सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से की जा रही कॉल अब पुलिस के लिए मुसीबत बनती जा रही है। इसके चलते केस के अनुसंधान और अपराधियों की धर-पकड़ में परेशानी हो रही है। 80% अपराधी वर्तमान में सीधे कॉल न कर सोशल मीडिया के किसी न किसी एप्लीकेशन का सहारा लेकर बात करते हैं। इसकी कॉल डिटेल निकालने में पुलिस को परेशानी का सामना करना पड़ता है, क्योंकि एप्लीकेशन संचालित करने वाली कंपनी से तत्काल मदद नहीं मिल पाती।
फर्जी आईडी भी बना रखी है
बात करने के लिए ही अपराधियों ने अपनी फर्जी आईडी बना रखी है। उसी आईडी से वे लोग अपने लोगों से बात करते हैं। गिरोह को साथ रखने व उनकी गतिविधियों को संचालित करने में भी उनके द्वारा इन्हीं एप्लीकेशंस के मैसेंजर का सहारा लिया जाता है।
10% ही करते हैं सिम से कॉल
साइबर पुलिस और पुलिस की टेक्निकल टीम द्वारा अपराधियों की टोह लेने के लिए जब कॉल डिटेल पर काम किया जाता है तो उसमें पता चलता है कि महज 10% ही अपराधी ऐसे हैं, जो अपने गिरोह के लोगों से बात करने के लिए सिम का इस्तेमाल करते हैं।
पुलिस कर रही है मुख्यालयों से सम्पर्क
लेकिन अब पुलिस को जिन अपराधियों की आईडी हाथ लगी है, अब उनकी आईडी के आधार पर ही कॉल का विवरण निकाला जा रहा है। उसमें संभावित खतरा और साथ ही वर्तमान में उनकी सक्रिय आपराधिक गतिविधियों का भी हवाला दिया जा रहा है।
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