राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पत्रकारों को बताया कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी नहीं चाहते हैं कि गांधी परिवार का कोई भी सदस्य पार्टी का अध्यक्ष बने. गहलोत ने पहली बार इस बात की पुष्टि की है कि वो निश्चित रूप से खुद अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे.
इसके पहले सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर भी चुनाव लड़ने के इरादे की घोषणा कर चुके हैं. साथ ही दिग्विजय सिंह ने भी चुनाव लड़ने में दिलचस्पी दिखाई है. मीडिया रिपोर्टों में मनीष तिवारी, कमल नाथ और मुकुल वासनिक का नाम भी दावेदारों के रूप में लिया जा रहा है.
अध्यक्ष पद के लिए नामांकन कराने की आखिरी तारीख 30 सितंबर है. ये सभी नेता अगर चुनाव के लिए नामांकन कराते हैं तो यह एक ऐतिहासिक प्रतियोगिता होगी, लेकिन इससे पहले इन नेताओं को कई अड़चनों से गुजरना होगा.
गांधी नहीं तो फिर कौन?
सबसे पहली समस्या तो यह है कि कम से कम 11 राज्यों की प्रदेश कांग्रेस समितियों ने बाकायदा संकल्प पारित कर कहा है कि वो राहुल को ही अपने नेता के रूप में देखना चाहती हैं. लेकिन राहुल खुद इस अनुरोध को ठुकरा चुके हैं.
कांग्रेस के एक सूत्र ने नाम ना जाहिर करने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया कि प्रदेश समितियों के ये संकल्प मौखिक हैं और सिर्फ गांधी परिवार के प्रति उनकी श्रद्धा के रूप में पारित किए गए हैं. इस सूत्र के मुताबिक प्रदेश समितियों के सदस्य यह जानते हैं कि ये संकल्प ‘महत्वहीन’ हैं.
ऐसे में सुई गांधी परिवार से हट कर चुनाव लड़ने के लिए इच्छुक बाकी नेताओं पर जा कर रुकती है, लेकिन इस संकेत के साथ कि पार्टी को अध्यक्ष के रूप में वही नेता स्वीकार्य होगा जिसकी गांधी परिवार की भूमिका में श्रद्धा हो.
मनीष तिवारी का पलड़ा सबसे कमजोर
इनमें से मनीष तिवारी का पलड़ा सबसे कमजोर माना जा रहा है, क्योंकि उन्हें पिछले कई महीनों से पार्टी के अंदर एक बागी के रूप में देखा जाता है. वो पार्टी में सुधारों की मांग कर रहे जी-23 नाम के उस समूह का हिस्सा हैं, जिसके कपिल सिबल और गुलाम नबी आजाद जैसे सदस्य पार्टी से इतनी दूर जा चुके थे कि उन्हें पार्टी छोड़ कर चले ही जाना पड़ा.
कमल नाथ की बेहद विवादास्पद छवि है. 2020 में मध्य प्रदेश में चुनाव जीतने के बावजूद वो खुद अपनी ही सरकार बचाने में नाकामयाब भी रहे थे. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उनके भांजे रतुल पुरी के खिलाफ वीवीआईपी हेलीकॉप्टर डील में घोटाले में आरोप दर्ज किए हुए हैं और जांच भी चल रही है.
शशि थरूर की छवि ?
मुकुल वासनिक की छवि लोकप्रिय नेता की नहीं है और उनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. दिग्विजय सिंह तो कई सालों से पार्टी के अंदर हाशिए पर कर दिए गए हैं. उनके पास इस समय पार्टी में कोई पद नहीं है.
मीडिया रिपोर्टों में शशि थरूर को अध्यक्ष पद के लिए एक गंभीर उम्मीवार माना जा रहा है. वो पूर्व अंतरराष्ट्रीय सिविल सर्वेंट हैं, केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं, बतौर सांसद अपने तीसरे कार्यकाल में हैं और मीडिया और सोशल मीडिया में भी बहुत लोकप्रिय हैं, लेकिन विवादों से परे नहीं हैं. तिवारी की तरह वो भी जी-23 समूह में शामिल हैं.
