गोलमुरी में जन-मुक्ति संघर्ष वाहिनी की झारखण्ड प्रांतीय समिति की एक विशेष बैठक साथी जगत के आवास पर आयोजित की गई, जिसमें खास तौर पर सीमान्त गांधी के नाम से जाने जाने वाले महान व्यक्तित्व खान अब्दुल गफ्फार खां की जयन्ती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी.
अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ाई का सबसे बेहतर विकल्प है अहिंसा
बैठक में उपस्थित वरीय साथी अरविन्द अंजुम ने खान अब्दुल गफ्फार खां के विषय चर्चा करते हुए कहा, कि आज़ादी के संघर्ष के दौरान उन्होंने अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए देश के लोगों को भी यही पाठ पढाया, कि यही अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ाई का सबसे बेहतर विकल्प है. उन्होंने खुदाई खिदमतगार की स्थापन की. खुदाई खिदमतगार एक फारसी शब्द है, जिसका हिन्दी में अर्थ होता है ईश्वर की बनाई हुई दुनिया के सेवक. वे पहले गैर भारतीय थे, जिन्हें भारत रत्न दिया गया था.
वे बादशाह खान के नाम से भी जाने जाते थे. 1985 में उनको नोबेल शांति पुरस्कार के लिए मनोनीत किया गया था. पाकिस्तान-अफगानिस्तान की सीमा पर, जहां आतंकवादियों और कट्टरपंथियों का खौफ मौजूद है, वहां कभी लोगों की सेवा में बादशाह खान ने अपनी ज़िंदगी गुजारी थी.
खुदाई खिदमतगार के ज़रिए खान साहब ने पठानों में जाग्रति लाई
स्कूल, अखबार और खुदाई खिदमतगार के ज़रिए खान साहब ने पठानों में जाग्रति लाई, उन्हें भय-मुक्त किया और आज़ादी के आन्दोलन से जोड़ा. अंग्रेज़ कहने लगे, कि अहिंसक पठान हिंसक पठानों से भी अधिक खतरनाक हैं. खुदाई खिदमतगार के स्वयंसेवक लाल कपड़े पहनते थे, इसलिए उनको ‘लाल डगलेवाला भी कहा जाता था. खां साहब और उनके स्वय्म्सेवाकों को लगातार जेल की यातनाएं सहनी पड़ी.
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आज कई सत्ता के चाटूकार लोग कहते है, कि भारत की असली आज़ादी 2014 के बाद मिली है
आज कई सत्ता के चाटूकार लोग कहते है, कि भारत की असली आज़ादी 2014 के बाद मिली है. उन्हें इतिहास अच्छे से पढ़ लेना चाहिए, कितने संघर्ष के बाद देश स्वतंत्र हुआ था. आज भी सीमान्त गांधी जैसे महान लोगों की ज़रुरत है देश को. बैठक में यह संकल्प लिया गया, कि समाज में ऐसे महापुरुषों के विचारों को प्रसारित कर देश कोएक नै दिशा देने का कार्य करेंगे.
9 मार्च को महिला दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम
बैठक में यह निर्णय लिया गया, लगातार इसी तरह संगठन की नियमित बैठकें अलग-अलग साथियों के आवास पर होंगी, ताकि परिवार के लोग भी संगठन की विचारधारा से परिचित हों. साथ ही आगामी 9 मार्च को महिला दिवस के उपलक्ष्य में एक कार्यक्रम बालीगुमा किया जाएगा. साथ ही 8 अप्रैल से 3 दिवसीय युवा शिविर आयोजित किया जाएगा. वार्षिक अंशदान पर भी चर्चा की गई.
बैठक में अरविन्द अंजुम के अलावे जगत, रुस्तम, अमर सेंगेल, शशांक शेखर, कुमार दिलीप, मुकुंदर और उषा सबिना देवगम मौजूद रहे.
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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