मैं उर्दू हूं…मेरी अच्छाई ही अब मुझे दर्द देने लगी है। मैं सभी भाषाओं में घुल मिल गई, लेकिन अब गुम होने लगी हूं। यह उस भाषा की पीड़ा है जो आजादी के बाद 1966 तक सबसे साथ चलती गई, लेकिन इसके बाद पिछड़ने लग गई। आज हिमाचल प्रदेश में उर्दू का इस्तेमाल हर व्यक्ति करता है। उर्दू की शब्दावली सभी भाषाओं में घुल मिल है, लेकिन इसको सरकार ने तवज्जो नहीं दी। हालांकि कुछ सरकारी विभागों में अब भी उर्दू का इस्तेमाल होता है, लेकिन कई बार इसे पढ़ने के लिए कोई व्यक्ति नहीं मिल पाता। इससे पता चलता है कि प्रदेश में अब इस भाषा की स्थिति क्या है।
विश्व उर्दू दिवस इतिहास
विश्व उर्दू दिवस सर मुहम्मद इकबाल की जयंती को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है, जिनका जन्म 9 नवंबर 1877 को हुआ था. वह एक दक्षिण एशियाई मुस्लिम लेखक, दार्शनिक और राजनीतिज्ञ थेI उर्दू भाषा में उनकी कविता 20वीं सदी की महानतम कविताओं में से एक थीI ब्रिटिश शासित भारत के मुसलमानों के लिए उनकी सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि पाकिस्तान के लिए आवेग को चेतन करना थाI उन्हें सम्मानित अल्लामा द्वारा संदर्भित किया गया था I
क्यों मनाते हैं उर्दू दिवस
यह दिन इसलिए भी उल्लेखनीय है क्योंकि इस दिन उर्दू के प्रसिद्ध शायर मुहम्मद इकबाल का जन्म दिवस भी है. इस दिन कई कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जिनमें सेमिनार, सिम्पोजियम, मुशायरे आदि आयोजित होते हैं, जिनका मुख्य विषय यह होता है कि कैसे उर्दू को भारत में एक जीवित भाषा के रूप में न केवल बाकी रखा जाए, बल्कि उसकी उन्नति के कार्य किए जाएं और उसे गैर-उर्दू देशवासियों तक पहुंचाया जाएI
‘बहुत घाटे में है उर्दू ज़बाँ क्यों, मोहब्बत की ज़बाँ होते हुए भी’
दुनिया की सबसे मीठी और तहजीब वाली ज़बान की बात की जाए तो हर कोई उर्दू का नाम ही लेगा. इस जबान को पसंद करने और चाहने वालों की तादाद बढ़ती ही जा रही है हालांकि इसके पढ़ने वालों की तादाद में कमी होती जा रही हैI
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