माता -पिता, रिश्तेदार और हमारे साथ रहनेवाले कई लोग जाने-अनजाने में लड़कों से कुछ ऐसी बाते कर जाते है जो उन्हें कभी नही कहना चाहिए. लड़के है इसलिए जो उन्हें ना बोलने को वो भी बोल दिया जाता है. आज मैं आपको वो पांच बाते बताउंगी जो आपको कभी किसी बड़े होते लड़के के साथ नहीं करनी चाहिए ये फिर आगे नहीं करना है.
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लड़कियों की तरह रोना बंद करो
“लड़के तो बहादुर होते, लड़के रोते नहीं” ये कमेंट अक्सर लड़को को दिया जाता है. यहाँ तक की जब बच्चों -बच्चों की झगड़े में अगर कोई लड़का पीटकर रोता हुआ घर वापस आये तो घरवाले कहेंगे ” अरे लड़के होकर पीटकर आ गये हाथ में मेहँदी लगी थी तुम्हारे ” बार -बार इस तरह की बात लड़कों के दिमाग में masculinity का एक ऐसा ढांचा बनाता है जो उसे रोने से रोकता है अगर वो रोता है तो उसे लगता है कि उसमे कुछ कमी है. इस तरह की बातें करके हम लड़कों के दिमाग में gender divide बनाते है जिससे उन्हें लगता है कि लड़कियां कमज़ोर होती है इसलिए वो रोती है, मर्द सख्त होते है इसलिए वो रोते नहीं बल्कि लड़ते है अपनी ताकत दिखाते है.
रोने को वो कमजोरी की निशानी मानने लग जाते है. अब उन्हें कौन समझाए कि रोना मन हल्का करने का कितना बेहतरीन तरीका होता है. रोना भी कोई कमजोरी नहीं है बल्कि हंसने जितना ही Natural और Normal Human Tendency. infact कई studies की माने तो लड़कों के लिए भी रोना उतना ही जरुरी है जितना की लड़कियों के लिए.
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खाना -वाना बनाना तुम्हारा काम नहीं
लड़कों को उनके घर में हमेसा ये कहा जाता है कि बेटा खाना बनाना तुम्हारा काम नहीं ये तो लड़कियों का काम है. खाना या तो उनकी माँ बनाएंगी, बहन बनाएंगी या फिर शादी के बाद पत्नी बनाएगी. अगर कोई बच्चा रसोई के काम में intrest लेता है तो उसे यह कहकर मना कर दिया जाता है कि तुमसे नहीं हो पायेगा, क्या करोगे यह सब सीखकर, ये तुम्हारा काम नहीं है. ऐसी बातें कहकर उसे टाल दिया जाता है जबकि घरों में लड़कियों को घरों में खाना बनाने की खास ट्रेनिंग दी जाती है. लड़कों के दिमाग में ये narrative यही से set होने लगता है की रसोई , घर संभालने के काम लड़कियों का है.
दूसरी चीज जब लड़का पढ़ाई या नौकरी के लिए बाहर निकलता है तब उसकी पूरी dependency बाहर के खाने पर हो जाती है. नतीजा lifestyle बिमारियों में बदल जाती है या जिंदगी maggi, खिचड़ी तक ही सिमित रह जाती है. इससे भी ना हुआ तो एक और बात सामने आ जाएगी “कब तक बाहर का खाओगे शादी कर लो” ये बातें उनके दिमाग में और inforce करता है कि पत्नी जो कुछ भी करें खाना बनाना भी उसी की responsblity है. but I think इस लॉकडाउन कई लड़कों ने तो basic खाना बनाना सिख ही लिया होगा.
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लड़कियों की तरह घर में क्योँ घुसे रहते हो?
शारीरिक और मानसिक विकास के लिए outdoor game खेलना जरुरी होता है लेकिन कई लड़कों को indoor game पसंद आते है. वो घर में रहकर book पढ़ना, घर में खेलना ये सब पसंद करते है. क्यों हमारे समाज में ये बात गांठ बाँध दी गई है कि women belong to indoor और लड़कों को out going होना चाहिए. कई बार peer pressure इच्छा ना होने के बाद भी उन्हें मजबूरन बाहर जाना पड़ता है इसमें एक तरह वो खुद को टोर्चेर कर रहे होते है. बच्चों को outdoor game के लिए motivate किसी और तरीके से भी किया जा सकता है.
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लड़के होकर ये नहीं आता ?
बचपन में साइकिल चलाने की बात हो या बड़े होकर बाइक चलाने की या फिर किसी चीज की मरमत बात, लड़कों को बल्ब बदलना तो आना ही चाहिए टाइप की बाते लेकिन बल्ब बदलना और कोई भी छोटे -मोटे काम gender specific नहीं होते. यही क्या बाइक या साइकिल चलाना भी gender specific नहीं होता इसलिए ये काम नहीं आने पर किसी पुरुष को जर्ज करने या कमेंट करने के बजाय ये समझना चाहिए कि कोई काम आना या ना आना उसकी abringing का हिस्सा है हो सकता है उसे कभी इन चीजों की जरूरत ही न पड़ी हो या उसे इन सब में intrest ही न हो. कोई skill ना आने पर कोई मर्द ज्यादा या काम नहीं होता. भले ये बात आप उसे सिखाने के लिए बोल रहे है हो,आपकी intention भी सही हो लेकिन बोलने का तरीका भी सही होना चाहिए.
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बड़े होकर तुम्हे ही खानदान की जिम्मेदारी उठानी है
घर चलाना तुम्हारी जिम्मेदारी होगी, लड़कों पर जिम्मेदारी का गैर-जरुरी बोझ काफी कम उम्र से ही डाल दिया जाता है. ये जिम्मेदारीयां कैसी ये बहन की safety से शुरू होकर घर की finance condition पर जाकर खत्म होती है. indian middle class के घर के लड़कों को stock exchange की तरह देखा जाता है. उन पर ये सोचकर invest किया जाता है की वो आगे जाकर return देंगे. उनकी हर choice को इसी आधार पर equation किया जाता है. बचपन में subject intrest की बात हो या बड़े होकर career के decision हमेसा कहा जायेगा जिम्मेदार बनों. बचपन से सब किया ताकि तुम सहारा बनो, बहन की शादी है जिम्मेदारी समझो.
जल्दी पढाई पूरी करो, जल्दी नौकरी करो जिम्मेदार बनो. एक तो हमारा social structure की ये कैसी formality है कि जितनी भी जमा पूंजी है वो या तो बेटी की शादी में जाएगी या बेटे की पढ़ाई में. एक पर शादी के योग्य बनने का pressure होता है, दूसरे पर जल्दी नौकरी करने का, घर की जिम्मेदारी उठाने का लेकिन इस जिम्मेदारी के नाम पर आप जो pressure create करते है उसका नतीजा बहुत ही गलत होता है.
इस वजह से ना वो उस काम को enjoy कर पाते है जो वो कर रहे है और ना ही खुलकर अपने intrest के हिसाब से कुछ choose कर पाते है. बार -बार जिम्मेदारी के नाम पर आप बच्चों के intrest को नज़रअंदाज मत करिये. उसे जरुर बताइए उसके पढ़ाई के लिए कितने sacrifice कर रहे है. अपनी limits को किस तरह Push कर रहे है लेकिन उस पर unnecessary pressure मत create करिये.
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