यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीएव पर रूसी फौज लगातार हमले कर रही है, जिसमें कई सरकारी भवनों को निशाना बनाया गया है. इसी शहर के नगर परिषद भवन पर क्रूज़ मिसाइल से हमला किए जाने की ख़बरें आ रही हैं.
माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में रूस की ओर से आक्रामकता बढ़ सकती है, जिससे दोनों पक्षों को भारी जानमाल की हानि हो सकती है.यूक्रेन और रूस के बीच छिड़ा युद्ध अब आठवें दिन में पहुँच गया है. रूसी सेना लगातार यूक्रेन की राजधानी कीएव समेत तमाम अन्य शहरों पर क़ब्ज़ा जमाने की कोशिश कर रही हैं.
यूक्रेन को अपनी फौजों को पुन: संगठित करने का मौक़ा मिल गया. दूसरे देशों से मदद भी आना शुरू हो गई.
लेकिन युद्ध के सात दिन गुजरने के बाद अब ये राय बदलती हुई दिख रही है.रूस की सैन्य रणनीति, शुरुआती बढ़त और फिर उसकी गति में कमी आने पर जनरल वीपी मलिक कहते हैं –
“पुतिन और रूस की सेना ने पहले तीन दिन तेज़ सैन्य अभियान चलाया, उसके बाद में उन्होंने अपना मोमेंटम खो दिया. इसकी दो वजह हो सकती हैं, एक वजह तो शायद ये हो सकती है कि वो समझते थे कि तब तक यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की हथियार डाल देंगे. यूक्रेन की सेना हथियार डाल देगी, जो नहीं हुआ.इसके बाद यूक्रेन को अपनी फौजों को पुन: संगठित करने का मौक़ा मिल गया. दूसरे देशों से मदद भी आना शुरू हो गई, जिससे उनका मनोबल भी बढ़ गया. मैं समझता हूँ कि ये रूसी सेना की ग़लती थी कि उन्होंने तीन या चार दिन के बाद अपना मोमेंटम छोड़ दिया.
शहरों में हमेशा लड़ाई के हालात ख़राब होते हैं, उसमें बचाव करने वाले पक्ष को ज़्यादा फ़ायदा मिलता है.
इस ग़लती की वजह से उन्हें अब काफ़ी नुकसान उठाना पड़ेगा. इस समय यूक्रेन की सेना का मनोबल काफ़ी ऊँचा है. उन्हें मदद मिल रही है. उन्होंने अपने आपको विशेष रूप से शहरों में एक बार फिर संगठित कर लिया है. शहरों में हमेशा लड़ाई के हालात ख़राब होते हैं, उसमें बचाव करने वाले पक्ष को ज़्यादा फ़ायदा मिलता है. इसमें देरी भी होती है. जानमाल का नुकसान भी ज़्यादा होता है.
इस जंग को रोकने की दिशा में अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन समेत तमाम मुल्क रूस और उनके सहयोगियों पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रहे हैं.इन प्रतिबंधों की वजह से रूस की मुद्रा में भारी गिरावट दर्ज की गई है. लेकिन अब तक ये स्पष्ट नहीं हो रहा है कि ये आर्थिक प्रतिबंध युद्ध रोकने की दिशा में कितने कारगर साबित होंगे.रूस और यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले तक ये माना जा रहा था कि रूस को इस युद्ध में एक आसान जीत मिल सकती है.
यूरोप की रूस पर जो ऊर्जा से जुड़ी निर्भरता थी, वह कम हो जाएगी. रूस पर भी इन आर्थिक प्रतिबंधों का काफ़ी प्रभाव पड़ेगा.
लेकिन यहाँ ये कहना ज़रूरी है कि रूस परेस्पशन बैटल यानी लोगों की नज़र में युद्ध हार चुका है. इसके साथ ही उसे यूक्रेन, विशेषत: कीएव समेत अन्य शहरों को जीतने में बहुत दिक्कत आएगी.”अमेरिका से लेकर ब्रिटेन समेत कई देशों ने रूसी बैंकों, उद्योगों और व्यवसायियों पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं. और जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ रहा है, इन देशों की ओर से प्रतिबंधों का स्तर भी बढ़ता दिख रहा है.
रूसी मुद्रा में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है. लेकिन इसके बावजूद रूसी आक्रामकता कम होने के संकेत नहीं मिल रहे हैं.ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये प्रतिबंध युद्ध रोकने की दिशा में कारगर साबित होंगे. यूरोप से लेकर अमेरिका में तमाम लोग इन प्रतिबंधों की प्रभाविकता पर सवाल उठा रहे हैं.यूरोप की रूस पर जो ऊर्जा से जुड़ी निर्भरता थी, वह कम हो जाएगी. रूस पर भी इन आर्थिक प्रतिबंधों का काफ़ी प्रभाव पड़ेगा. रूबल पहले ही तीस प्रतिशत तक गिर गया है. रूस के कई बैंकों को स्विफ़्ट सिस्टम से बैन कर दिया गया है.
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