अगर स्थानीय नीति लागू हो जाए तो लौहनगरी जमशेदपुर, जहाँ टाटा ग्रुप ने 1907 में टाटा स्टील की स्थापना की। 1932 के सर्वे सेटलमेंट को आधार माना जाए तो टाटा स्टील 1907 में शुरू हुई थी, तो क्या जमशेदपुर पूरी तरह से टाटा स्टील के अधीन हो जाएगा? क्योंकि टाटा ग्रुप ने अंग्रेजी हुकूमत के साथ कम्पनी शुरू करने की प्रक्रिया पूरी की थी। इस स्थानीय नीति विधयेक से एक और बात निकल कर सामने आ रहीं हैं कि- राँची, जमशेदपुर, धनबाद की 75 प्रतिशत आबादी स्थानिय नीति से बाहर है। क्योंकि ये वो लोग हैं जो इन शहरों में औधोगिकरण के समय यहाँ पर नौकरी करने आए थे और बाद में यहीं बस गए।
इनमें से ज्यादातर लोग बिहार के हैं क्योंकि आज से 22 वर्ष पहले झारखंड बिहार का हिस्सा हुआ करता था और जो लोग इन शहरों में आ कर बसें उस वक्त वो किसी दूसरे प्रदेश से पलायन करके झारखंड नही आए थे बल्कि अपने ही प्रदेश बिहार के दूसरे शहरों में आ कर बसें और इन शहरों को बेहतर बनाने में अपना योगदान दिया। सरकार को इस पर गौर करना चाहिए था क्योंकि सरकार ने राज्य की बड़ी संख्या में वोटर्स को निराश किया है स्थानीय नीति से बाहर रखकर। क्योंकि ये वो मतदाता हैं जिनका मत इन शहरों में लोकसभा और विधानसभा चुनावों का परिणाम तय करता है।
अब हम ज़रा 9वी अनुसूची पर आते हैं, इस विधेयक को हेमंत सरकार ने केंद्र सरकार से इसे 9वी अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव दिया है। 9वी अनुसूची के बारे में ये अक्सर कहा जाता हैं कि भारत सरकार जिस भी विषय को 9वी अनुसूची में शामिल कर ले, उसे देश के किसी भी अदालत में चुनौती नही दी जा सकती है और यह बात बहुत हद तक सत्य भी है। परन्तु 9वी अनुसूची में शामिल किया जाने वाला हर वो विषय जो नागरिकों के मूल अधिकार को प्रभावित करता हो उस पर अदालत कार्रवाई कर सकती है।
फ़िलहाल इस प्रस्ताव को हेमंत सरकार ने केंद्र सरकार को भेज दिया है और इस पर आख़री निर्णय केंद्र सरकार को लेना है। अगर केंद्र सरकार इस विधेयक को सदन में रख भी दे तो भी यह प्रस्ताव शायद ही लोकसभा और राज्यसभा में पास हो पाए। इसका सीधा निष्कर्ष निकलता हैं कि झारखंड मुक्ति मोर्चा, कोंग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल की गठबंधन सरकार के पास लोकसभा और राज्यसभा में बहुमत नहीं है।
केंद्र में सत्तारूढ़ NDA यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार हैं और NDA की सरकार ने झारखंड में पूर्व सरकार में रहकर रघुवर दास की नेतृत्व में 1985 को कट-ऑफ़ डेट मानकर स्थानीय नीति की घोषणा की थी, जिसे बाद में हेमंत सरकार ने झारखंड में सत्ता में आने के बाद खारिज़ कर दिया था और तब से ही 1932 के खतियान की चर्चा चल रही थी।
बहरहाल, अगर परिस्थितियों को समझा जाए तो झारखंड सरकार द्वारा प्रस्तावित नई स्थानीय नीति और नई आरक्षण प्रणाली अधर में लटकती नज़र आ रही है क्योंकि संसद के दोनों सदनों में ना तो हेमंत सोरेन बहुमत जुटा पाएँगे और ना ही केंद्र सरकार इसे लेकर गंभीर है। झारखंड के राजनीतिक गलियारे में यहाँ तक चर्चा हैं कि हेमंत सरकार इसे एक बड़ा मुद्दा बनाकर जनता के सामने चुनावी मैदान में उतरेगी।
By Rishabh Rahul
Join Mashal News – JSR WhatsApp Group.
Join Mashal News – SRK WhatsApp Group.
सच्चाई और जवाबदेही की लड़ाई में हमारा साथ दें। आज ही स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें! PhonePe नंबर: 8969671997 या आप हमारे A/C No. : 201011457454, IFSC: INDB0001424 और बैंक का नाम Indusind Bank को डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर कर सकते हैं।
धन्यवाद!