फेडरल रिजर्व के ताजा आंकड़ों के मुताबिक खाद्य पदार्थों और ईंधन को छोड़ कर मार्च में अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर 5.2 फीसदी। खाद्य पदार्थों और ईंधन के दाम ज्यादा बढ़ने के कारण सकल महंगाई दर 8.5 फीसदी तक पहुंच गई। यूबीएस बैंक से जुड़े विश्लेषकों ने कहा है कि अब इससे ज्यादा महंगाई बढ़ने की संभावना नहीं है।देश में महंगाई 40 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर है।
अमेरिका में अब सबकी नज़र सेंट्रल बैंक- फेडरल रिजर्व की इस हफ्ते होने वाली बैठक पर है। संभावना है कि इस बैठक के बाद फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में बड़ी बढ़ोतरी का एलान करेगा। समझा जाता है कि इस पर काबू पाने के लिए फेडरल रिजर्व के पास अब ब्याज दर बढ़ाना ही एकमात्र रास्ता रह गया है, ताकि बाजार में मुद्रा की आपूर्ति नियंत्रित हो।
देश में महंगाई 40 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर है।
लेकिन वित्त और कॉरपोरेट सेक्टर से ब्याज दरों में प्रस्तावित वृद्धि का जोरदार विरोध हो रहा है। इन सेक्टरों से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि महंगाई अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुकी है। ऐसे कई विशेषज्ञों ने टीवी चैनल सीएनएन से बातचीत में राय जताई कि अब महंगाई दर धीरे-धीरे घटेगी। इसलिए ब्याज दर बढ़ाने की जरूरत नहीं है। ब्याज दर बढ़ने से उन तमाम तबकों की मुसीबत बढ़ेगी, जिन्होंने मकान, शिक्षा, वाहन या मेडिकल जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज ले रखा है।
उधर विश्व बाजार पर पहले से ही फेडरल रिजर्व की सोच का असर देखा जा रहा है। वहां से निवेशक लगातार पैसा निकाल कर अमेरिका में निवेश बढ़ा रहे हैं।
पर्यवेक्षकों के मुताबिक महंगाई राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन के लिए बड़ा सिरदर्द बनी हुई है। सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी की लोकप्रियता पर इससे फर्क पड़ रहा है। इसलिए सरकार महंगाई घटाने के उपाय करते दिखना चाहती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इसी मकसद से पिछले हफ्ते हुई एक बैठक इतनी तीखी बहस हुई कि बात कड़वाहट तक पहुंच गई।। बैठक चीन से आयात होने वाली वस्तुओं पर लगाए गए अतिरिक्त शुल्क को हटाने के मुद्दे पर बुलाई गई थी।
वेबसाइट एक्सियोस.कॉम की एक विशेष रिपोर्ट के मुताबिक वित्त मंत्री जेनेट येलेन और कई विशेषज्ञों ने कहा कि चीन पर दबाव बनाए रखने के लिए उन अतिरिक्त शुल्कों को जारी रखा जाना चाहिए, जो पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समय लगाए गए थे। जबकि उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह ने कहा कि कई चीनी वस्तओं पर से ये शुल्क हटाए जा सकते हैं। उससे अमेरिकी उपभोक्ताओं को ये चीजें सस्ती मिलेंगी। उसका असर मुद्रास्फीति दर पर पड़ेगा।
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