सोशल मीडिया पर किसी भी गलत सूचना को चिन्हित करने का भी काम है फैक्ट चेक का
सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत नवंबर 2019 में पीआईबी में एक फैक्ट-चेक यूनिट स्थापित की गई थी, जिसे केंद्र सरकार से संबंधित फर्जी खबरों का स्वत: संज्ञान लेने और नागरिकों द्वारा भेजे गए प्रश्नों के माध्यम से संज्ञान लेने का काम सौंपा गया. इसे सही जानकारी के साथ इन सवालों का जवाब देने और सोशल मीडिया पर किसी भी गलत सूचना को चिन्हित करने का भी काम सौंपा गया है, लेकिन जब सूचना के अधिकार के तहत जब इसके आउटपुट की जानकारी मांगी गई तो प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो यानि पीआईबी ने बताया है कि इसकी फैक्ट-चेक यूनिट भारतीय सूचना सेवा के दो अधिकारियों द्वारा चलाई जाती है- एक संयुक्त निदेशक और एक सहायक निदेशक.
फैक्ट-चेक यूनिट के अधिकारियों का मूल्यांकन करने वाला कोई डोमेन विशेषज्ञ भी नहीं
आरटीआई में यह भी स्वीकार किया गया है कि पीआईबी की फैक्ट-चेक यूनिट के अधिकारियों का मूल्यांकन करने वाला कोई डोमेन विशेषज्ञ भी नहीं है. पीआईबी ने अपने जवाब में माना है कि यह फैक्ट-चेक यूनिट वर्तमान में बिना किसी वैधानिक आधार या संस्थागत तंत्र के काम कर रही है.
पीआईबी ने अपने जवाब में खुलासा किया है कि पिछले तीन वर्षों यानी अप्रैल 2020 से इंटरनेट पर सूचनाओं का फैक्ट-चेक करने के लिए इसे लगभग 1.2 लाख अनुरोध प्राप्त हुए हैं, जबकि इसने उनमें से केवल 1,223 पर ही कार्रवाई की है- जो कि 1 फीसदी की मामूली दर है.
कामकाज से जुड़ी अपर्याप्तताएं चिंता का कारण
इसके द्वारा की गई फैक्ट-चेकिंग को जांचने/मूल्यांकित करने में विशेषज्ञता का अभाव, फैक्ट-चेक यूनिट के मुख्यालय के भीतर इसके स्तर और क्षमता का कथित मुद्दा और सक्रिय होने के साथ-साथ कामकाज से जुड़ी अपर्याप्तताएं चिंता का कारण हैं. इन्हीं चिंताओं ने कई हितधारकों, विशेष रूप से समाचार मीडिया संगठनों और पत्रकारों को हैरान किया है कि यह उनकी बोलने की स्वतंत्रता और सूचना प्राप्त करने के अधिकार को कैसे प्रभावित कर सकता है.
‘द वायर’ से साभार
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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