झारखंड हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए मौखिक रूप से महत्वपूर्ण टिप्पणी की है l हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एस के द्विवेदी की कोर्ट ने धनबाद की एक महिला की याचिका पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी की l कोर्ट ने बिल्डर रंजन कुमार पर दायर मुकदमे को निरस्त करने संबंधी याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि हाल के दिनों में लगातार यह देखा जा रहा है कि बिल्डर आम लोगों की मेहनत की गाढ़ी पूंजी लेने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रहे हैं l
बिल्डर रंजन कुमार की ओर से झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता शैलेश सिंह ने पक्ष रखा l जबकि राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता विनीत वशिष्ठ ने पक्ष रखते हुए कहा कि एफआईआर में अगर आपराधिक मामला पाया जाता है तो दीवानी मामले चलने के साथ-साथ आपराधिक मामले भी चला सकते हैं l इस दलील के लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का भी हवाला दिया, जिससे अदालत संतुष्ट दिखा l
जाने क्या है पूरा मामला ?
दरअसल, धनबाद की रहने वाली महिला शहनाज परवीन ने बिल्डर रंजन कुमार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई है l प्राथमिकी में उन्होंने यह आरोप लगाया है कि रंजन कुमार ने उनसे जिस नक्शे की बिल्ड़िंग बनाने का वादा कर पैसे लिये उससे अलग नक्शे का फ्लैट बनाकर उन्हें दे दिया, इतना ही नहीं प्राथमिकी में यह भी कहा गया है कि पैसे लेने के समय बिल्डर ने ग्राहकों को जो अन्य सुविधाएं देने का वादा किया था वो भी पूरा नहीं की गई l फ्लैट के एवज में उनसे लगभग 53 लाख रुपये भी लिये गए l
शहनाज परवीन द्वारा दर्ज प्राथमिकी के आधार पर दीवानी के साथ-साथ फौजदारी मुकदमा भी दर्ज किया गया था, जिसे निरस्त करने की मांग रंजन कुमार ने हाईकोर्ट से की थी l लेकिन अदालत ने सरकारी अधिवक्ता विनीत वशिष्ठ की दलील से सहमत होकर रंजन कुमार की याचिका को खारिज कर दिया l
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