बिहार से पलायन (Migrated) कर दूसरे राज्यों (Other States) में काम की तलाश में गए मजदूरों (Laborers) की लगातार हो रही मौत (Death) ने कई सवालों को जन्म दे दिया है. तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और यूपी के बाद अब पंजाब के लुधियाना में भी मंगलवार देर रात एक दर्दनाक हादसा में एक ही परिवार के 7 लोगों की मौत हो गई है. इस हादसे में जान गंवाने वाला परिवार बिहार से पलायन कर लुधियाना में एक झोपड़ी बनाकर रह रहा था. मृतकों में पति-पत्नी और उनके 5 बच्चे शामिल हैं.
मृतकों का परिवार बिहार के समस्तीपुर जिले का रहने वाला था, जिसकी पहचान सुरेश सहनी (55), अरुणा देवी (52), बेटियां राखी (15), मनीषा (10), गीता (8) और चंदा (5) और 2 साल के बेटे सन्नी के रूप में हुई है. इस हादसे में प्रवासी परिवार का बड़ा बेटा राजेश बच गया, क्योंकि वह अपने दोस्त के घर सोने चला गया था. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर बिहारी मजदूरों की लगातार हो रही मौतों के लिए कौन जिम्मेदार है? आखिरकार झुलसकर घायल होनेवाले या मरने वाले ज्यादा लोग बिहार से ही क्यों होते हैं.
लॉकडाउन के बाद से ही वह लुधियाना में आ कर परिवार का पेट पाल रहे
लुधियाना में मृतक परिवार का एकमात्र जीवित शख्स राजेश ने बताया कि उसके पिता सुरेश सहनी कबाड़ का काम करते थे. लॉकडाउन के बाद से ही वह लुधियाना में आ कर परिवार का पेट पाल रहे थे. बता दें कि हादसे की सूचना मिलते ही सिविल अस्पताल से डाक्टरों की टीम मौके पर पहुंची थी. डीसी सुरभि मलिक व पुलिस कमिश्नर कौस्तब शर्मा भी घटनास्थल पर पहुंचे. पुलिस ने झोपड़ी से सभी शवों को बाहर निकलवाया और पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल पहुंचाया. पूर्वी लुधियाना के सहायक पुलिस आयुक्त सुरिंदर सिंह के मुताबिक, ‘स्थानीय प्रशासन झोपड़ी में आग कैसे लगी यह पता लगाने में जुट गई है.
बिहारी मजदूरों की मौत पर अब उठने लगे सवाल
हाल के दिनों में 20 से ज्यादा बिहारी मजदूरों की किसी न किसी वजह से जान चली गई है. इससे पहले बीते 23 मार्च को ही तेलंगाना के सिकंदराबाद इलाके में एक कबाड़ गोदाम में भीषण आग लग गई थी. उस दर्दनाक हादसे में बिहार के 11 मजदूरों की जिंदा जलकर मौत हो गई थी. दूसरी घटना आंध्र प्रदेश के एलुरु स्थित एक केमिकल फैक्ट्री में हुई, जहां आग लगने के बाद बॉयलर में ब्लास्ट हो गया.
इसमें आधा दर्जन लोगों की मौत हुई है. मरनेवालों में चार मजदूर बिहार के हैं. सभी चार मजदूर बिहार के नालंदा जिले के रहने वाले थे. कुछ दिन पहले ही वाराणसी में भी 2 मजदूरों की मौत हो गई और अब लुधियाना में भी एक ही परिवार के 7 सदस्यों की मौत हो गई है. कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के विजयनगर में ही नाला खुदाई के दौरान एक स्कूल की दीवार गिरने से तीन बिहारी मजदूरों की मौत हो गई थी.
पलायन को लेकर राज्य सरकार का क्या रहा है रवैया
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मारे गए दोनों श्रमिकों के परिजनों के प्रति संवेदना जतायी और उनके परिजनों को दो-दो लाख रुपये अनुग्रह राशि देने की घोषणा की थी. अब बिहार से पलायन कर दूसरे राज्यों में गए मजदूरों की लगातार हो रही मौत पर बिहार कांग्रेस के दिग्गज नेता और एमएलसी प्रेमचंद्र मिश्रा ने नीतीश सरकार को घेरा है. मिश्रा न्यूज 18 हिंदी के साथ बातचीत में कहते हैं, ‘इसमें दो राय नहीं है कि बिहार में पलायन एक बहुत बड़ी समस्या है.
यह कोई नई भी नहीं, लेकिन कोरोना के समय खुद राज्य सरकार ने स्वीकार किया था कि तकरीबन 22 लाख बिहारी मजदूर दूसरे राज्यों से बिहार आए. इन मजदूरों के लिए नीतीश सरकार ने रोजगार देने की बात की थी, लेकिन उन मजदूरों को फिर से पलायन कर दूसरे राज्यों में जाना पड़ा. यह नीतीश सरकार की नाकामयाबी है इससे वह इंकार नहीं कर सकती और अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकती’ l
विपक्षी दलों का क्या कहना है
मिश्रा आगे कहते हैं लगातार हो रही मौतों पर बिहार के सीएम को हस्तक्षेप करना चाहिए. मैंने विधान परिषद में भी यह मुद्दा उठाया था. मैंने सरकार से मांग की थी जब बिहारी मजदूरों की मौत पर दूसरी राज्य सरकारें पांच-पांच लाख रुपये मुआवजा देने की घोषणा करती है तो बिहार सरकार ने दो लाख रुपये का मुआवजा किस नीति के अंतगर्त किया?
वहीं, हाल ही में बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले मदन मोहन झा ने भी बिहारी मजदूरों की मौत पर चिंता जाहिर किया है. झा कहते हैं, ‘जो आदमी कोविड के दौरान अपने राज्य के मजदूरों को घर लाने से मना करती रही, वह आदमी इन लोगों को कोई मदद करे इसमें मुझे संशय है. नीतीश सरकार की नियत पर मुझे संदेह है.’
बिहार से बाहर जा रहे कामगारों की मौत की घटना आए दिन आते रहते हैं. हर घटना के बाद बिहार सरकार की तरफ से मुआवजे का एलान होता है, लेकिन एक-दो दिनों के बाद उन घटनाओं को भुला दिया जाता है. आखिर इन मजदूरों की मौत की असली वजह बेरोजगारी और पलायन को लेकर बिहार की सरकारें कब तक मुंह मोरती रहेगी? क्या बिहारी मजदूरों का परदेश में मरना सिर्फ नियति बन कर ही रह जाएगा?
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