‘द कश्मीर फाइल्स’ 11 मार्च को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज किया गया | इस फिल्म ने कश्मीरी पंडितों के दर्द को बखूबी बयां किया है | फिल्म को काफी पसंद किया जा रहा है | साथ ही बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कलेक्शन कर रही है| ऑडियंस की माउथ पब्लिसिटी के कारण सिनेमाघर फुल हो गए | इस बीच फिल्म को कई भाजपा शासित राज्यों में टैक्स-फ्री कर दिया गया है| इनमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, उत्तराखंड और गोवा शामिल हैं|
लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि फिल्मों को टैक्स-फ्री क्यों किया जाता है | ऐसा करने के पीछे क्या वजह होती है और फिल्म के टैक्स-फ्री होने का मतलब क्या होता है?
फिल्म टैक्स -फ्री होने का गणित
उड़ीसा रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य सरकार सिनेमाघरों से एंटरटेनमेंट टैक्स वसूलती चली आ रही थीं और ये सिलसिला 2017 में GST के लागू होने से पहले तक लागु था लेकिन नया टैक्स लागू होने के बाद केंद्र सरकार ने तय किया कि देश के हर राज्य में फिल्मों की टिकट पर 28 फीसदी GST लिया जाएगा. साथ ही इस टैक्स से होने वाली कमाई का आधा हिस्सा राज्य और केंद्र सरकार को मिलेगा.
यह नियम लागू होने के बाद फिल्म इंडस्ट्री में राहत की साँस देने के लिए आवाज उठाई. फिल्म इंडस्ट्री के लोगों का कहना था कि टिकट पर 28 फीसदी टैक्स बहुत ज्यादा है. इसलिए केंद्र सरकार से इसमें राहत देने की गुजारिश की गई. इस बदलाव को दो स्लैब में बांटा गया.
पहला: अगर किसी थिएटर में टिकट की कीमत 100 रुपये से कम है तो पर उस पर 12 फीसदी GST लगेगा.
दूसरा: अगर टिकट की कीमत 100 रुपये से अधिक है तो टिकट पर 18 फीसदी जीएसटी लगाया जाएगा.
9 फीसदी टैक्स लग भी रहा है वो केंद्र के हिस्से का
टिकट के गणित को आप इस उदाहरण से समझ सकते हैं. जैसे- उत्तर प्रदेश में किस भी फिल्म के टिकट के दाम पर 18% जीएसटी वसूला जा रहा है. टैक्स-फ्री होने के बाद इस पर 9 फीसदी ही टैक्स लगेगा. क्यों? क्योंकि राज्य सरकार ने अपने हिस्से के 9% टैक्स के दायरे से मुक्त कर दिया है. इसलिए जो भी 9 फीसदी टैक्स लग भी रहा है वो केंद्र के हिस्से का है. राज्य के पास केवल अपने हिस्से के 50 फीसदी टैक्स को माफ करने का ही अधिकार होता है.
किस प्रकार की फिल्मों को टैक्स-फ्री किया जाता है?
देश में उन फिल्मों को टैक्स-फ्री किया जाता है जो आमतौर पर किसी न किसी मायने में आम लोगों पर अच्छा असर छोड़ती हैं. या फिर जो उनके लिए देखना जरूरी समझा जाता है. जैसे- प्रेरित करने वाली फिल्में, राष्ट्रीय स्तर की शख्सियत पर बनी फिल्में और सांप्रदायिक सौहार्द्र को बढ़ावा देने वाली फिल्में. ऐसा मानना है कि ऐसी फिल्मों से समाज पर अच्छा असर पड़ेगा लेकिन यह फैसला लेना राज्य सरकार पर निर्भर करता है.
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