
शहर में स्कूलों में चलने वाली निजी बसें टाइम के चक्कर में तेज रफ्तार से चलती हैं। इसके चलते ही अक्सर हादसे होते हैं। छोटे हादसों को तो नजरअंदाज कर दिया जाता है लेकिन, जब बड़ी घटनाएं होती हैं तो उनकी रफ्तार पर सवाल उठने लगते हैं।
शहर के विभिन्न स्थानों से स्कूलों के लिए 80 बसों का परिचालन होता है। 90% स्कूलों की अपनी बसें नहीं हैं। इनके बच्चे या तो ऑटो, वैन या फिर अन्य बसों से स्कूल आना-जाना करते हैं। निजी बसों में तीन से चार स्कूलों के बच्चे आना-जाना करते हैं।
समय के अंतर पर आपाधापी
स्कूलों में समय का सामंजस्य नहीं है। इसके चलते स्कूलों के खुलने और बंद होने का एक समय निर्धारित नहीं है। इसके साथ ही स्कूलों में निम्न, मध्यम और उच्च कक्षाओं के अनुसार ही छुट्टी होने का समय निर्धारित है। इसके चलते ही एक स्कूल से दूसरे स्कूल में बच्चों को लाने और ले जाने में रफ्तार बढ़ जाती है।
स्कूलों में स्कूल लगने और छुट्टी का एक समय निर्धारित हो जाए तो किसी को दिक्कत नहीं होगी। अलग-अलग स्थानों से चलने वाली बसें उस स्थान के बच्चों को लेकर स्कूलों में जाती हैं। स्कूलों में समय की और छुट्टी की एकरूपता हो तो दिक्कत नहीं होगी।
– एसएन पाल, संरक्षक, स्कूल वाहन एसोसिएशन
स्कूल अपनी बसों को चलाना नहीं चाहते। यदि बसें चलने लगे तो छात्रों को आसानी होगी और समय की भी दिक्कत नहीं होनी होगी। स्कूली वाहनों में जिस तरह से बच्चों को ढोया जाता है, वह बर्दाश्त योग्य नहीं है। इस दिशा में कार्रवाई होनी चाहिए।
– डॉ. उमेश कुमार, अध्यक्ष, अभिभावक संघ

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