छठ पर्व में आज खरना की पंरपरा निभाई जाती है। कल पहले दिन नहाय-खाय था, जिसमें लौकी-भात बनाने और खाने का रिवाज है, जिसे व्रतियों ने बड़ी ही श्रद्धापूर्वक निभाया। खरना कार्तिक शुक्ल की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। खरना का मतलब होता है शुद्धिकरण। इसे लोहंडा भी कहा जाता है। खरना के दिन छठ पूजा का विशेष प्रसाद बनाने की परंपरा है। छठ व्रत बहुत कठिन माना जाता है और इसका बहुत महत्व है। छठ व्रत को बहुत सावधानी से किया जाता है। माना जाता है कि जो भी व्रती छठ के नियमों का पालन करती है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। व्रती खरना के दिन शुद्ध मन से सूर्य देव और छठी माता की पूजा करती है और गुड़ की खीर का भोग लगाती है। खरना का भोग काफी शुद्ध तरीके से बनाया जाता है। उसे नए चूल्हे में ही बनाया जाता है। व्रती इसे अपने हाथों से ही पकाती हैं। खरना के दिन व्रती महिलाएं सिर्फ एक ही समय भोजन करती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से शरीर से लेकर मन तक शुद्ध हो जाता है। इस दिन महिलाएं और छठ व्रती सुबह स्नान कर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करती हैं और नाक से माथे की मांग तक सिंदूर लगाती हैं। खरना के दिन व्रती दिन भर भूखी रहती हैं और शाम के समय लकड़ी के चूल्हे पर साठी के चावल और गुड़ की खीर बनाकर भोग तैयार करती हैं। फिर सूर्य भगवान की पूजा करने के बाद व्रती इसे ग्रहण करती हैं। उनके खाने के बाद ही यह प्रसाद घर के बाकी सदस्यों में बांटा जाता है। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद से ही व्रती महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है। माना जाता है कि खरना पूजा के बाद ही घर में देवी षष्ठी (छठी मइया) का आगमन हो जाता है।
Sapna Chakraborty
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