अखिल झारखंड छात्र संघ के अध्यक्ष हेमंत पाठक के नेतृत्व में डिमना स्थित हलुदबानी में वीर शहीद सिधो-कान्हो के मूर्ति पर माल्यार्पण करके श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया और संकल्प लिया गया कि किसी भी गलत के खिलाफ जोरदार आवाज उठा कर उस गलत का विरोध भी करना है।
1855 में झारखंड के आदिवासियों ने अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार के खिलाफ बिगुल फूंका था : हेमंत पाठक
इस मौके पर हेमंत पाठक ने कहा 30 जून, 1855 को झारखंड के आदिवासियों ने अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार के खिलाफ पहली बार विद्रोह का बिगुल फूंका। इस दिन 400 गांवों के 50000 लोगों ने साहिबगंज के भोगनाडीह गांव पहुंचकर अंग्रेजों से आमने-सामने की जंग का एलान कर दिया। आदिवासी भाइयों सिद्धो-कान्हो और चांद-भैरव के नेतृत्व में तब संथालों ने मालगुजारी नहीं देने और अंग्रेज हमारी माटी छोड़ो का जोर-शोर से एलान किया। अंग्रेजों ने तब संथाल विद्रोहियों से घबराकर उनका दमन प्रारंभ किया। इसकी प्रतिक्रिया में आदिवासियों ने अंग्रेजी सरकार की ओर से आए जमींदारों और सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया। तब विद्रोहियों को सबक सिखाने के लिए अंग्रेजों ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं। चांद और भैरव को अंग्रेजों ने मार डाला।
सिधो-कान्हो को 26 जुलाई 1855 को फाँसी दे दी गई थी
सिद्धो और कान्हो को भोगनाडीह में ही पेड़ से लटकाकर 26 जुलाई 1855 को फांसी दे दी गई। लेकिन इनकी वीरता आज भी प्रत्येक झारखंडी के दिल में झारखंड के भारतीय स्वतंत्रता सेनानियो का इतिहास झारखंड के पाठ्यक्रम में पढ़ने की आवश्यकता है।
इस मौके पर जिला कार्यकारी अध्यक्ष साहेब बागती,अध्यक्ष जगदीप सिंह , प्रदीप राय ,अभिमन्यु सिंह,राहुल कुमार ,मनीष कुमार,मंटू सतुआ, बादल कुमार, प्रद्युम नामता,दीपक कुमार रमेश कुमार, इत्यादि उपस्थित थे।
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