शहर की साहित्यिक संस्था “दबिस्तान-ए-जमशेदपुर” ने अपने पांच साल पूरे होने के अवसर पर एक शानदार मुशायरा एम ओ एकेडमी, जाकिर नगर के सैयद सुलेमान हॉल में विगत संध्या आयोजित किया l जिसमें बड़ी संख्या में शहर के साहित्य प्रेमी तथा प्रतिष्ठित व्यक्ति सम्मिलित हुए। मुशायरे की अध्यक्षता प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो अहमद बदलने की। मुख्य अतिथि के रूप में करीम सिटी कॉलेज के प्राचार्य डॉ मोहम्मद रेयाज तथा अतिथि स्वरूप श्री बिलाल अहमद (एसीएफ चाईबासा डिवीजन) शामिल हुए।
मुशायरा शुरू होने से पूर्व डॉक्टर हसन इमाम मलिक (मैनेजर, स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट, टाटा स्टील) को संस्था की तरफ से सम्मानित किया गया। इसके अलावा अहमद बद्र के काव्य संग्रह “सायबान शीशे का” का विमोचन भी हुआ। रात्री की नमाज के बाद मुशायरा प्रारंभ हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि ने अपने संबोधन में कहा कि हमारे शहर में साहित्य का एक रौशन इतिहास रहा है। यहां एक से बढ़कर एक शायर पैदा हुए जिन्होंने यहां का माहौल साहित्यमई किया तथा अपनी रचनाओं तथा कला से यहां की संस्कृति को सुसज्जित किया। आज नई पीढ़ी के इन उभरते हुए शहरों को देखकर और सुनकर बड़ी खुशी हुई। यही शायर भविष्य में जमशेदपुर का प्रतिनिधित्व करेंगे।
मुशायरा में अपनी रचनाएं प्रस्तुत करने वाले शायरों में वालीउल्लाह वली, सरफराज शाद, शोएब अख्तर, सकलैन मुश्ताक, फरहान खान फरहान सफीउल्लाह सफी, सद्दाम गनी, मुस्ताक अहजन, असर भागलपुरी, गौहर अजीज, रिजवान औरंगाबादी तथा सैयद शमीम अहमद मदनी के नाम प्रमुख हैं। मुशायरे का संचालन बड़े ही सुंदर अंदाज में प्रसिद्ध शायर गौहर अजीज ने किया तथा अंत में सद्दाम गनी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
इस मुशायरे में पढ़ी गई गजलों के एक एक शेर नमूने के तौर पर इस प्रकार हैं-
- कोई मंजिल नहीं है फिर भी रस्ता नापते रहिए
जो कहता था मुसाफिर से वो रहबर याद आता है …. सरफराज शाद - वो तो बुजदिल हैं उन्हें खौफे कजा है लेकिन
हमको आता है हुनर मौत पे मर जाने का …. शोएब अख्तर - क्या खबर फिर ये मुलाकात कभी हो कि न हो
जाने वाला तू मुझे कोई निशानी दे दे … सकलेन मुश्तक - फरहान जब कभी भी लगी जंगलों में आग
देखा गया नदी के भी ऊपर धुआं धुआं … फरहान खान फरहान - उनकी मिदहत करें कोई क्या ऐ सफी
जिक्र जिनका करे चारसू आइना …. सफीउल्लाह सफी, - नफरत से हर एक जंग को वो जीतना चाहे
ये शेवा सियासत का बदल क्यों नहीं जाता … सद्दाम गनी - तेरी आंखों ने धुआं देखा नहीं
जल रहे थे कुछ मकां देखा नहीं …. गौहर अजीज - रात हो गई बच्चों को पढ़ाने में लगे हैं
खुद बन न सके उनको बनाने में लगे हैं … मुंहफट जमशेदपूरी - लोग जितने बाखबर होने लगे
दूसरों पर मुुनहसिर होने लगे …. अहमद बद्र
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