कुड़मालि दिवस मनाया गया
पटमदा में आदिवासी कुड़मी समाज के बैनर तले आज 22 अप्रैल को कुड़मालि दिवस सह स्कूल, काँलेज व यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम में कुड़मालि भाषा की पढ़ाई शुरु कराने वाले महान व्यक्तित्व, कुड़माली साहित्य के आधार-स्तंभ लखिकांत मुतरुआर की जयंती मनाई गई।
कुड़मालि नेगाचारी से अपने माता-पिता का मरखि एवं अपने बेटा-बेटियों की शादी कराई
वक्ताओं ने कहा कि कुड़मालि संस्कृति के आजीवन प्रचारक लखीकांत मुतरुवार का जन्म 22 अप्रैल 1939 को बोकारो जिले के भंडरो में साधारण किसान परिवार में हुआ था। लखीकांत मुतरुआर बाल्यकाल से ही मेधावी रहे व प्रखर सामाजिक चिंतक थे। सामाजिक कार्यकर्त्ता के रूप में वे नौकरी करते हुए ही सक्रिय थे, लेकिन अवकाश प्राप्त करने के बाद इन्होंने कुड़मालि भाषा साहित्य एंव संस्कृति के लिए अपने को समर्पित कर दिए। वे वैदिक रुढ़ीवाद के खिलाफ थे. उन्होंने सामाजिक बुराइयों व तिलक-दहेज के ख़िलाफ़ भी आवाज़ बुलंद की। पारम्परिक कुड़मालि रीति रिवाजों को स्थापित करने के लिए कुड़मालि नेगाचारी से अपने माता-पिता का मरखि एवं अपने बेटा-बेटियों की शादी कराई।
नारी शिक्षा के प्रबल पक्षधर
लखीकांत मुतरुवार एक शिक्षा प्रेमी तो थे ही, नारी शिक्षा के प्रबल पक्षधर भी थे। नारी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए अपनी ही ज़मीन पर बालिका विद्यालय की स्थापना की। इसी क्रम मे झारखंड प्रदेश मे स्थानीय भाषा शिक्षा आन्दोलन को खड़ा करने मे अग्रणी भूमिका निभायी। अपनी मातृभाषा कुड़मालि के उत्थान, संरक्षण व संवर्द्धन में वे मुखर रहे। इनकी मुखरता को नया आयाम मिला।
‘मुलकि कुड़मालि भाखि बाइसि’ के अध्यक्ष रहे
झारखंड मे जब भाषा आंदोलन की बात चली तो वे कुडमालि भाषा को स्थापित करने मे तन मन धन से सक्रिय हुए एवं 1982 में भाषा संपादकीय समिति का गठन हुआ, जिसमें लखीकांत मुतरुआर डॉ शशिभूषण महतो व प्रो. एचएन सिंह थे। इसी वर्ष ‘मुलकि कुड़मालि भाखि बाइसि’ का गठन हुआ, जिनके वे अध्यक्ष बने और 1984 आदिवासी कुड़मि समाज का गठन हुआ वे उपाध्यक्ष बने। कुड़मि समाज को गर्व है कि लखीकांत जी ने समाज संस्कृति की गति-धारा में त्वरण उत्पन्न किया। साथ ही साथ समाजिक बुराइयों को रोकने में अहम भूमिका निभायी। मुतरुआर जी का आकस्मिक निधन 26 सितम्बर 2012 को हुआ।
इस अवसर पर आदिवासी कुड़मी समाज के केंद्रीय अध्यक्ष प्रसेनजीत महतो, मनोज महतो, विनय कुमार महतो, प्रकाश महतो, असित महतो, बिश्वनाथ, कृतिबास महतो, फूलचाँद महतो, प्रह्लाद महतो, गणेश महतो एंव विकाश महतो आदि शामिल रहे।
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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