वे कुड़मालि भाषा और साहित्य के उत्थान, संरक्षण एवं संवर्धन में वे मुखर रहे-विश्वनाथ
बोड़ाम प्रखंड के बारियादा में कुड़मालि भाषा दिवस मनाया गया। इस अवसर पर कुड़मी भाषा के संरक्षक एवं विख्यात प्रचारक लक्ष्मीकांत मुतरुआर का जन्म जयंती मनाई गई। मौके पर लोगों ने लक्ष्मीकांत मुतरुआर को श्रद्धांजलि दी। वहीं कुड़मि दिवस की खुशी में लोगों के बीच मिठाईयां बांटी गई। इस अवसर पर विश्वनाथ महतो ने कहा कि 22 अप्रैल को लक्ष्मीकांत मुतरुआर के जयंती को कुड़मालि भाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है। लक्ष्मीकांत मुतरुआर ने अपने जीवन में कुड़मालि भाषा के संरक्षण और प्रचार प्रसार में काफी योगदान दिया है।
वे सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ शिक्षा प्रेमी एवं नारी शिक्षा के प्रबल पक्षधर भी थे
उन्होंने कहा कि लक्ष्मीकांत मुतरुआर कुड़मालि जगत के अनमोल रत्न थे, उन्होंने कुड़माली भाषा के प्रचार प्रसार एवं इसकी गहन अध्ययन में अहम योगदान दिया है। कहा कि लक्ष्मीकांत मुतरुआर ने पारंपरिक कुड़माली रीति-रिवाजों को स्थापित करने के लिए कुड़माली नेगाचारि पद्धति से अपने माता पिता का क्रिया कर्म (मरखी) एवं अपने बेटा बेटियों की शादी भी कराई थी। वे सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ शिक्षा प्रेमी एवं नारी शिक्षा के प्रबल पक्षधर भी थे।
कुड़मालि भाषा के अलावा संथाली, बांगला, हिंदी,नागपुरी, मुण्डारी, संस्कृत अंग्रेजी आदि भाषाओं के ज्ञाता थे
नारी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने ही गांव में बालिका विद्यालय की स्थापना की। साथ ही कई उच्च विद्यालयों की स्थापना में अहम भूमिका निभाई। इसी क्रम में झारखंड प्रदेश में स्थानीय भाषा की शिक्षा आंदोलन को खड़ा करने में अग्रणी भूमिका भी निभाई ।अपनी मातृभाषा कुड़मालि भाषा और साहित्य के उत्थान, संरक्षण एवं संवर्धन में वे मुखर रहे। ये कुड़मालि भाषा के अलावा संथाली, बांगला, हिंदी,नागपुरी, मुण्डारी, संस्कृत अंग्रेजी आदि भाषाओं के ज्ञाता थे।
राज्य सरकार भी हमारी भाषा-संस्कृति के संरक्षण में गंभीर नहीं है-विश्वनाथ
विश्वनाथ महतो ने कहा, “वर्तमान समय में राज्य में अपनी भाषा, संस्कृति, नेगाचारी, सभ्यता पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। हमें अपनी भाषा-संस्कृति की रक्षा के लिए आंदोलन करना पड़ रहा है। यदि हमारी भाषा – संस्कृति विलुप्त हो जाएगी, तो आने वाले समय में हमारी पीढ़ियों को अपने भाषा संस्कृति की जानकारी नहीं होगी। धीरे धीरे पाश्चात्य संस्कृति हमारे समाज पर हावी हो रही हैं, जो कि समाज के लिए काफी घातक है। राज्य सरकार भी हमारी भाषा-संस्कृति के संरक्षण में गंभीर नहीं है।”
ये रहे मौजूद
मौके पर विश्वनाथ, प्रबोध महतो, वृंदावन महतो, खुदीराम, अश्वनी महतो सुधांशु महतो, मुचीराम महतो, रामचंद्र महतो, भाग्यधर महतो, असित महतो, कृतिवास महतो, सुधांशु महतो, मनबोध महतो, तारापद महतो, देवेन महतो, दयाल महतो, दिलीप महतो, संजय महतो, भूतनाथ महतो, सुमित महतो, मनसा कर्मकार, मनोज कर्मकार, सुमित कर्मकार, रामचंद्र सहिस, लखीकांत महतो, हिमानी महतो, संजुक्ता महतो, बेबीरानी महतो, पूर्णिमा महतो आदि शामिल थे।
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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