दिल्ली के जहांगीरपुरी में शोभायात्रा के दौरान हिंसा को लेकर 05 उन लोगों के खिलाफ रासुका यानि एनएसए लगाई गई है, जिन्हें पुलिस इस मामले में साजिश रचने, उकसाने और हिंसा करने की दोषी मान रही है. वैसे रासुका को लेकर पहले कई बार विवाद भी हो चुके हैं. ये बहुत कड़ा कानून है. इसके तहत कोई FIR दर्ज नहीं की जाती है और आरोपी/दोषी को सीधे गिरफ्तार कर लिया जाता है.
एनएसए को National Security Act या राष्ट्रीय सुरक्षा कानून भी कहा जाता है. रासुका ऐसा कानून है तो एक जमाने में कांग्रेस की सरकार ने बनाया था लेकिन ये आज भी लागू है. इसका इस्तेमाल केंद्र और राज्य में बीजेपी सरकारों ने भी खूब किया है.
कब लग सकता है रासुका
रासुका असल में देश की सुरक्षा के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित एक कानून है. यह कानून केंद्र और राज्य सरकार को किसी भी संदिग्ध नागरिक को हिरासत में लेने की शक्ति देता है. इसके अलावा अगर कोई शख्स आवश्यक आपूर्ति और सेवाओं के रखरखाव तथा सार्वजनिक व्यवस्था को किसी भी तरह से बाधित करता है तो उस पर भी रासुका के तहत कार्रवाई हो सकती है. वैसे तो इसके तहत एक साल की सजा का प्रावधान है लेकिन अगर सरकार को मामले से जुड़े नए सबूत मिल जाएं तो सजा और लंबी हो सकती है.
कांग्रेस के दौरान हुई शुरुआत
इस कानून की शुरुआत अंग्रेजी हुकूमत से समय से है. बंगाल विनियमन- III, 1818 (Bengal Regulation- III, 1818) के तहत अंग्रेज सरकार किसी को भी बिना किसी कानूनी प्रक्रिया यानी जांच से गुजारे बगैर बंद सकती थी. ये एक बड़ी ताकत थी, जो हुकूमत के खिलाफ बोलने वालों को कम से कम कुछ समय के लिए चुप कर पाती थी.
बाद में ये कानून हट गया लेकिन साल 1971 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार इसे लेकर आई. तब ये आंतरिक सुरक्षा अधिनियम कहलाता था. हालांकि जनता सरकार ने सत्ता में आने पर इसे हटा दिया लेकिन फिर से कांग्रेस ने इसे लागू कर दिया.
रासुका में नागरिक अधिकारों का हनन भी होता है
आमतौर पर किसी को गिरफ्तार किया जाए तो भी उसके मूल अधिकारों की रक्षा की बात होती है. इसके तहत आरोपी या दोषी को ये जानने का अधिकार है कि उसकी गलती क्या है. संविधान में भी अनुच्छेद 22 (1) में कहा गया है कि गिरफ्तार को दोष जानने और परामर्श पाने का हक है. हालांकि रासुका में इन अधिकारों की अनदेखी की जा सकती है.
इसमें गिरफ्तारी के समय नहीं बताया जाता है कि असल में किन आरोपों या कामों के लिए गिरफ्तारी हो रही है. कोर्ट में भी इसकी सुनवाई आसानी से नहीं होती.
‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ (National Crime Records Bureau) जो देश में अपराध संबंधी डाटा जमा करता है, NSA के तहत आने वाले मामलों को अपने डाटा में शामिल नहीं करता है क्योंकि इन मामलों में कोई FIR दर्ज नहीं की जाती है. ये भी एक बड़ी समस्या है.
हाल में कहां-कहां लगा रासुका
बीते समय में कई लोगों पर रासुका के तहत कार्रवाई हुई. इसमें कई मामले कोरोना से संबंधित भी थे. जैसे गाजियाबाद में कथित तौर पर अस्पताल स्टाफ से खराब व्यवहार करने वालों पर रासुका लगाया गया.
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