श्रीनाथ विश्वविद्यालय तथा श्रीनाथ कॉलेज ऑफ एजुकेशन के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का समापन बुधवार काे हुआ। अंतिम दिन देश भर के वक्ताओं ने सेमिनार काे संबोधित किया। मुख्य अतिथि डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि शिक्षा नीति को लागू करना हमारा काम है और हमें बदलाव के लिए तैयार रहना चाहिए। प्रत्येक विश्वविद्यालय अगर समय सीमा को समझे तो शिक्षा नीति को लागू करने में आधी समस्या यहीं दूर हो जाएगी।
राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन एक सकारात्मक प्रयास
हमें शिक्षा में व्यवहारिकता लाने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन एक सकारात्मक प्रयास है। वहीं सरला बिरला यूनिवर्सिटी के कुलपति डाॅ गाेपाल पाठक कहा – 1968 की शिक्षा नीति को हम सही तरीके से लागू नहीं कर सके। उसके बाद 1986 में शिक्षा नीति आई और उसी का संशोधित रूप 1992 में हमारे बीच आया। मैं आप सभी से आग्रह करता हूं कि आप शिक्षा नीति को पहले ठीक से पढ़े तभी इसका सफलतापूर्वक क्रियान्वयन हो पाएगा। उन्हाेंने कहा कि शिक्षा आपकी अधूरी है अगर आप की संस्कृति आपके साथ नहीं है।
जमशेदपुर वीमेंस यूनिवर्सिटी की कुलपति डॉ. अंजिला गुप्ता ने कहा कि एनईपी में लचीलापन है इसमें विज्ञान का विद्यार्थी भी कला के विषयों का अध्ययन कर सकता है यह नीति हमें शिक्षा प्राप्त करने की स्वतंत्रता देती है। वहीं डॉ एनके अग्रवाल ने कहा कि इस सेमिनार में हम लोग विभिन्न शिक्षा नीतियों की यात्रा करेंगे और एनईपी पर भी विस्तृत चर्चा हमें करना है । हम पर दुनिया की निगाहें लगी हुई है, यहां हमें सोचना है कि हम पहले क्या थे, अभी क्या हैं और आगे क्या हमें होना है।
कोल्हान विश्वविद्यालय के एनएसएस कोऑर्डिनेटर दारा सिंह ने भी संबोधित किया। श्रीनाथ विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गोविंद महतो ने कहा एनईपी में उच्च शिक्षा में पहली बार बीएससी, बीए, बीकॉम करने की परंपरा अपने समाप्ति के कगार पर है, आज जो हो रहा है, वह देश में पहले नहीं हुअा। यह नीति भारत में एक क्रांति के रूप में आई है, जो शिक्षा काे पूरी तरह बदल देगी।
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