वैश्विक ऊर्जा संकट की शुरुआत बीते पतझड़ के साथ ही शुरू हो गई थी. सर्दियां आते-आते हालात और बिगड़ गए. पहले गैस और अब तेल की क़ीमतों को भी आग लग गई है. यूरोप में ऊर्जा संसाधनों की इतनी कमी है कि आम लोगों से लेकर उद्योगों तक का बिजली और गैस बिल बेहिसाब बढ़ गया है.ऐसे में ये सवाल पूछा जा सकता है कि यूरोप में अचानक क्यों गैस संकट गहरा गया और वो सर्दी में ठिठुरकर जम जाने की इंतेहा पर पहुंच गया? इसके कई कारण हैं.
दो वजहें तो अस्थाई किस्म की हैं. पहली कोरोना महामारी और दूसरा मौसम. और बाक़ी तीन वजहें ऐसी हैं जो काफी लंबे समय से अनसुलझी हैं. इसकी बुनियाद एनर्जी मार्केट में प्रतिस्पर्धा, यूक्रेनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार और भविष्य की अर्थव्यवस्थाओं में हाइड्रोकार्बन की भूमिका को लेकर रूस और यूरोप के बीच जो सैद्धांतिक मतभेद हैं, उसी में है.यूरोप का ऊर्जा संकट कब तक चलेगा? यूरोप को इसका नुक़सान उठाना पड़ेगा? गैस मार्केट में खेल के नियम कैसे बदलेंगे?
यूरोपीय देश अपनी आबादी और उद्योग, दोनों को ही बचाने के लिए युद्ध स्तर पर तैयारी कर रहे हैं
और रूस की कमाई का प्रमुख स्रोत माने जाने वाले हाइडोकार्बन के इस्तेमाल को कम करने के लिए जिस ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा दिए जाने की बात की जा रही है, उसका भविष्य क्या है?इन तमाम सवालों के जवाब इस बात पर निर्भर करता है कि यूरोप और रूस के बीच जिन बुनियादी सवालों को लेकर मतभेद हैं, उसे कितनी जल्दी सुलझा लिया जाता है.रूस ने पश्चिमी देशों के सामने एक तरह से अंतिम शर्त रख दी है कि यूरोप को अलग-अलग प्रभाव क्षेत्र वाले खांचों में बांटा जाए और गैस मार्केट में खेल के नियम बदले जाएं.यूरोपीय देश अपनी आबादी और उद्योग, दोनों को ही बचाने के लिए युद्ध स्तर पर तैयारी कर रहे हैं और अमेरिका इस बात से खुश लग रहा है कि वो यूरोप को रूसी गैस के बदले ऊंची क़ीमतों पर इसकी सप्लाई का मौका मिलेगा.
पश्चिमी देशों ने यूरोप के ऊर्जा संकट के लिए रूस को सीधे जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया.
यूरोप को जितने प्राकृतिक गैस की ज़रूरत पड़ती है, उसका तकरीबन एक तिहाई रूस सप्लाई करता है. लेकिन बीते पतझड़ के बाद उसने गैस की आपूर्ति में बड़ी कटौती कर दी है.15 जनवरी तक यूरोपीय देश क्रेमलिन पर ‘गैस वॉर’ शुरू करने का आरोप सीधे तौर पर लगाने से बचते दिख रहे थे लेकिन जैसे ही यूक्रेन को लेकर व्लादिमीर पुतिन के इरादे सामने आने लगे, पश्चिमी देशों ने यूरोप के ऊर्जा संकट के लिए रूस को सीधे जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया.
यूरोप का यह ऊर्जा संकट अब एक आर्थिक समस्या से राजनीतिक चुनौती में बदल गया है.
एक ओर जहां पश्चिमी देश रूस पर संकट खड़ा करने का इलज़ाम लगा रहे हैं तो दूसरी ओर क्रेमलिन का कहना है कि यूरोप खुद इन हालात के लिए जिम्मेदार है.रूस पश्चिमी देशों के आरोपों से इनकार करता है. उसका कहना है कि यूरोप के ऊर्जा संकट से उसका कोई लेना-देना नहीं है. रूस की दलील है कि यूरोपीय संघ, गैस सप्लाई करने वाली कंपनियों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा लाने की कोशिशें और जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई इसके लिए जिम्मेदार हैं.
रूस के उपप्रधानमंत्री अलेक्ज़ेंडर नोवाक कहते हैं, “मैं इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी जैसी प्रतिष्ठित संस्था के प्रमुख से ऐसी बातें सुनकर हैरत में हूं. वे यूरोपीय उपभोक्ताओं की समस्याओं के लिए हम पर दोष मढ़ रहे हैं. न तो रूस और न ही गैज़प्रोम इसके लिए जिम्मेदार है.”
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