, जिसमें उसके अधिक से अधिक मनोनीत प्रतिनिधि हों, परंतु उसके स्वरूप पर सरकार कई बैठकों और सर्वे के बावजूद कोई निर्णय नहीं ले सकी। विवाद इस बात पर भी है कि इसी क्षेत्र में 86 बस्तियां हैं। कंपनी उसे औद्योगिक शहर का हिस्सा बनाने से हिचक रही है। परंतु भौगोलिक दृष्टिकोण से उन्हें अलग करना असंभव है, इसलिए इस पर कोई फैसला नहीं हो सका।
पिछड़ों का आरक्षण बना पेंच
मानगो और जुगसलाई में चुनाव के लिए दो-दो बार मतदाता सूची बनी है, परंतु चुनाव नहीं हो सका है। इसका कारण यहां पर पिछड़ों का आंकड़ा उपलब्ध नहीं होना है, जिसके आधार पर उन्हें भी सीटों का आरक्षण देना है। अब आबादी का पता लगाने के लिए ट्रिपल टेस्ट की बात हो रही है। परंतु इसके लिए भी आयोग गठन की जरूरत है, जो राज्य सरकार आजतक नहीं कर सकी है।
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