संयुक्त ग्राम सभा मंच के बैनर तले चंपा व रजनी हथिनियों को जंजीर से आजाद करवाने को दलमा क्षेत्र में निकली पदयात्रा
संयुक्त ग्राम सभा मंच के बैनर तले चंपा व रजनी हथिनियों को जंजीर से आजाद करवाने के सवालों को लेकर कल 5 दिसंबर को शहरबेड़ा स्थित दलमा के मुख्य द्वार से माकुलाकोचा फुटबॉल मैदान तक पदयात्रा की गई। पदयात्रा का नेतृत्व शहरबेड़ा ग्राम के पारंपरिक ग्राम प्रधान मान सिंह मार्डी, कदमझोर ग्राम के पारंपरिक प्रधान अनंत सिंह व चाकुलिया ग्राम के पारंपरिक प्रधान अनुप टुड्डू ने किया। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग शामिल थे।
चंपा व रजनी का आखिर दोष क्या है ?- अनुप टुडू
चाकुलिया ग्राम के पारंपरिक ग्राम प्रधान अनूप टुडू ने कहा कि चंपा व रजनी जंजीर में कैद हैं, इसका साफ मतलब है कि आदिवासी -मूलवासियों को जंजीर में कैद करके रखा है। सभी लोग वन पदाधिकारियों से सवाल करने के लिए आये हैं कि चंपा व रजनी का आखिर दोष क्या है, जिन्हें आप हमेशा जंजीरों में कैद करके रखते हैं ? इनकी गिरती स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए व भोजन के लिए आखिर कौन जिम्मेवार है ? इसका जवाब यहां के वन पदाधिकारियों को देना होगा। आदिवासियों का अधिकार है कि जो भी ग्राम सभा के क्षेत्र में किसी भी प्राणियों के साथ अन्याय होगा, तो सब उनको बचाने के लिए हमेशा खड़े होंगे।
वन विभाग द्वारा चंपा व रजनी के साथ क्रूर व्यवहार किया जा रहा है, यह बर्दाश्त नहीं- अनंत सिंह
कदमझोर ग्राम के पारंपरिक ग्राम प्रधान अनंत सिंह ने कहा, “हमारे पूर्वज सदियों से इस दलमा पहाड़ में रहने वाले तमाम प्राणियों के साथ अपना गुजर बसर करते आए हैं। हम अपने जीवन व संस्कृति का एक हिस्सा हम यहां के वन प्राणियों को मानते हैं, लेकिन यहां जो वन विभाग के पदाधिकारियों के द्वारा जो चंपा व रजनी के साथ क्रूर व्यवहार किया जा रहा है, इसे कभी हम आदिवासी -मूलवासी भाई-बंधु बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। यह हमारे जल-जंगल-जमीन के लूट के साथ यहां के रहनेवाले प्राणियों के साथ एक तरह से क्रूर मजाक नहीं तो और क्या है?”
आखिर ये कौन लोग हैं जो आदिवासी -मूलवासियों के जीवन के साथ-साथ यहां के जंगल व वन प्राणियों के साथ भद्दा मजाक कर रहे हैं ?- मान सिंह मार्डी
आगे शहरबेड़ा ग्राम के पारंपरिक प्रधान मान सिंह मार्डी कहते हैं, ‘दलमा पहाड़ को जब से इनको सेंसेटिव जोन घोषित किया तो सबसे पहले हमारी संस्कृतियों पर हमला किया गया। आज तो यहां तक हमारे राज्यकीय पशु को भी जंजीर में कैद करके रखा गया है। हर साल इको सेंसेटिव जोन के नाम करोड़ों रूपए यहां के वन प्राणियों के साथ यहां बसे हुए आदिवासी -मूलवासियों के विकास के लिए आते हैं, लेकिन उन रूपयों का कागज पर बंदरबांट हो जाता है। अगर आप दलमा तराई के क्षेत्र में घुमेंगे, तो विकास की हकीकत आपको देखने के लिए मिलेगी। हम जानना चाहते हैं कि आखिर ये कौन लोग हैं जो आदिवासी -मूलवासियों के जीवन के साथ-साथ यहां के जंगल व वन प्राणियों के साथ भद्दा मजाक कर रहे हैं ?
