ग्रामसभा के निर्णय की कॉपी राज्यपाल को सौंपी जाएगी.
ग्रामीण क्यों कर रहे हैं पदयात्रा ?
नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के खिलाफ क्यों हो रहा है यह लम्बा आन्दोलन, और अब ग्रामीण क्यों कर रहे है पद यात्रा ? यह जाने के लिए इसके इतिहास के पन्ने पलटने होंगे. नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज, टूडरमा डैम, व 2017 से पलामू व्याघ्र परियोजना के खिलाफ चल रहे आन्दोलन का नेतृत्व केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति पिछले 28 साल से कर रही है. इसके साथ ही इन परियोजनाओं के प्रभावित इलाकों में मानवाधिकार से सम्बन्धित मामलों, सामाजिक मुद्दों, देश व राज्य की ज्वलन्त समस्याओं एवं आंदोलनों पर भी समिति की पैनी नजर है, जिस पर कार्य करते हुए प्रभावी क्षेत्र के लोगों के साथ मिलकर आम जनता के सवालों को उठाते हुए अहिंसात्मक आन्दोलन किए जाते रहे हैं.
1991 व 1992 में बिहार सरकार ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए अधिसूचना जारी की थी
ज्ञात हो कि एकीकृत बिहार के समय में 1954 में मैनूवर्स फील्ड फायरिंग आर्टिलरी प्रैटिक्स एक्ट 1938 की धारा में नेतरहाट पठार के 7 राजस्व गांवों को तोपाभ्यास के लिए अधिसूचित किया गया था, जिसके तहत सेना चोरमुंडा, हुसमु, हरमुंडाटोली, नावाटोली, नैना, अराहंस और गुरदारी गाँव में तोपाभ्यास करती आ रही है. इस बीच तत्कालीन बिहार सरकार ने कई अधिसूचनाएं प्रकाशित की. 1991 और 1992 में तत्कालीन बिहार सरकार ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए अधिसूचना जारी की, जिसमें उन्होंने अवधि का विस्तार करते हुए इसकी अवधि 1992 से 2002 तक कर दी. इस अधिसूचना के तहत केवल अवधि का ही विस्तार नहीं किया, बल्कि क्षेत्र का विस्तार करते हुए 7 गाँव से बढ़ाकर 245 गाँव को भी अधिसूचित किया गया.
समिति ने नेतरहाट पठार में 1964 से 1994 तक फायरिंग अभ्यास के दौरान के अनुभवों को जानने के लिए कराया सर्वे
People’s Union for Democratic Rights, Delhi, October 1994 की रिपोर्ट से ज्ञात हुआ कि सरकार की मंशा पायलट प्रोजेक्ट के तहत स्थाई विस्थापन एवं भूमि- अर्जन की योजना को आधार दिया जाना था. तब से नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के खिलाफ आन्दोलन जारी है. 22 मार्च 1994 को फायरिंग अभ्यास के लिए आई सेना को बिना अभ्यास के वापस जाने पर मजबूर किया था, तब से आज तक सेना नेतरहाट के क्षेत्र में तोपाभ्यास के लिए नहीं आई है. आन्दोलन के साथ ही समिति ने बातचीत का रास्ता खुला रखा. जनता के जोरदार विरोध को देखते हुए स्थानीय प्रशासन, गुमला और पलामू की पहल पर प्रशासनिक अधिकारी, सेना के अधिकारी व केन्द्रीय जन संघर्ष समिति के साथ तीन बार वार्ता हुई. इस वार्ता के पूर्व समिति ने नेतरहाट पठार में 1964 से 1994 (30 वर्षों) तक फायरिंग अभ्यास के दौरान के अनुभवों को जानने के लिए सर्वे कराया.
सर्वे से जो तथ्य सामने आए वो दिल दहलाने वाले थे
- सैनिकों के सामूहिक बलात्कार से मृत महिलाओं की संख्या–02
- सैनिकों द्वारा महिलाओं का बलात्कार–28
- तोपाभ्यास के दौरान गोला विस्फोट से मृत लोगों की संख्या–30
- गोला विस्फोट से अपंग लोगों की संख्या –03
30 वर्षों में गोलाबारी अभ्यास के दौरान बहुत हुआ जान-माल का नुकसान
वार्ता के दौरान जन संघर्ष समिति के प्रतिनिधियों ने कहा कि समिति किसी भी तरह के फायरिंग अभ्यास को पायलट प्रोजेक्ट नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का ही रूप मानती है. अत: समिति बिहार सरकार के द्वारा पायलट प्रोजेक्ट को विधिवत अधिसूचना प्रकाशित कर रद्द करने की मांग करती है. इसके बाद विगत 30 वर्षों में गोलाबारी अभ्यास के दौरान पीड़ित भुक्त-भोगियों ने प्रशासन और सेना अधिकारियों के समक्ष अपनी मर्मस्पर्शी व्यथा कह सुनाई. उनकी आपबीती सुन एवं देख आयुक्त ने कहा कि समस्या गंभीर है. सेना फायरिंग अभ्यास का नैतिक आधार खो चुकी है. इसका निराकरण स्थानीय प्रशासन के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, इसलिए प्रशासन सरकार के पास इसकी अनुशंसा करेगी.
