सीयूईटी (CUET) क्या है?
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी के अध्यक्ष एम जगदीश कुमार ने मीडिया में कई बार इस बारे में स्थिति साफ़ की है.उनका कहना है कि वर्ष 2020 में घोषित नई शिक्षा नीति में पूरे देश में अंडरग्रैजुएट कोर्सेज़ के लिए एक ही प्रवेश परीक्षा करवाने की परिकल्पना की गई थी, और सीयूईटी को लागू किया जाना, नई शिक्षा नीति के ही एक हिस्से को लागू करना है.
इस साल देश में पहली बार कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट यानी विश्वविद्यालय संयुक्त प्रवेश परीक्षा करवाई जा रही है.ये परीक्षा मुख्य तौर पर देश के 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों या उनके अधीन आने वाले कॉलेजों में अंडरग्रैजुएट कोर्सों में एडमिशन के लिए हो रही है.
वर्ष 2020 में घोषित नई शिक्षा नीति में पूरे देश में अंडरग्रैजुएट कोर्सेज़ के लिए एक ही प्रवेश परीक्षा करवाने की परिकल्पना की गई थी.
इसके पीछे की भावना को स्पष्ट करते हुए वो कहते हैं कि ये टेस्ट छात्रों की भलाई को ध्यान में रखकर शुरू किया जा रहा है.एक इंटरव्यू में वो कहते हैं, “छात्रों के ऊपर बहुत दबाव होता था कि वो 98 प्रतिशत, 99 प्रतिशत नंबर लाएँ क्योंकि कई विश्वविद्यालयों में अगर इतने ज़्यादा परसेंट नंबर नहीं आए तो दाख़िला नहीं मिलता था. इसके साथ ही छात्रों को देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थित अलग-अलग विश्वविद्यालयों के लिए प्रवेश परीक्षाओं में बैठना पड़ता था.”
सीयूईटी के पीछे मुख्य उद्देश्य ये है कि पूरे देश के अंडरग्रैजुएट कोर्सेज़ में एडमिशन के लिए एक ही परीक्षा करवाई जाए, मगर इस वर्ष केवल सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए इसे अनिवार्य किया गया है.सीयूईटी पर सवाल उठाने वाले लोगों की सबसे पहली दलील ये है कि जिस समस्या को सुलझाने के नाम पर इसे लागू किया जाएगा, उसका निदान इससे नहीं निकल सकता.
सरकार 12वीं से आगे की पढ़ाई कर उच्च शिक्षा हासिल करने की चाह रखनेवाले छात्रों को पर्याप्त मौक़े नहीं देना चाहती.
वामपंथी छात्र संगठन आइसा (ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन) का आरोप है कि इस व्यवस्था का मक़सद छात्रों को प्रवेश देना नहीं बल्कि उन्हें छाँटना है.आइसा ने एक बयान जारी कर आरोप लगाया है कि समस्या की असल जड़ ये है कि सरकार 12वीं से आगे की पढ़ाई कर उच्च शिक्षा हासिल करने की चाह रखनेवाले छात्रों को पर्याप्त मौक़े नहीं देना चाहती.
दरअसल, 12वीं से आगे की पढ़ाई के लिए मारामारी इसलिए मचती है क्योंकि छात्र ज़्यादा होते हैं, और सीटें कम.
कुछ लोगों का कहना है की सीयूईटी मुख्य रूप से छात्रों को रोकने का तरीक़ा है.ये फ़िल्टर लगाने का एक तरीक़ा है कि जितनी सीटें हैं हमें उतने ही छात्र सिस्टम के अंदर चाहिए. तो राहत तो उतने ही छात्रों को मिलेगी, वो चाहे सीयूईटी से हो या परसेंटेज की प्रक्रिया से. समस्या तब तक नहीं सुलझेगी जब तक सीटों की संख्या नहीं बढ़ेगी, जब तक और कॉलेज-विश्वविद्यालय नहीं खुलेंगे.
जहाँ-जहाँ फ़िल्टर के नाम पर कोई भी सेंट्रलाइज़्ड परीक्षा रखी गई, चाहे बैंक की परीक्षा हो, चाहे सिविल सेवा की, चाहे जेईई हो, चाहे नेट हो, या नीट हो, वहाँ-वहाँ कोचिंग खुल गए हैं.
इस टेस्ट को लेकर एक सवाल ये भी उठ रहा है कि 12वीं की परीक्षा पास कर कॉलेजों में प्रवेश लेते रहे छात्रों के ऊपर अब एक और परीक्षा लाद दी गई है.साथ ही एक और बड़ी चिंता ये जताई जा रही है कि अब इस परीक्षा के लिए भी कोचिंग का बाज़ार खड़ा हो जाएगा.इसके संकेत दिखने भी लगे हैं. बहुत सारे कोचिंग संस्थानों के यहाँ सीयूईटी परीक्षा को ‘क्रैक’ करवाने का दावा करने वाले कोर्सेज़ के विज्ञापन दिखने शुरू हो गए हैं.ऐसे में इस नई व्यवस्था के आलोचकों की चिंता है कि इससे उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी कोचिंग संस्थानों का दबदबा उसी तरह बढ़ जाएगा जैसा कि जेईई, नीट, क्लैट जैसी परीक्षाओं के मामले में एक लंबे समय से देखा जा रहा है. एडमिशन उनके पॉकेट में चला जाता है जिनके पास कोचिंग करने के लिए रुपये हैं.
बहरहाल, इस साल केंद्रीय विश्वविद्यालयों और उनके अधीन आनेवाले कॉलेजों के कैम्पस में पहुँचने की इच्छा रखनेवाले छात्रों के लिए कोई विकल्प नहीं रह गया है.वर्ष 2022-23 में के लिए सीयूईटी की प्रवेश परीक्षा की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. 6 मई फ़ॉर्म भरने की आख़िरी तारीख़ है. परीक्षा जुलाई में होगी. वहीँ सीयूईटी की तरफ़दारी करने वालों का कहना है, इससे नंबरों को लेकर होनेवाली मारामारी कम होगी, छात्र तनाव से बचेंगे.
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