देशभर में जहां-तहां बिखरी प्राचीन चिकित्सा पद्धति अब दस्तावेजों में सहेजी जायेगी. चिकित्सा पद्धति और जड़ी-बूटियों के दस्तावेजीकरण के लिए टाटा स्टील फाउंडेशन देशभर के वैद्यों की सूची तैयार करा रहा है. इसके लिए नेशनल हिलर्स एसोसिएशन के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया जारी है. यह जानकारी टाटा स्टील फाउंडेशन के एक अधिकारी ने दी. उन्होंने बताया कि टाटा स्टील फाउंडेशन ने अनौपचारिक रूप से राष्ट्रीय हिलर्स एसोसिएशन का गठन किया है.
तीन वर्षों से देश के विभिन्न राज्यों के वैद्यों की सूची बना रहा है
यह एसोसिएशन तीन वर्षों से देश के विभिन्न राज्यों के वैद्यों की सूची बना रहा है. हालांकि, कोरोना के कारण अब तक एसोसिएशन का रजिस्ट्रेशन नहीं कराया गया है. रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया जारी है. दरअसल, भारत की चिकित्सा पद्धति दुनिया की प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में से एक है. हालांकि, अब तक इसका व्यापक विस्तार नहीं हो पाया है. वहीं, हमारी चिकित्सा पद्धति के लगभग दो हजार वर्ष बाद प्रचलन में आयी एलोपैथिक व होम्योपैथिक पद्धति काफी आगे निकली गयी हैं. इसका मुख्य कारण हमारी चिकित्सा पद्धतियों के दस्तावेजीकरण नहीं होना है. आदिवासी इलाकों में आज भी जड़ी-बूटियों से इलाज होता है. कई इलाकों में वैद्य हैं, जो कारगर इलाज करते हैं.
30 वैद्यों को दिलाया प्रशिक्षण
टाटा स्टील फाउंडेशन ने वैद्यों के दस्तावेजीकरण के लिए बेंगलुरु स्थित ट्रांस डिसिप्लीनरी यूनिवर्सिटी (टीडीयू) से देश के सात राज्यों से 30 वैद्यों को दस्तावेजीकरण के लिए मास्टर प्रशिक्षण दिलवाया है. इन वैद्यों ने अब तक मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, तमिलनाडु में 110 हिलर्स को दस्तावेजीकरण के लिए प्रशिक्षित किया है.
जड़ी-बूटियों को सहेजने में जुटी हैं कंपनियां
गोपाल मैदान में आयोजित संवाद-22 में आये डॉ गजेंद्र ने प्रभात खबर से बातचीत में कहा कि टाटा स्टील फाउंडेशन का उद्देश्य जड़ी-बूटियों की चिकित्सा पद्धति ग्रामीण स्तर पर लोगों को मुहैया कराना है. डॉ गजेंद्र मध्य प्रदेश के जबलपुर संभाग में बैंगा और गोंड जनजातियों पर काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि टाटा स्टील फाउंडेशन के अलावा देश की कई कंपनियां भी जड़ी-बूटियों के दस्तावेजीकरण में लगी हुई हैं. इनमें दवा कंपनी पिरामल फाउंडेशन भी शामिल है.
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