Russia Ukraine War
रूस और यूक्रेन के बीच बीती 24 फरवरी को शुरू हुई जंग को अब लगभग डेढ़ महीना पूरा होने जा रहा है.इस बीच अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी समेत तमाम पश्चिमी देशों ने संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रूस की निंदा की और उसके ख़िलाफ़ अलग-अलग तरह के कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं.लेकिन भारत ने अब तक इस मामले में तटस्थ रुख़ अपनाया है.भारत सरकार ने अब तक अपने किसी भी बयान में रूस की निंदा नहीं की है. भारत ने इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में लाए गए तमाम प्रस्तावों पर मतदान से दूरी बनाए रखी है.
कई लोग इसे रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख में बदलाव के संकेत के रूप में भी देख रहे हैं.
लेकिन बीती शाम बूचा में हुई मौतों के मामले में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति के बयान को भारत के इस रुख से अलग माना जा रहा है.उन्होंने बूचा से आईं ख़बरों को ‘भीतर तक परेशान करने वाला’ बताया है और संयुक्त राष्ट्र से मांग की है कि इस मामले की स्वतंत्र जांच की जाए.कई लोग इसे रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख में बदलाव के संकेत के रूप में भी देख रहे हैं. लेकिन भारत की इस टिप्पणी में रूस का ज़िक्र नहीं किया गया है.
यह पहला मौका बताया जा रहा है जब भारत ने निंदा करने का फ़ैसला किया है.बूचा में जो कथित नरसंहार हुआ है, उसकी तस्वीरें आई हैं. उसके बाद यूएन में भारत के स्थायी प्रतिनिधि की ओर से बयान आया है. इस बयान को दो तरह से समझा जा रहा है. कुछ लोगों का मानना है कि भारत के रुख में बदलाव आ रहा है. 24 फरवरी से पहले भारत ने रूस की वैध सुरक्षा चिंताओं की बात उठाई थी.
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कूटनीति और बातचीत से इस समस्या का समाधान निकालने की बात भी की गयी है.
लेकिन रूस के सैन्य दखल के बाद से भारत ने इस मामले में तटस्थ रुख अख़्तियार किया हुआ है और यूएन में जितने भी प्रस्ताव सामने आए हैं, उसमें भारत ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया है. और रूस की नाम लेकर निंदा नहीं की है. लेकिन भारत ने साथ ही साथ अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की बात करते रहे हैं. कूटनीति और बातचीत से इस समस्या का समाधान निकालने की बात भी की गयी है.
देखने वाली बात ये है कि भारत ने किसी भी बयान का समर्थन नहीं किया है. न उन्होंने पश्चिमी देशों के मत का समर्थन किया है और न रूस के बचाव में कोई बयान दिया है. ऐसे में जो होना चाहिए वो यही है कि इस मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच होनी चाहिए. और इसके बाद जो भी नतीज़े आते हैं, उसके हिसाब से ज़िम्मेदारी तय की जानी चाहिए. ऐसे में ये नहीं कहा जा सकता है कि इस मुद्दे पर भारत के रुख कोई बड़ा बदलाव हुआ है. भारत अभी भी क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की बात कर रहा है और कह रहा है कि इस मुद्दे को बातचीत से सुलझाया जाए.
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