आज भी ग्रामीणों डर है कि कहीं राज्य सरकार अवधि का विस्तार न कर दे
जोरदार विरोध व प्रशासनिक अधिकारियों के आग्रह पर समिति ने सोचा की नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अवधि जो मई 2002 तक है समाप्त हो जाएगी, परन्तु ऐसा सोचना लोगों के घातक साबित हुआ. 1991 व 1992 की अधिसूचना के समाप्त होने के पूर्व ही तत्कालीन बिहार सरकार ने 1999 में अधिसूचना जारी कर 1991 -1992 की अधिसूचना की अवधि का विस्तार किया है. 1999 की अधिसूचना के आधार पर 11 मई 2022 तक प्रभावी है. आज भी ग्रामीणों डर है कि कहीं राज्य सरकार अवधि का विस्तार न कर दे, क्योंकि अभी तक नेतरहाट फील्ड फायरिग रेंज को रद्द होने की अधिसूचना राज्य सरकार द्वारा जारी नहीं की गई है.
सूचना का अधिकार
11 मई 2022 को 1999 की अधिसूचना की अवधि समाप्त होने वाली है. केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति ने इस संदर्भ में झारखण्ड सरकार के गृह मंत्रालय से सूचना का अधिकार अधिनियम के माध्यम से नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की वास्तविक स्थिति व आगे के अवधि विस्तार को जानने की कोशिश की. इसके लिए समिति ने प्रभावित इलाके के हर गाँव से 10-10 सूचना अधिकार के तहत सूचना मांगने का प्रयास किया, परन्तु गृह मंत्रलाय समिति को सूचना देने के बजाय इधर उधर घुमाता रहा.
क्या इको सेंसिटिव ज़ोन में मैनूवर्स फील्ड फायरिंग आर्टिलरी प्रैटिक्स एक्ट 1938 लागू हो सकती है ?
वहाँ से निराश होने के बाद समिति ने वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, झारखण्ड सरकार से इस मामले को जानने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम से कोशिश की, परन्तु यहाँ भी निराशा ही हाथ लगी. वन, पर्यावरण मंत्रालय से सूचना मांगने के पीछे समिति का मानना था कि पलामू व्याघ्र परियोजना के तहत नेतरहाट का पठार क्षेत्र इको सेंसिटिव जॉन के अंतर्गत आता है. समिति ने मंत्रालय से स्पष्ट तौर पर जानना चाहा कि क्या इको सेंसिटिव ज़ोन में मैनूवर्स फील्ड फायरिंग आर्टिलरी प्रैटिक्स एक्ट 1938 लागू हो सकती है या नहीं ?
बगोदर के विधायक विनोद कुमार सिंह ने विधानसभा मामला उठाया, लेकिन..
सरकार द्वारा जब कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला तो विधायकों को इस संदर्भ में झारखण्ड विधान सभा में सवाल उठाने का आग्रह किया गया. विधायक विनोद कुमार सिंह ( बगोदर विधानसभा ) ने समिति की बातों को विधानसभा के पटल में रखा, परन्तु यहाँ भी सरकार ने नेतरहार फील्ड फायरिंग रेंज को रद्द करने व अवधि विस्तार पर रोक लगाने के संदर्भ में कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया.
चूँकि यह इलाका पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आता है और यहाँ पेसा एक्ट 1994 लागु है. अत:केन्द्रीय समिति ने प्रभावित क्षेत्र के ग्राम प्रधानों से आग्रह किया कि ग्राम सभा का आयोजन कर यह निर्णय लें कि आप नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए गाँव के सीमा के अन्दर की जमीन देना चाहते हैं या नहीं. समिति के आग्रह पर प्रभावित क्षेत्र की ग्रामसभाओं ने जो निर्णय दिया है, उसकी कॉपी लेकर केन्द्रीय जन संघर्ष समिति के बैनर पर स्थानीय लोग 21 अप्रैल से 25 अप्रैल 2022 तक पदयात्रा करते हुए राज्यपाल के पास जाएंगे और ग्रामसभा के निर्णय की कॉपी सौंपेंगे.
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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