केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल ने कहा कि जल्द ही जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून लाया जाएगा। पटेल ने मंगलवार को रायपुर में ये बात कही। ये पहली बार नहीं है, जब देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर चर्चा चल रही हो। इससे पहले पिछले साल जुलाई में उत्तर प्रदेश के स्टेट लॉ कमीशन ने जनसंख्या नियंत्रण कानून का ड्राफ्ट जारी किया था। इस पर आपत्तियां और सुझाव मांगे गए थे। वहीं, दूसरी ओर लोकसभा में केंद्र सरकार ने कई बार कहा है कि उसका जनसंख्या नियंत्रण से जुड़ा कोई भी कानून लाने का इरादा नहीं है।
ऐसे सवाल है कि जनसंख्या नियंत्रण बिल की देश को कितनी जरूरत है? जहां इस तरह के बिल लागू हैं वहां इसका कितना फायदा हुआ है? केंद्र सरकार का इस बिल पर अब तक क्या रुख रहा है? इसके आने से क्या बदलेगा? आइये जानते हैं इन सभी के जवाब…
1. क्या जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की जरूरत है?
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया के एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर रहे एआर नंदा कहते हैं कि देश के ज्यादतर राज्यों में टोटल फर्टिलिटी रेट यानी TFR 2.1 या उससे कम हो चुका है। जो यूएन के मुताबिक किसी भी आबादी के रिप्लेसमेंट पॉपुलेशन का स्टैंडर्ड है। यानी हमारे देश की जनसंख्या वृद्धि की दर सही दिशा में जा रही है। उत्तर प्रदेश, बिहार, जैसे कुछ ही राज्य हैं, जहां TFR 2.1 से ज्यादा है। लेकिन, इन राज्यों में भी TFR तेजी से कम हो रहा है। आने वाले तीन से चार साल में यहां भी TFR 2.1 तक पहुंच जाएगा।
2. कानून बनता है तो उसका क्या असर होगा?
नंदा कहते हैं कि चीन जहां सबसे पहले जनसंख्या नियंत्रण जैसा कानून लागू हुआ उसे इसका बहुत नुकसान हुआ। खासतौर कन्या भ्रूण हत्या में बहुत इजाफा हुआ। इस कानून से हो रहे नुकसान की वजह से चीन को पहले एक से दो अब दो से तीन बच्चों की छूट देनी पड़ी। भारत में भी ऐसा करने से कन्या भ्रूण हत्या जैसे मामले बढ़ सकते हैं।
3.भारत के कुछ राज्यों में तो ये कानून लागू है वहां इसका क्या असर हुआ?
नंदा बताते हैं कि भारत में ओडिशा जैसा राज्य जहां इस तरह का कानून करीब 28 साल से लागू है। वहां, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को इससे नुकसान हुआ है। ये लोग राज्य की पंचायत राज व्यवस्था की चुनाव प्रक्रिया से भी दूर हो गए। वहीं जिन राज्यों में ये पॉलिसी लागू की गई है, वहां इसके असर को लेकर कभी कोई रिपोर्ट नहीं जारी की गई।
2006 में पूर्व IAS ऑफिसर निर्मला बुच ने इस पॉलिसी को लागू करने वाले पांच राज्यों पर स्टडी की थी। इस स्टडी में बताया गया कि दो बच्चों का नियम आने के बाद इन राज्यो में सेक्स-सिलेक्टिव और अनसेफ अबॉर्शन बढ़े हैं। कुछ मामलों में पुरुषों ने लोकल बॉडी इलेक्शन लड़ने के लिए पत्नी को तलाक दे दिया। इसके साथ ही कुछ मामलों में अयोग्यता से बचने के लिए बच्चों को गोद दे दिया गया।
4.केन्द्र सरकार का अब तक इसे लेकर क्या रुख रहा है?
लोकसभा में केंद्र सरकार कई बार जनसंख्या नियंत्रण से जुड़ा कोई भी कानून लाने से इनकार कर चुकी है। दिसंबर 2021 में भी इसी तरह का जवाब स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने दिया था। स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि बच्चों की निश्चित संख्या के लिए कोई भी जबरदस्ती या फरमान का परिणाम बुरा असर होता है। इसकी वजह से बेटों को प्राथमिकता देते हुए गर्भपात, बेटियों का परित्याग, यहां तक कि कन्या भ्रूण हत्या होती है।
5. इस तरह के कानून पर संविधान में क्या कहा गया है?
