पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालत के उस आदेश को चुनौती देने वाली व्यक्ति (पति) की पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए कहा कि भले ही पत्नी कमा रही हो, पति उसे कानूनी और नैतिक रूप से गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य है.
याचिकाकर्ता ने 7 दिसंबर 2018 को मोगा के जिला न्यायाधीश (पारिवारिक न्यायालय) द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिका दायर की थी, जिसमें पत्नी को प्रति माह 3,500 रुपये और नाबालिग बेटी को 1,500 रुपये प्रति माह का अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया था.
याचिकाकर्ता के अनुसार,
उसकी 29 अप्रैल, 2017 को शादी हुई थी और उनकी बेटी का जन्म मार्च, 2018 में हुआ था और वह अपनी मां के साथ रह रही है. उन्होंने कहा कि पत्नी के झगड़ालू स्वभाव के कारण वे अलग रहने लगे.
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि उसकी पत्नी एमए, बीएड है और एक शिक्षिका के रूप में तैनात है जिसके लिए उसे अच्छा वेतन मिलता है जबकि कोरोना के कारण उसकी नौकरी चली गई है और वह अपने पिता पर निर्भर है.
जस्टिस राजेश भारद्वाज की खंडपीठ ने कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को देखते हुए, यह अच्छी तरह से स्थापित कानून है कि भले ही पत्नी कमा रही हो, पति कानूनी और नैतिक रूप से उसे गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य है.
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