यह पदयात्रा तो यहां के वन पदाधिकारियों को एक चेतावनी है- अनूप महतो
आगे संयुक्त ग्राम सभा मंच का अनूप महतो कहते हैं, “ हम प्रकृति पूजक भी हैं और इस प्रकृति में रहनेवाले तमाम जीवजंतुओं का रक्षक भी। अगर कोई हमारी प्रकृति के साथ -साथ हमारे वन प्राणियों के जीवन के साथ खिलवाड़ करेगा, हम कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। यह पदयात्रा तो यहां के वन पदाधिकारियों को एक चेतावनी है। अगर इनके बाद भी चंपा व रजनी को सही ढंग से भोजन व स्वास्थ्य की देखभाल नहीं होगी तो आगे भी संघर्ष जारी रहेगा।
Netarhat Field Firing Range | Virodh aur sankalp diwas 2022 | Tutuwapani se Ranchi tak padyatra |
क्या इको सेंसेटिव जोन का कायदे कानून सिर्फ दलमा तराई के क्षेत्र में रहनेवाले आदिवासी -मूलवासियों पर ही लागू होता है?-शुकलाल पहाड़िया
संयुक्त ग्राम सभा मंच के संयोजक शुकलाल पहाड़िया उर्फ दलमा टाईगर ने कहा, “ये कौन लोग हैं जो हमारे ही घर में हमारे ही राज्यकीय पशु को कैद करके रखा है। वन विभाग के पदाधिकारियों को ये जवाब देना होगा कि चंपा व रजनी को कब जंजीरों से आजाद करेंगे ? उसे भी इस दलमा पहाड़ में स्वतंत्र घुमने का अधिकार है, क्योंकि इस दलमा को हाथी अभ्यारण्य के नाम से जाना जाता है और यहां के साथी को ही जंजीर में हमेशा कैद रखा जा रहा है ! इस दलमा जंगल से कीमती लकड़ियां काटी जा रही हैं, एक तरह से कहें तो जंगल को खत्म किया जा रहा है। इसमें भी यहां के वन पदाधिकारियों का मिली भगत है।
आज इको सेंसेटिव जोन के नाम पर हमारे पारंपरिक वाद्ययंत्र से लेकर पारंपरिक शस्त्र पर भी प्रतिबंध कर दिया, लेकिन आज इस इको सेंसेटिव जोन में बड़े-बड़े पैरों वालों का होटल व बड़ी -बड़ी बिल्डिंग बनी हुई है। आखिर हम पूछना चाहते हैं क्या इको सेंसेटिव जोन का कायदे कानून सिर्फ दलमा तराई के क्षेत्र में रहनेवाले आदिवासी -मूलवासियों पर ही लागू होता है? आन्दोलनकारियों ने कहा कि अगर उनकी मांगों पर कोई भी कार्रवाई नहीं होती है, तो आगे संयुक्त ग्राम सभा मंच आगे आंदोलन करने को बाध्य होगा और इसके लिए जिम्मेवार वन विभाग के पदाधिकारी होंगे।
पदयात्रा में शामिल रहे
इस पदयात्रा में भूषण पहाड़िया, कृष्णा बेड़ा, मेनका किस्कू ,सुनील हेम्ब्रम, गोविंद उरांव, बसंती सरदार, विजय तंतुबाई, रूपाय मांझी, पंकज हेम्ब्रम, दिनकर कच्छप , अंकित महतो , विष्णु गोप, चंदन महतो, अंकुर महतो , सुमित महतो, मोतीलाल मुर्मू, दीपक महतो, कृष्णा महतो, गुरूचरण लोहार, गुरूचरण सिंह आदि मुख्य रूप से उपस्थित थे।
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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