संविधान केंद्र और राज्य दोनों को जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन के लिए कानून बनाने की छूट देता है। हालांकि, देश में जनसंख्या नियंत्रण से संबंधित कोई राष्ट्रीय नीति नहीं है। जनसंख्या नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय नीति बनाने को लेकर समय-समय पर याचिकाएं लगती रही हैं। 1981 में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एयर इंडिया के उस आदेश को बरकरार रखा जिसमें उसने तीसरी प्रेगनेन्सी पर अपनी फ्लाइट अटेंडेन्ट को नौकरी से निकाल दिया था।
6.क्या राज्यों द्वारा बनाए गए कानून को भी कोर्ट में चुनौती मिली है?
2003 में पहली बार किसी राज्य की जनसंख्या नीति से जुड़ा मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। जब हरियाणा सरकार के पंचायती राज एक्ट, 1994 के खिलाफ याचिका लगाई गई। याचिकाकर्ता ने इस एक्ट को समानता के अधिकार के खिलाफ बताया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के कानून को बरकार रखा। हालांकि, बाद में खुद हरियाणा सरकार ने दो बच्चों वाला एक्ट वापस ले लिया।
मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाई गई। इसमें कोर्ट से अपील की गई कि वो केंद्र को जनसंख्या नियंत्रण के लिए दो बच्चों की पॉलिसी बनाने का निर्देश दे। इसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता को सरकार के पास जाने को कहा गया।
2019 में भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने भी इससे जुड़ी एक याचिका लगाई। इसमें उन्होंने कोर्ट से अपील की वो चुनाव आयोग को निर्देश दे कि चुनाव आयोग राजनीतिक पार्टियां उन लोगों को उम्मीदवार नहीं बना सकतीं जिनके दो से अधिक बच्चे हैं। कोर्ट ने ये याचिका खारिज कर दी। हालांकि, जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने उपाध्याय की दो बच्चों की नीति से जुड़ी एक दूसरी याचिका स्वीकार कर ली। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए जनसंख्या नियंत्रण पर केंद्र से जवाब मांगा।
7. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में क्या जवाब दिया?
कोर्ट को दिए जवाब में केंद्र ने कहा कि वो बच्चों की संख्या तय करने के खिलाफ है। दिसंबर 2020 में केंद्र सरकार के ये एफिडेविट दिया था। इसमें सरकार ने कहा था कि भारत का फैमिली वेलफेयर प्रोग्राम लोगों को परिवार का आकार तय करने की आजादी देता है। इसी में सराकर ने कहा कि भारत ने 1994 में पॉपुलेशन और डेवलपमेंट पर हुई इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में प्रोगाम ऑफ एक्शन पर साइन करने वाले देशों में शामिल है। जो परिवार नियोजन के लिए किसी तरह की जबरदस्ती के खिलाफ है।
8. अभी देश में जनसंख्या की क्या स्थिति है?
सरकार की ओर से हुए पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे या NFHS-5) के आंकड़े हाल ही में आए हैं। इसके मुताबिक उत्तर प्रदेश, बिहार समेत केवल पांच राज्य ऐसे हैं जहां कुल प्रजनन दर 2.1 से ज्यादा है। बिहार में प्रजनन दर सबसे ज्यादा 2.98 है, दूसरे नंबर पर मेघालय में 2.91 का TFR है। तीसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है जहां TFR 2.35 है। झारखंड में 2.26 तो मणिपुर में 2.17 का TFR है। देश में कुल प्रजनन दर (यानी TFR) 2 हो गई है। किसी देश की मौजूदा आबादी को बनाए रखने के लिए प्रतिस्थापन की दर 2.1 होनी चाहिए। यानी, आबादी बढ़ने की रफ्तार उसके प्रतिस्थापन स्तर से भी कम हो गई है।
9. क्या आने वाले दिनों में देश की आबादी कम होने वाली है?
10. मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ने की बात की जाती है उसका क्या?
बीते तीन दशक में NFHS के पांच सर्वे आए हैं। 1992-93 में आए पहले सर्वे से अब आए पांचवें सर्वे के दौरान मुस्लिमों में प्रजनन दर में सबसे ज्यादा कमी आई है। 1992-93 में मुस्लिम महिलाओं में TFR 4.41 था। जो नए सर्वे में घटकर 2.36 रह गया है। हालांकि, अभी ये ये सभी धर्मों में सबसे ज्यादा है। वहीं, हिन्दू महिलाओं में इसी दौरान TFR 3.30 से घटकर 1.94 हो चुका है।
पिछली बार के मुकाबले सिख और जैन समुदाय की प्रजनन दर में इजाफा हुआ है। 2015-16 में सिख समुदाय में प्रजनन दर 1.58 थी जो अब बढ़कर 1.60 हो गई है। वहीं, जैन समुदाय में प्रजजन दर 1.20 से बढ़कर 1.60 हो गई है।
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