कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते, केई पाबंदियां लगी हैं, एहतियात के लिए दिशा-निर्देश और एडवाइज़री जारी की गई हैं, प्रतिबंधों से हर क्षेत्र प्रभावित है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट से जुड़े व्यवसाय पर पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ा है.
वर्ष 2020 और 2021 में लगे लॉकडाउन से बसों का परिचालन ठप रहा और बस मालिकों को सरकार की ओर से कोई राहत भी नहीं मिली. जिससे उन्हें दोहरे संकट से जूझना पड़ा. सरकार के टैक्स, इंश्योरेंस का भुगतान करना पड़ा. कर्मचारियों को बैठाकर वेतन देना पड़ा. लंबे समय से बसों के खड़े रहने से उनके कई कलपुर्जों की मरम्मत भी करवानी पड़ी. सबसे ज्यादा दयनीय स्थिति तो उन कमीशन एजेंटों की हुई जिनकी रोजी रोटी बसों के परिचालन एवं यात्रियों पर ही निर्भर है. अभी भी कई प्रतिबंधों के कारण स्कूल-कॉलेज बंद पड़े हैं और लोगों का आवागमन भी पहले की तरह नहीं रह गया है.
जमशेदपुर बस ऑनर एसोसिएशन के अध्यक्ष राम ने कहा कि बस मालिकों की स्थिति दयनीय हो गई है. वैसे बस मालिकों की स्थिति ज्यादा खराब है जिनकी बसें स्कूलों और कॉलेजों में चलती है. वर्ष 2020 और 2021 में स्कूल और कॉलेज बंद रहे और अब 2022 के शुरुआती दौर में ही स्कूल कॉलेज बंद हो जाने से बसें खड़ी हो गईं. ऐसे में स्कूल प्रबंधन द्वारा उन्हें कोई भुगतान नहीं किया जाता है. लेकिन बस मालिकों को सरकार का टैक्स तय समय पर जमा करना पड़ता है वहीं कर्मचारियों का वेतन भी देना पड़ता है.
सरकार से बस मालिकों को कोई राहत नहीं मिली.
टाटा-रांची रूट पर पर चलने वाली बस के मालिक ने कहा कि जिनके पास कम गाड़ी है उनकी स्थिति बदहाल है. लोन भरने के लिए लोन लेना पड़ रहा है. श्री रंजन के अनुसार सरकार के निर्देश के बावजूद बैंकों से कोई राहत नहीं मिला और न ही सरकार ने अपनी तरफ से कुछ मदद की. गाड़ी चले या खड़ी रहे इंश्योरेंस का पैसा समय पर देना है.
कोरोना के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए प्रतिबंध से बस में यात्रियों की संख्या 50 प्रतिशत कम हो गई है.ऐसे में खर्च निकालना भी मुश्किल हो रहा है. वहीं टाटा-रांची रूट में वर्तमान में बुंडू टोल नाका पर 550 रुपये टोल टैक्स देना ही बस मालिकों पर अतरिक्त बोझ है, भविष्य में इस रूट पर चांडिल के पास एक और टोल नाका बनने की बात हो रही है यदि ऐसा होता है तो बस मालिकों पर बोझ ही बढ़ेगा. कहीं न कहीं इसका असर यात्रियों पर पड़ेगा.
बस एजेंट ने बताया कि सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध से यात्रियों की संख्या में अप्रत्याशित कमी आई है. 50 सीटों वाली बस में बमुश्किल 10 यात्री हो रहे हैं. ऐसे में हमारे सामने तो घर चलाने का संकट पैदा हो गया है. हमारा रोजगार तो यात्रियों पर निर्भर है जब यात्री ही नहीं होंगे तो हमारी कमाई कैसे होगी.
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