अप्रैल माह के पहले सप्ताह में ही जहां दोपहर का तापमान 36 डिग्री है। वही झारखंड शिक्षा विभाग के निर्देश से सभी सरकारी स्कूलों के संचालन के समय में परिवर्तन कर सुबह 7.30 से दोपहर 1 बजे किया गया है। हर दिन स्कूल बंद होने के समय दोपहर 1 बजे 36 डिग्री और उससे ज्यादा रह रहा है। आने वाले दिनों में तपिश और भी बढ़ने की उम्मीद है।
इस स्थिति में सूर्य के रौद्र की तपिश झेल स्कूली बच्चे घर लौटने को मजबूर हैं। सबसे हैरत की बात है कि प्राइमरी और प्री स्कूल के बच्चे का भी स्कूल इसी शेड्यूल से संचालित हो रहा है। इससे छोटे बच्चों की स्थिति स्कूल से लौटने में कैसी रहती होगी इस स्थिति से विभाग अनभिज्ञ है।
कई निजी स्कूलों का भी संचालन इसी शेड्यूल के तहत किए जाने से बच्चों को गर्मी से काफी परेशानी हो रही है। निजी और सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले कई बच्चे तपिश बढ़ने से डिहाइड्रेशन समेत गर्मी संबंधित अन्य परेशानी से पीड़ित हो रहे हैं। तपिश बढ़ते ही दोपहर 12 बजे के बाद सड़कों पर लोगों का आवागमन कम रहने से सड़कों पर सन्नाटा पसर रहा है। वही तेज धूप में तपते हुए स्कूली बच्चों को घर लौटते देख लोग शिक्षा विभाग की कई प्रकार की चर्चा कर रहे है।
वायु प्रदूषण से बिगड़ते स्वास्थ्य के बारे में किया गया जागरूक
बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण बिगड़ती स्वास्थ्य के बारे में आम नागरिकों के बीच जागरूकता पैदा करने और स्वस्थ्य जीवन शैली का नेतृत्व करने हेतु समाधान की जानकारी हासिल करने के लिए, स्विच ऑन फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक वेबिनार में इंटर स्टेट डॉक्टर और सिविल सोसाइटी संगठन एक साथ आए। वेबिनार में स्वास्थ्य और कल्याण, सामाजिक और आर्थिक विकास पर असमानताओं के नकारात्मक प्रभावों और बंगाल, झारखंड और ओडिशा में बेहतर और अधिक समान स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से सभी के लिए स्वास्थ्य में सुधार के लाभों पर प्रकाश डाला गया।
वर्चुअल कार्यक्रम के प्रथम भाग में एक प्रशिक्षण सत्र के बाद एक पैनल चर्चा भी आयोजित की गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि लगभग पूरी वैश्विक आबादी (99%) ऐसी हवा में सांस लेती है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देशों की सीमा से अधिक है और इसमें प्रदूषकों का स्तर काफी उच्च है। पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि यद्यपि वायु प्रदूषण सभी को प्रभावित करता है, लेकिन कुछ लोग जैसे बच्चे, वृद्धों, गर्भवती महिलाओं और पहले से मौजूद हृदय और फेफड़ों की बीमारी वाले लोगों के लिए ये ज्यादा संवेदनशील होते हैं।
कोलकाता, ओडिशा और झारखंड के फेफड़ा रोग विशेषज्ञ, कैंसर रोग विशेषज्ञ और बाल रोग विशेषज्ञों ने अपनी अहम भूमिका
वर्चुअल कार्यक्रम में कोलकाता, ओडिशा और झारखंड के फेफड़ा रोग विशेषज्ञ, कैंसर रोग विशेषज्ञ और बाल रोग विशेषज्ञों ने अपनी अहम भूमिका निभाई। जो समाज के कमजोर वर्ग पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को उजागर कर रहा है। स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव की वर्तमान स्थिति को समझने के लिए विभिन्न संगठनों ने स्वेच्छा से प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया। वेबिनार में भाग लेने वाले रांची के राज अस्पताल की फेफड़ा रोग विशेषज्ञ डॉ. सुप्रोवा चक्रवर्ती ने बताया कि, “पीएम2.5 जैसे सूक्ष्म वायु प्रदूषक मुंह, नाक और यहां तक कि आंखों के माध्यम से श्वसन प्रणाली में प्रवेश कर सकते हैं और अस्थमा, पुरानी फेफड़ों की गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं।
वुडलैंड्स मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, कोलकाता के पल्मोनोलोजिस्ट डॉ. अरूप हलदार ने कहा, “एक निश्चित मात्रा में एक्सपोजर से, बच्चे अधिक जोखिम में होते हैं क्योंकि वे गहरी और तेज सांस लेते हैं। संवेदनशील व्यक्तियों को लंबे समय तक बाहरी परिश्रम को सीमित करने पर विचार करना चाहिए।
Join Mashal News – JSR WhatsApp Group.
Join Mashal News – SRK WhatsApp Group.
सच्चाई और जवाबदेही की लड़ाई में हमारा साथ दें। आज ही स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें! PhonePe नंबर: 8969671997 या आप हमारे A/C No. : 201011457454, IFSC: INDB0001424 और बैंक का नाम Indusind Bank को डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर कर सकते हैं।
धन्यवाद!