शिव विवाह और रामजन्मोत्सव के प्रसंग का वर्णन सुनकर भावविभोर हुए श्रद्धालु, 11 सदस्यीय संगीत मंडली ने मनमोहक भजन की दी प्रस्तुति। शनिवार, जमशेदपुर: सिदगोड़ा सूर्य मंदिर कमिटी द्वारा श्रीराम मंदिर स्थापना के द्वितीय वर्षगांठ के अवसर पर संगीतमय श्रीराम कथा का गुरुवार को शुभारंभ हुआ।
कथा प्रारंभ से पहले वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मंदिर कमेटी के मुख्य संरक्षक सह पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की धर्मपत्नी रुक्मणि देवी, अध्यक्ष संजीव सिंह एवं उनकी धर्मपत्नी, अखिलेश चौधरी एवं उनकी धर्मपत्नी व महेंद्र यादव ने धर्मपत्नी संग कथा व्यास पीठ एवं व्यास का विधिवत पूजन किया। पूजन पश्चात हरिद्वार से पधारे कथा व्यास परम् पूज्य साध्वी डॉ विश्वेश्वरी देवी जी का स्वागत किया गया।
स्वागत के पश्चात कथा व्यास साध्वी डॉ विश्वेश्वरी देवी जी ने श्रीराम कथा के प्रथम दिन शिव विवाह एवं राम जन्मोत्सव के प्रसंग का वर्णन किया। कथा में 11 सदस्यीय संगीत मंडली ने मधुर व मनमोहक भजन प्रस्तुत कर पूरे क्षेत्र को भक्तिमय कर दिया। साध्वी डॉ विशेश्वरी देवी जी ने श्रीमुख से शिव विवाह और रामजन्मोत्सव की कथा सुनाकर उपस्थित श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया। कथा में श्रद्धालुओं का जबरदस्त हुजूम जुटा।
सूर्यमंदिर परिसर में श्रीराम कथा के प्रथम दिन मंत्रमुग्ध हुए श्रद्धालु, पूरा क्षेत्र हुआ भक्तिमय
प्रसंग का वर्णन करते हुए साध्वी जी ने कहा कि श्री पार्वती जी की एक निष्ठा एवं कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने विवाह का वचन दिया। जीव जब सच्चे हृदय से प्रार्थना करते है तो भगवान भी उसे सम्यक फल प्रदान करते हैं। भोगी की प्रारम्भिक अवस्था सुखमय प्रतीत होती है, किन्तु अन्त अत्यन्त दुखद होता है। इसके ठीक विपरीत योगी की साधना अवस्था कष्टप्रद होती है किन्तु अंत बड़ा सुखद होता है। इसलिए कहा जाता है, “अन्त मला तो सब भला” |
कथा में वर्णन करते हुए पूज्य साध्वी जी ने कहा कि शिव पार्वती विवाह में भूत प्रेतों को भी शामिल किया गया है, जो शिव की समता का दर्शन कराता है। शिव विवाह का अत्यन्त मनोरम वर्णन करते हुए पूज्य साध्वी जी ने कहा कि शिव पार्वती जी साक्षात शक्ति और शक्तिमान है। लीला मात्र के लिए यह दोनों अलग-अलग रूपों में नजर आते हैं किन्तु अर्ध नारीश्वर रूप में दोनों एक ही हैं। शक्ति और शक्तिमान के पाणिग्रहण से कुमार कार्तिक का जन्म होता है जो तारकासुर का अन्त करते हैं।
तारकासुर समाज के अनाचार एवं अधर्म का प्रतीक है और कुमार कार्तिक सद्गुणों का प्रतीक हैं जब सद्गुण बलवति होते हैं तो बड़े से बड़े अवगुण को भी नष्ट कर देते हैं। शिव पार्वती प्रसंग के माध्यम से श्री रामकथा का प्रारंभ कैलाश की पावन भूमि पर हुआ पार्वती जी ने शिवजी से राम-चरित्र विषयक कुछ प्रश्न पूछे और शंकर जी ने उनका उत्तर देते हुए श्रीराम कथा प्रारम्भ की।
प्रत्येक कल्प में भगवान का श्रीरामावतार होता है। पांच कल्पों की कथा मानस में है। अधर्म रूप रावण के अन्त के लिए एवं संतों भक्तों व प्रेमियों को आनन्द देने के लिए भगवान अवतार लेकर आते हैं। हमारा मन ही अयोध्या है, जब मन में प्रेम और भक्तों की धारा प्रवाहित होने लगती है तो भगवान निराकार से साकार हो जाते हैं। त्रेता युग में चैत्र शुल्क पक्ष नवमी के दिन भगवान का अवतार महाराज दशरथ एवं माता कौशल्या के राज भवन में हुआ। भगवान के जन्मोत्सव पर समस्त श्रद्धालुओं ने एक दूसरे को बधाई दी एवं आनंद के साथ श्री रामलला के दर्शन करते हुए नृत्य किया।
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