एआईडीएसओ नगर कमिटी ने कार्यक्रम भुइयांडीह चौक पर मनाया हूल दिवस
एआईडीएसओ जमशेदपुर नगर कमिटी की ओर से आज 30 जून को भुइयांडीह चौक पर मर्यादापूर्वक हूल दिवस मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत में प्रदेश उपाध्यक्ष युधिष्ठिर कुमार द्वारा सिद्धू कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर किया गया। इस अवसर पर नगर अध्यक्ष शुभम झा ने कहा कि आज से 165 वर्ष पहले जब पूरे भारत में ब्रिटिश हुकूमत थी। लोग कहते थे कि अंग्रेजी शासन का सूरज कभी अस्त नहीं होता है, वैसी परिस्थिति में चंद लोगों ने अंग्रेजी राज सत्ता से संघर्ष का बिगुल फूंका। सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो जैसे झारखंड के क्रांतिकारियों ने जमींनदारी, अतिरिक्त लगान, जबरन वसूली तथा ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचार के ख़िलाफ़ संघर्ष किया।
Tiger Jairam Mahto in Jamshedpur| Mashal News
जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए 15,000 से अधिक आदिवासी शहीद हो गए थे
झारखंड के संथाल परगना में मशहूर संथाल विद्रोह जिसे हूल विद्रोह के नाम से भी जानते हैं, 1855 से 1856 तक 1 वर्ष तक सिदो-कान्हू के नेतृत्व में अपने जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए 15,000 से अधिक आदिवासी शहीद हो गए थे। सिदो-कान्हू ने अपनी जमीन व जंगल को बचाने के लिए अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ आवाज उठाई थी। सोवियत संघ के नायक ने हूल विद्रोह को भारत की पहली जनक्रांति का नाम दिया था, क्योंकि भारत में इससे पहले इतने बड़े स्तर पर अंग्रेजों कर खिलाफ आम जन एवं आदिवासियों ने विद्रोह नहीं किया था।
गरीबों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है
वर्तमान हालात में भी हुल की जरूरत है, क्योंकि जबरन जंगलों को कटाई की जा रही है और गरीबों को उनकी जमीन से बेदखल किया जा रहा है। उन्हें उनकी मूलभूत सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है, स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन ,आवास आदि के लिए लोगों को अपनी जान तक देनी पड़ रही है और चंद मुट्ठी भर लोगों के हाथों में सभी संसाधनों को सौंप दिया जा रहा है। नगर सचिव सविता सोरेन ने कहा कि कुछ लोग इसे एक जाति विशेष के विद्रोह की संज्ञा देते हैं। यह बिल्कुल असत्य है। हुल विद्रोह में सभी समुदाय के लोगों ने अपनी कुर्बानिया दी थी। चाहे वह लकड़ी काटने वाला हो या फिर लोहे से तीर बनाने वाला।
आज के कार्यक्रम में राज्य उपाध्यक्ष युधिष्ठिर कुमार, जिला सचिव सोनी सेनगुप्ता, नगर अध्यक्ष शुभम झा, सचिव सविता सोरेन, वंदना, अमित, केतु, विशाल समेत अन्य सदस्य उपस्थित थे।
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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