कर्नाटक के बेंगलुरु शहर में घोर लापरवाही का ऐसा वाकया सामने आया है, जिससे यह सोचने को विवश होना पड़ता है, कि इस देश में सरकारी विभागों के काम करने के तरीके कब बदलेंगे, कब सुधरेंगे ? लगभग सवा साल बाद दो लाशें सड़ी-गली हालत में बेंगलुरु के ESI अस्पताल के शवगृह में मिलीं. इन दोनों की मौत पिछले साल जुलाई माह में कोरोना की पहली लहर के दौरान हुई थी. महानगरपालिका की लापरवाही का आलम यह कि उसने दोनों का अंतिम संस्कार किए बिना ही घरवालों के सामने अंतिम संस्कार की पुष्टि कर दी और शव मोर्चरी में गलते रहे. दो कोविड मरीज़ों के शवों के साथ हुई लापरवाही के इस गंभीर मामले को लेकर परिजनों ने काफी नाराजगी व्यक्त की है.
एक मृतक की बहन ने कहा, ”मेरे भाई की की मौत कोविड-19 से हुई थी, इसलिए उन्होंने पार्थिव शरीर हमें नहीं दिया तो हम घर वापस आ गए. बृहत बेंगलुरु महानगरपालिका (बीबीएमपी) ने हमें बताया कि उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया है. 15 महीनों बाद अब भाजपा की तरफ से कॉल आया और बताया गया कि उनका अंतिम संस्कार नहीं हुआ है.” पिछले साल जुलाई में कोविड से मौत के बाद दुर्गा और मुनिराजु के पार्थिव शरीर ESI अस्पताल के शवगृह में रखे रहे. साफ-सफाई के दौरान जब पिछले सप्ताह इनके बारे में जानकारी मिली, तो ईएसआई ने जांच के आदेश दिए, लेकिन परिवार वालों को अब भी विश्वास नहीं हो रहा है, कि दोनों मृतकों के शव अभी भी अस्पताल में पड़े हैं.
मुनिराजु की बेटी चेतना इससे काफी मर्माहत हैं. उन्होंने कहा, ”इन्होंने कहा है कि आगे का सारा काम ये ही लोग देख लेंगे. जब तक येह खत्म नहीं होता हम यहीं रहेंगे. हमारे लिए शव को ले जाने के लिए कुछ नहीं बचा है. हमारे दूसरे रिश्तेदार भी यहां आ रहे हैं. इन लोगों की लापरवाही से हम बहुत दुःखी हैं हमें न्याय चाहिए.” हालत यह है कि शव बुरी तरह से गल चुके हैं, ऐसे में इनका पोस्टमॉर्टम करना भी बहुत मुश्किल काम है. कहा जा रहा है कि सीधे तौर पर यह लापरवाही अस्पताल प्रशासन के साथ-साथ महानगरपालिका की है.
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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