मुस्लिम महिलाओं ने इस सप्ताह की शुरुआत में पूरी दुनिया में जागरूकता पैदा करने, धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने और हिजाब की अहमियत बताने के लिए 1 फरवरी को विश्व हिजाब दिवस मनाना. उसी समय, भारत में मुस्लिम लड़कियों के स्कूल में हिजाब पहनने के अधिकार पर एक राजनीतिक विवाद छिड़ गया.
कर्नाटक के उडुपी शहर की स्कूली लड़कियों के एक समूह ने कॉलेज में भाग लेने के दौरान हिजाब पहनने के अधिकार को लेकर अपने प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज के प्रशासन को आड़े हाथों लिया. लड़कियों का कहना है कि हिजाब पहनना उनके धर्म का पालन करने का एक अनिवार्य हिस्सा है.
मुस्लिम स्कूली लड़कियों को हिजाब पहनने से रोकना भेदभावपूर्ण
यह मुद्दा इतना तूल पकड़ गया कि एक छात्रा ने कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर कर क्लास के अंदर हिजाब पहनने के अधिकार की मांग की है. जिसमें ये भी कहा गया है कि मुस्लिम स्कूली लड़कियों को हिजाब पहनने से रोकना भेदभावपूर्ण है. इसकी प्रतिक्रिया में, कर्नाटक सरकार ने कॉलेजों में हिजाब पहनने के अधिकार पर कहा कि “समानता, अखंडता और सार्वजनिक कानून और व्यवस्था को बिगाड़ने वाले कपड़े में नहीं पहने जाने चाहिए.” सरकार का यह बयान इस विचार को दर्शाता है कि मुस्लिम छात्राओं का स्कूल में हिजाब पहनना राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षता के विचार के खिलाफ है और कट्टरवाद और असहिष्णुता को बढ़ावा दे सकता है.
लेकिन जब हम सिख लड़कों को स्कूलों में पगड़ी पहनने की अनुमति देते हैं तो क्या तब कट्टरवाद और असहिष्णुता को बढ़ावा नहीं मिलता? यहां सवाल यह उठता है कि क्या पब्लिक स्कूल जैसी धर्मनिरपेक्ष संस्था में एक विशेष धार्मिक संप्रदाय के स्कूलों में हिजाब पहनने की अनुमति है. और क्या हिजाब में लड़कियां एक पब्लिक कॉलेज की धर्मनिरपेक्षता को प्रभावित करती हैं और कानून व्यवस्था का कोई मुद्दा पैदा करती हैं.
मुद्दे पर न्यायिक दृष्टिकोण क्या है ?
इससे पहले कि हिजाब विवाद के इन मसलों का जवाब दिया जाए, हम इस पर एक नज़र डालते हैं कि पूर्व में अदालतों ने इन मामलों पर क्या फैसला सुनाया है. तो सबसे पहली बात कि इस मुद्दे पर कि पब्लिक स्कूलों में हिजाब पहनने जैसी जरूरी धार्मिक प्रथाओं के पालन की मंज़ूरी मिलना उनके मौलिक अधिकार के रूप में संरक्षित है. भारत में अदालतों द्वारा कभी भी औपचारिक रूप से निर्णय नहीं लिया गया है. हालांकि, अतीत में ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां अदालतों ने इस मामले के कुछ पहलुओं पर विचार किया है. उदाहरण के लिए, 2018 में केरल हाईकोर्ट ने ऐसे ही एक मामले को निपटाया, जहां दो मुस्लिम स्कूली लड़कियों ने स्कूली अधिकारियों द्वारा सिर पर दुपट्टा और पूरी बाजू की शर्ट पहनने से इनकार करने को कोर्ट में चुनौती दी थी.
यह एक निजी स्कूल का मामला था. केरल हाईकोर्ट ने ड्रेस कोड लागू करने के लिए संस्था के अधिकार और लड़कियों के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे की जांच की. अदालत ने माना कि लड़कियों के स्कूल में हिजाब पहनने के अधिकार को लागू नहीं किया जा सकता है और स्कूल यह तय कर सकता है कि वह छात्रों को स्कूल जाने के लिए सिर पर स्कार्फ और पूरी शर्ट पहनने की अनुमति देगा या नहीं. लेकिन, केरल हाईकोर्ट ने 2016 में पहले के एक मामले में अखिल भारतीय प्री-मेडिकल टेस्ट के लिए उपस्थित होने वाले स्टूडेंट के लिए CBSE ड्रेस कोड में बदलाव किया था और मुस्लिम लड़कियों को परीक्षा देने के लिए सिर पर स्कार्फ और पूरी बाजू की शर्ट पहनने की अनुमति दी थी.
धर्म के लिए जरूरी नियमों के पालन की सुरक्षा एक मौलिक अधिकार
अदालत ने कहा, धर्म का पालन करने के अधिकार के मामले में अनुच्छेद 25(1) के तहत किसी व्यक्ति को दिए गए अधिकार को कम या विनियमित किया जाता है यदि उस अधिकार का प्रयोग संविधान के भाग III के अन्य प्रावधानों का उल्लंघन करता है, या यदि उसका प्रयोग सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अनुरूप नहीं है. जब संविधान घोषित करता है कि धर्म के लिए जरूरी नियमों के पालन की सुरक्षा एक मौलिक अधिकार है और राज्य के हस्तक्षेप से परे है, तो व्यक्ति के अधिकार या संप्रदाय के अधिकार के साथ किसी भी हस्तक्षेप के लिए इस तरह की सुरक्षा को खत्म करने के लिए यह कदम राज्य के हित के लिए जरूरी है यह साबित करने की जरूरत होती है.
कानूनी स्थिति जो उभरती है वह यह है कि राज्य द्वारा लगाए गए किसी भी प्रतिबंध को व्यापक सार्वजनिक हित में होना चाहिए और भेदभावपूर्ण नहीं होना चाहिए.
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