झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला अनुमंडल के मुसाबनी क्षेत्र स्थित गुड़ाबांदा प्रखंड का सिंहपुरा इन दिनों नर हाथियों के जंग का मैदान बन गया है। आए दिन यह क्षेत्र हाथियों के चिघाड़ से दहल उठता है।
चाकुलिया वन क्षेत्र पिछले कई वर्षों से करीब 50 जंगली हाथी आतंक का पर्याय बने हैं। यही हाथी कभी स्वर्णरेखा नदी पार कर गुड़ाबांदा क्षेत्र पहुंच जाते हैं और उपद्रव मचाते हैं। हाथियों द्वारा किए जा रहे उपद्रव और नर हाथियों के बीच हो रही जंग से ग्रामीण दहशत में हैं। एक विशालकाय नर हाथी दल से अलग-थलग पड़ा है और वही हाथी सर्वाधिक तोड़फोड़ मचा रहा है। यह हाथी अकेले ही घूमता रहता है। हाथियों के दल में नर हाथी होने के कारण यह हाथी दल के पास भी नहीं फटकता है।
कमजोर हाथी को मैदान छोड़ना पड़ता है
जानकार बताते हैं कि हाथियों के संबंध में एक खास बात यह है कि इनके दल में एक ही नर हाथी होता है और वही इस दल का राजा होता है। दल का राजा अपने दल में किसी दूसरे नर हाथी का प्रवेश बर्दाश्त नहीं करता। दल में जैसे ही कोई नर हाथी आ जाता है तो दल का राजा हाथी उसे खदेड़ने की कोशिश करता है और फिर दोनों में जबरदस्त लड़ाई होती है। इस लड़ाई में एक हाथी को घायल होकर मैदान छोड़कर भागना पड़ता है। इस लड़ाई में कभी-कभी कोई नर हाथी इतनी बुरी तरह जख्मी हो जाता है कि उसकी मौत भी हो जाती है। कभी-कभी तो दोनों ही नर हाथी आपसी लड़ाई में जख्मी हो जाते हैं।
शिशु हाथी को रहता है हर समय खतरा
अपने वर्चस्व को लेकर दल का राजा नर हाथी इतना गंभीर रहता है कि दल में अगर किसी मादा हाथी ने नर शिशु को जन्म दिया तो नर हाथी उसे मार देता है। इस हालत में दल की सभी मादा हाथी नर शिशु की कड़ी सुरक्षा करती है। मादा हाथी एक घेरा के अंदर नर शिशु को रखते हैं और नर हाथी को उसके पास फटकने तक नहीं देती है। मादा हाथी ऐसा तब तक करती है, जब तक की नर शिशु बड़ा नहीं हो जाता है।
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