जमशेदपुर: जमशेदपुर वर्कर्स महाविद्यालय में राष्ट्रीय सेवा योजना कि दोनों इकाई की तरफ से सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती के उपलक्ष में पराक्रम दिवस मनाया गया ।इस अवसर पर एक वेबीनार का भी आयोजन किया गया। आज के इस वेबीनार के मुख्य अतिथि महाविद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर सत्यप्रिया महालिक थे। उन्होंने अपने संबोधन में नेताजी को एक महान पुरुष बताया ।
वह कर्म योगी थे, वह आंदोलनकारी थे ।आईसीएस की परीक्षा पास होने के बावजूद भी अंग्रेजों के अधीन काम करने के लिए तैयार नहीं थे अतः उन्होंने त्यागपत्र दिया और राजनीतिक लड़ाई में जुट गए ।विशिष्ट वक्ता के रूप में हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सुनीता गुड़िया थी उन्होंने अपने वक्तव्य में नेताजी के जीवनी के बारे में विस्तार से बताया उनके विद्यार्थी जीवन से लेकर राजनीतिक जीवन तक कई महत्वपूर्ण बातें बताई।
भारत की आजादी उनका प्रथम लक्ष्य है पर अगर हम इतने पर ही ठहर गए तो देश का विकास रुक जाएगा।
मुख्य वक्ता के रूप में महाविद्यालय के वरिष्ठ शिक्षक डॉ अशोक महापात्र थे उन्होंने बताया कि नेताजी पर स्वामी विवेकानंद और उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस का गहरा प्रभाव पड़ा महर्षि अरविंद के गहन दर्शन एवं उनकी उच्च भावना का भी प्रभाव पड़ा। नेताजी ऋषि अरविंद की पत्रिका आर्य को बहुत ही लगाव से पढ़ते थे। नेताजी महज 18 वर्ष की उम्र में अपने मित्र को लिखे पत्र में उन्होंने अपनी इच्छा प्रकट की थी कि भारत की आजादी उनका प्रथम लक्ष्य है पर अगर हम इतने पर ही ठहर गए तो देश का विकास रुक जाएगा। युग दृष्टा और योग्य सृष्टा के रूप में उन्होंने कई सारी योजनाएं सोच रखी थी। बातें राजनीति की हो या रणनीति की संस्कृति की हो या आर्थिक के सुभाष चंद्र बोस हर एक पैमाने पर पूरे विश्व के समक्ष अपने देश के उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करना चाहते थे।
सुभाष चंद्र बोस एक सच्चे देशभक्त थे उनका असमय चले जाना भारतीय राजनीति में एक बहुत ही दुखद घटना है। इस अवसर पर महाविद्यालय के एनएसएस के स्वयंसेवक छात्रों ने भी अपने विचार रखे जिसमें शोभा कुमारी, अमन कुमार एवं हीरामणि टुडू ने भी अपनी बातों को रखा। इस वेबीनार का संचालन कार्यक्रम पदाधिकारी प्रोफेसर पुष्पा लिंडा ने किया अंत में धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम पदाधिकारी अरविंद कुमार ने सभी वक्ताओं का धन्यवाद किया उन्होंने कहा कि नेता जी देश भक्ति की एक जलती तलवार थे। हमारे देश में ऐसे लोग हैं जो अंतरराष्ट्रीय के लिए देश की जरूरतों को तुच्छ समझते हैं सुभाष चंद्र बोस इसके विपरीत थे।
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