बिहार में “वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 को त्वरित रूप से लागू करने व आदिवासियों को कानूनी रूप से वन अधिकार सुनिश्चित करने की मांग फिर से तूल पकड़ा है।
घटना:
आए दिन बिहार में वन अधिकारीयों द्वारा अदिवासियों व वनवासियों पर दमन व उत्पीड़न की घटना सामने आती रहती है। लेकिन हाल ही में रोहतास थाना क्षेत्र अंतर्गत दिनांक 4 जनवरी 2023 बुधवार की ये घटना एक आदिवासी महिला की हत्या से जुड़ा हुआ है। रोहतासगढ़ पंचायत के नागाटोली में गुलरिया घाटी के पास 30 वर्षीय महिला राजकली उरांव का लाश संदिग्ध हालात में मिला।
ग्रामीण प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि लगभग दो – ढाई बजे राजकली उरांव कुछ महिला के साथ लकड़ी चुनने गई थी। लकड़ी चुनने के क्रम में कुछ वन अधिकारीयों ने उनलोगों दौड़ाया और पीछा किया। सभी महिला भागकर घर चली आयी परंतु राजकली उरांव रात तक घर नही लौटी तो कुछ ग्रामीण एवं परिजनों ने रात से ही खोजबीन शुरू की मगर दूसरे दिन लगभग दो बजे दोपहर को उस महिला की लाश गुलरिया घाटी में मिली।
अक्रोशित ग्रामीणों का आरोप है कि वन अधिकारीयों ने ही दुष्कर्म के बाद हत्या करके गड्ढे में फेंक दिया। दूसरी ओर वन- विभाग के रेंजर हेमचंद्र मिश्रा का कहना है कि वन- विभाग के अधिकारीयों के गाड़ी का आवाज़ सुनकर सभी महिलाएं खुद भागने लगी भागने के क्रम में गड्ढे में गिरने से उस महिला की मौत हुई होगी।
कुछ समाचार पत्रों में इस घटना से अक्रोशित लोगों और अधिकारियों के बीच झड़प की ख़बर भी मिली। घटाना से अक्रोशित होकर कई संगठन ‘कैमूर वन अधिकार संघर्ष मोर्चा, ‘भीम आर्मी’ के बिहार प्रदेश महासचिव डॉ शैलेश सागर सहित अन्य लोगों ने निष्पक्ष न्यायिक जांच की मांग की साथ ही “वन अधिकार अधिनियम 2006 को लागू करने के लिए मांग को भी उठाया। इस घटना के बाद प्रदेश में FRA 2006 लागू करने हेतु आवाज़ पुनः तीव्र होती दिखाई दे रही है।
“वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006” क्या है?
• वर्ष 2006 में अधिनियमित (FRA:Forest Rights Act, 2006) वन में निवास करने वाले आदिवासी समुदायों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के वन संसाधनों के अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है, जिन पर ये समुदाय आजीविका, निवास तथा अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक ज़रूरतों सहित विभिन्न आवश्यकताओं के लिये निर्भर थे।
• यह वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों (FDST : Forest land in forest Dwelling Scheduled Tribes) और अन्य पारंपरिक वनवासी (OTFD: Other Traditional Forest Dwellers) जो पीढ़ियों से ऐसे जंगलों में निवास कर रहे हैं, को वन भूमि पर उनके वन अधिकारों को मान्यता देता है ।
• यह FDST और OTFD की आजीविका तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए वनों के संरक्षण की व्यवस्था को मज़बूती प्रदान करता है।
• ग्राम सभा को व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) या सामुदायिक वन अधिकार (CFR) या दोनों जो कि FDST और OTFD को दिये जा सकते हैं, की प्रकृति एवं सीमा निर्धारित करने हेतु प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार है।
वन अधिकार अधिनियम के तहत मिलने वाले अधिकार:
• स्वामित्व अधिकार:
> यह FDST और OTFD को अधिकतम 4 हेक्टेयर भू-क्षेत्र पर आदिवासियों या वनवासियों द्वारा खेती की जाने वाली भूमि पर स्वामित्व का अधिकार देता है।
> यह स्वामित्व केवल उस भूमि के लिये है जिस पर वास्तव में संबंधित परिवार द्वारा खेती की जा रही है, इसके अलावा कोई और नई भूमि प्रदान नहीं की जाएगी।
• अधिकारों का प्रयोग:
> वन निवासियों के अधिकारों का विस्तार लघु वनोत्पाद, चराई क्षेत्रों आदि तक है।
• राहत और विकास से संबंधित अधिकार:
> वन संरक्षण के लिये प्रतिबंधों के अधीन अवैध बेदखली या जबरन विस्थापन और बुनियादी सुविधाओं के मामले में पुनर्वास का अधिकार शामिल है।
• वन प्रबंधन अधिकार:
> इसमें किसी भी सामुदायिक वन संसाधन की रक्षा, पुनः उत्थान या संरक्षण या प्रबंधन का अधिकार शामिल है, जिसे वन निवासियों द्वारा स्थायी उपयोग के लिये पारंपरिक रूप से संरक्षित एवं सुरक्षित किया जाता है।
• संवैधानिक महत्व व प्रावधान का विस्तार:
> यह संविधान की पाँचवीं और छठी अनुसूचियों के जनादेश का विस्तार करता है जो भूमि या जंगलों जिनमें वे स्वदेशी समुदाय निवास करते हैं, पर उनके दावों को संरक्षण प्रदान करता है ।
> इसमें सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों को मान्यता देकर वन शासन को लोकतांत्रिक बनाने की क्षमता है।
यह सुनिश्चित करेगा कि लोग अपने जंगलों का प्रबंधन स्वयं करें, यह अधिकारियों के माध्यम से वन संसाधनों के दोहन को नियंत्रित करेगा जिससे वन शासन में सुधार होगा और आदिवासी अधिकारों का बेहतर प्रबंधन करेगा।
• प्रशासनिक व राजनैतिक उदासीनता के साथ कॉरपोरेट्स लूट का शिकार होते आदिवासी समुदाय:
> चूँकि अधिकांश राज्यों में आदिवासी एक बड़ा वोट बैंक नहीं हैं, इसलिये सरकारों को वित्तीय लाभ के पक्ष में FRA को हटाना तथा इसे विमर्शहीन बना देना बिल्कुल भी परेशान नहीं करता और सुविधाजनक लगता है। क्योंकि पक्ष व विपक्ष में बैठे राजनेताओं की राजनीति वोट बैंक के अलावा कुछ नही है इसलिए आदिवासियों व उनके अधिकारों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
वन अधिकारियों ने आदिवासियों हेतु कल्याणकारी उपाय के बजाय अतिक्रमण को नियमित करने के लिये एक साधन के रूप में FRA की गलत व्याख्या की है। साथ कॉरपोरेट्स को डर है कि वे मूल्यवान प्राकृतिक संसाधनों तक सस्ती पहुँच को खो सकते हैं।
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