एमजीएम मेडिकल कॉलेज अस्पताल में इलाज की सही व्यवस्था नहीं है और न ही डॉक्टर इलाज करने के लायक है. इलाज के नाम जहाँ प्राइवेट अस्पतालों में लाखों-करोड़ो रूपए खर्च करने पड़ते है, वैसे में गरीब लोगों का सहारा सिर्फ ये सरकारी अस्पताल ही होते है, लेकिन वहां के भी हालत ऐसे है. एमजीएम मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक गरीब आदिवासी बच्चे का ऑपरेशन कराना पड़ गया महँगा.
रिम्स और टीएमएच के डॉक्टरों ने स्पष्ट कह दिया है कि बच्चे का बायां हाथ काटना पड़ेगा। ऑपरेशन के बाद उसका हाथ पूरी तरह काला पड़ गया है। उसे हिलना-डुलना भी नहीं था, इसलिए पेशाब करने के लिए पाइप लगाया गया था। इलाज के लिए उसे सदर अस्पताल ले जाया गया, परंतु एक्सरे के बाद डॉक्टरों ने एमजीएम भेज दिया।
17 सितंबर को रिम्स रांची रेफर कर दिया
एमजीएम में 9 सितंबर को दोबारा एक्सरे कर उसके हाथ पर प्लास्टर चढ़ा दिया गया। सुधार नहीं होने पर जब 12 सितंबर को प्लास्टर खोलकर ऑपरेशन करने और प्लेट लगाने की बात कही। दो दिन बाद उसके हाथ की उंगलियां काली पड़ने लगीं, जिससे परिजनों की चिंता बढ़ गई। उन्होंने डॉक्टर को जब इसकी जानकारी दी तो उसने 17 सितंबर को रिम्स रांची रेफर कर दिया। रिम्स जाने पर डॉक्टर ने हाथ काटने की सलाह दी।
हाड़ी मजदूरी करने वाले उसके माता-पिता के लिए ऑपरेशन के लिए दो लाख का खर्च उठाना संभव नहीं है। इसलिए वे दर-दर भटक रहे हैं। उपायुक्त से मिलने पहुंचे परिवार और उसके पड़ोसियों ने बताया कि टीएमएच के डॉक्टरों ने कहा कि 2 दिन के भीतर अगर हाथ नहीं काटा गया तो उसके शरीर में जहर फैल जाएगा। यह मामला 7 सितंबर का है। इस तरह का मामला अगर लगातार सामने आता रहे तो गरीब लोगों का क्या होगा? प्रशासन को इस पर ध्यान देना चाहिए.
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