देश की सर्वोच्च अदालत के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन नरीमन ने राजद्रोह कानून को खत्म करने की बात कही है। उन्होंने सरकार की आलोचना करने वाले आलोचकों के खिलाफ देशद्रोह लगाने को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह देशद्रोह कानूनों को पूरी तरह से खत्म करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अनुमति देने का समय आ गया है।
गलत भाषा प्रयोग करने वालों से सख्ती से निपटने की जरुरत
14 जनवरी को मुंबई में डीएम हरीश स्कूल ऑफ लॉ के उद्घाटन के मौके पर एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने वालों पर कड़े राजद्रोह कानून के तहत मामला दर्ज किया जा रहा है। लेकिन अभद्र भाषा देने वालों से ठीक तरीके से निपटा नहीं जा रहा है।
सत्ताधारी दल भी है खामोश
उन्होंने कहा कि अभद्र भाषा देने वाले, एक विशेष समूह का नरसंहार करने का आह्वान कर रहे हैं, लेकिन इन लोगों के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई नहीं होती दिख रही। अधिकारियों में भी इसके लिए उदासीनता है। यहां तक कि दुर्भाग्य से सत्ताधारी दल के उच्च स्तर के लोग न केवल इस तरह की अभद्र भाषा के लिए खामोश हैं बल्कि उसका लगभग समर्थन भी कर रहे हैं l
उपराष्ट्रपति ने क्या कहा था ?
वेंकैया नायडू ने कहा था, “अभद्र भाषा और लेखन संस्कृति, विरासत, परंपरा के साथ-साथ संवैधानिक अधिकारों और लोकाचार के खिलाफ हैं। प्रत्येक व्यक्ति को देश में अपने धार्मिक विचारों को मानने और उसका प्रचार करने का अधिकार है। अपने धर्म का पालन करें, लेकिन गाली न दें और अभद्र भाषा और लेखन में लिप्त न हों।”
कौन है ये जस्टिस नरिमन ?
सुप्रीम कोर्ट में अपने सात साल के कार्यकाल के बाद जस्टिस नरीमन पिछले साल अगस्त में सेवानिवृत्त हुए थे। उनके प्रमुख फैसलों में श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ का 2015 का ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें अदालत ने सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की धारा 66 ए को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह प्रावधान मनमाना और असंवैधानिक था। सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणियों के लिए व्यक्तियों पर मामले दर्ज करने के लिए इस प्रावधान का नियमित रूप से उपयोग किया जाता था।
पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन नरीमन पिछले साल अगस्त में रिटायर हो चुके हैं। उनकी पहचान सपाट और बेबाक बोली के लिए है। अपने पिछले 35 सालों की वकालत के दौरान वह 500 से ज्यादा सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों को अपने खाते में दर्ज करा चुके हैं l
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