राज्य के अधिकतर उच्च विद्यालयों एवं प्लस टू उच्च विद्यालयों में वर्ग-वार शिक्षकों का अभाव
राज्य सरकार लाख कोशिश कर ले शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने की, मगर हकीकत में सरकारी विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था नहीं सुधर रही है। एक मौजूदा आंकड़े के आधार पर पूरे राज्य में 90000 शिक्षकों का पद रिक्त हैं। 5000 से भी अधिक ऐसे विद्यालय हैं, जो वर्तमान में एकल शिक्षक पर संचालित हो रहे है। राज्य के अधिकतर उच्च विद्यालयो एवं प्लस टू उच्च विद्यालयों में वर्ग – वार शिक्षकों का अभाव है।
उसके बावजूद वर्त्तमान में सेवारत शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाने के लिए सरकार एवं विभाग द्वारा ज्यादा जोर दिया जा रहा है, जैसे-जाति प्रमाण पत्र बनवाना, फूलो झानो का फार्म भरवाना, खाता खुलवाना, आधार कार्ड बनवाना, प्रत्येक दिन मध्याह्न भोजन की रिपोर्ट एसएमएस के माध्यम से देना एवं मासिक रिपोर्ट भेजना, विद्यालय में एसएमसी की मासिक बैठक आयोजित करना, प्रत्येक 3 माह में पिटीएम मीटिंग करना, प्रखंड कार्यालय से चावल एवं किताब विद्यालय तक लाना, विद्यालय का रंग रोगन करना, छात्रवृत्ति विवरण रिपोर्ट तैयार करना, शिशु पंजी रिपोर्ट तैयार करना,
ई विद्या वाहिनी में विद्यार्थियों की उपस्थिति दर्ज कराना, भंडार पंजी, रिकॉर्ड पंजी को अपडेट करना, साथ ही शिक्षकों को विभागीय आदेश के आधार पर चेक नाके पर भी ड्यूटी करना, राशन कार्ड का सर्वे करना, जनगणना का सर्वे करना, प्रखंड एवं जिला गोष्ठी में शामिल होना , मतदाता सूची पुनरीक्षण का कार्य करना आदि आदि। उच्च विद्यालय में तो कुछ काम लिपिक के माध्यम से हो जाता है, मगर प्राथमिक विद्यालय एवं मध्य विद्यालय के सभी काम शिक्षक ही करते हैं।
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यूँ ही दे दिया जाता है क्लास प्रोमोशन
अधिकारी विद्यालय में निरीक्षण करने आते हैं तो यह नहीं पूछते हैं कि किस विषय में कहां तक पढ़ाई हुई है, बल्कि इन सारी रिपोर्ट का जायजा पहले लेते हैं। ऐसे में झारखंड के सरकारी विद्यालयों की स्थिति पर यहां की आम जनता चिंतित है और सरकार ढिंढोरा पीट रही है कि इतने प्रतिशत बच्चों को मैट्रिक में उत्तीर्ण करवा दिए। जहां तक बात है मेट्रिक या प्लस टू में छात्र-छात्राओं के प्राप्तांक की, तो मेरा कहना है कि जिस विद्यालय में विषयवार शिक्षकों में छात्र – छात्रा अनुत्तीर्ण होते हैं उक्त विद्यालय के संबंधित शिक्षक का वेतन बंद न हो जाय, इसीलिए चूंकि वही शिक्षक कोपी जांचते हैं, अतः वे छात्र -छात्राओं को अनुत्तीर्ण कराने के बारे में सोचते ही नहीं ।फल स्वरूप देखा जा रहा है कि छात्र कुछ भी नहीं जानता है, मगर उसने 70 से 75% अंक अर्जित किया है।
इस तरह की व्यवस्था में झारखंड के विकास की कल्पना कैसे की जा सकती है ?
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आलेख-
उज्जवल कुमार मंडल का
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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