केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसला देते हुए कहा कि मंदिर की पूजा पद्धति में सरकार का कोई दखल नहीं होगा और सिर्फ पुजारी ही ब्राह्मणों के पैर धोने की परंपरा निभाएंगे. दरअसल ये मामला केरल के एर्नाकुलम जिले में स्थित श्री पूर्णाथ्रयेशा मंदिर का है, जहां 12 ब्राह्मणों के पैर धोने की परंपरा है.
माना जाता है कि ऐसा करने से पाप खत्म होते हैं. ये परंपरा मंदिर के पुजारी ही निभाते हैं. हाल ही में कोचीन देवासम बोर्ड ने इस परंपरा में बदलाव किया था. इस बोर्ड में राज्य सरकार के भी अधिकारी होते हैं. देवासम बोर्ड ने ये आदेश दिया था कि इस परंपरा का नाम पंथरंडू नमस्कारम से बदल कर समरधाना रख दिया जाए. और ब्राह्मणों के पैर धोने की परंपरा सिर्फ पुजारी ही नहीं निभाएंगे.
मंदिर में आने वाला कोई भी भक्त ऐसा कर सकता है. बोर्ड के इस फैसले के बाबत अखबार में छपी खबर को लेकर केरल हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकार मंदिर की पुरानी परंपरा में हस्तक्षेप नहीं कर सकती, इसलिए जो परंपरा पहले थी उसे बहाल किया जाए. सिर्फ मंदिर के पुजारी को ही ब्राह्मण के पैर धोने का अधिकार होगा.
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