बिहार के सुपौल जिला अंडा उत्पादन में ना सिर्फ आत्मनिर्भर हो गया है बल्कि कोसी और सीमांचल के जिलों में निर्यात भी कर रहा है। फिलहाल जिले में रोज सवा लाख अंडा का उत्पादन हो रहा है जबकि जिले में 70 हजार अंडे की रोजाना खपत है। पशुपालन विभाग के अनुसार जिले में 57 छोटे-बड़े पॉल्ट्री फॉर्म अंडा का उत्पादन कर रहे हैं।
पहले दूसरे राज्यों से होते थे आयात
जिले में आंध्र प्रदेश, पंजाब और हरियाणा से प्रत्येक महीने करीब 20 लाख अंडे आते थे। पिछले तीन साल से जिले के पॉल्ट्री फॉर्म ही डिमांड को पूरा कर रहे हैं। यहां के सैकड़ों युवा पॉल्ट्री लेयर फार्मिंग (अंडा उत्पादन) से जुड़कर ना सिर्फ बेहतर आमदनी प्राप्त कर रहे हैं बल्कि अंडा उत्पादन मामले में जिले को पूरी तरह से आत्मनिर्भर बना दिया है। यहां के अंडे पड़ोस के सहरसा, अररिया, मधुबनी और पूर्णिया तक भेजे जा रहे हैं।
जिले में अंडा उत्पादन में तेजी
पशुपालन विभाग के मुताबिक निजी और सरकारी अनुदान से जिले में अंडा उत्पादन में तेजी आई है। इसमें मुख्य रूप से सदर प्रखंड के सरही मलिकाना, मल्हनी पुनर्वास, बीणा, परसरमा, कर्णपुर के अलावा चांदपीपर, नंदना, परसागढ़ी और डपरखा में रोज 15 हजार अंडा से अधिक उत्पादन करने वाले लेयर फॉर्मिंग फार्म चल रहे हैं। इसके अलावे भी जिलेभर में कई छोटी इकाई है जो अंडा उत्पादन कर रही है।
चूजे को अंडा देने लायक बनने में 4 महीने का समय
पॉल्ट्री लेयर फॉर्मिंग से जुड़े युवा उद्यमी राहुल ठाकुर बताते हैं कि चूजे को अंडा देने लायक बनने में 4 महीने का समय लगता है। इसके बाद 14 महीने तक मुर्गी अंडा देती है। उन्होंने वित्तीय वर्ष 2016-17 में समेकित मुर्गी विकास योजना के तहत फॉर्म खोला था। फिलहाल एक अंडा तैयार करने में साढ़े 3 रुपया तक खर्च आता है और यह बाजार में 5 रुपये तक बिकता है। बताया कि उनके यहां 22 हजार अंडे का उत्पादन रोजाना होता है। उनके फर्म में 17 लोग रोजगार पा रहे हैं।
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