थरूर के जीतने के कितने आसार हैं इसका अंदाजा कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ के एक ट्वीट से भी मिलता है.वल्लभ ने लिखा है कि उनके लिए “चयन बहुत सरल और स्पष्ट है” क्योंकि सोनिया गांधी जब अस्पताल में भर्ती थीं, ऐसे समय में “शशि थरूर साहब” ने पार्टी पर सवाल उठा कर “पार्टी के करोड़ों कार्यकर्ताओं को पीड़ा पहुंचाई.”
वहीं दूसरी तरफ़ श्री शशि थरूर साहब हैं,जिनका पिछले 8 वर्षों में पार्टी के लिए एक ही प्रमुख योगदान है-कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी जी को तब चिट्ठियाँ भेजी जब वह अस्पताल में भर्ती थीं,इस कृत्य ने मेरे जैसे पार्टी के करोड़ों कार्यकर्ताओं को पीड़ा पहुँचाई
चयन बहुत सरल और स्पष्ट है
— Prof. Gourav Vallabh (@GouravVallabh) September 22, 2022
इसके अलावा थरूर का हिंदी पट्टी के नेता ना होना भी उनके लिए प्रतिकूल माना जा रहा है. उनका अंग्रेजी पर तो जर्बदस्त नियंत्रण है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे वक्ता के मुकाबले हिंदी श्रोताओं के साथ जन संवाद स्थापित करने के मामले में उनका पलड़ा कमजोर माना जाता है.
क्या अशोक गहलोत होंगे सबसे आगे?
ऐसे में अध्यक्ष पद के सबसे प्रबल दावेदार गहलोत ही बचते हैं, लेकिन उनके साथ सबसे बड़ी दुविधा है उनका गृह राज्य. वो तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने हैं और पिछली बार तो मुख्यमंत्री पद को हासिल करने के लिए उन्होंने पार्टी में अध्यक्ष के बाद संगठन के सबसे ऊंचे पद को त्याग दिया था. लेकिन राहुल गांधी द्वारा पार्टी में ‘एक व्यक्ति, एक पद’ के सिद्धांत की अहमियत को रेखांकित करना गहलोत के लिए संकेत माना जा रहा है. वो अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं तो उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा.
ऐसे में माना जा रहा है कि गहलोत इस बात से चिंतित हैं कि उनकी बाद मुख्यमंत्री पद कहीं सचिन पायलट को तो नहीं दे दिया जाएगा. राजस्थान कांग्रेस में गहलोत और पायलट के अलग अलग खेमे हैं. 2020 में सचिन पायलट के नेतृत्व में राजस्थान के कई कांग्रेसी विधायकों ने जो बगावत कर दी थी, गहलोत उसे भूले नहीं हैं.
लेकिन कांग्रेस के सूत्र ने बताया कि पार्टी के केंद्रीय नेता भी उस प्रकरण को भूले नहीं हैं और उसके बाद से पार्टी के अंदर पायलट की विश्वसनीयता पर भी असर पड़ा है. सूत्र ने बताया कि ऐसे में अगर पार्टी को राजस्थान में गहलोत का विकल्प ढूंढना पड़ा तो पार्टी की कोशिश रहेगी कि विद्यायक दल किसे तीसरे नेता को अपना मुखिया चुने. इस नेता के गहलोत के विश्वासपात्र होने की संभावना है.
सूत्र ने यह भी कहा कि वो इस बात से खुश हैं कि पार्टी एक नए केंद्रीय नेतृत्व की तरफ बढ़ रही है, क्योंकि पार्टी को इस समय बदलाव ही चाहिए. उन्होंने कहा कि बदलाव सफलता की गारंटी तो नहीं है, लेकिन यथा स्थिति से बेहतर है.
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